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दिसंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मानवीय करुणा की दिव्य चमक/प्रश्नोत्तर

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  मानवीय करुणा की दिव्य चमक                                  --- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना  प्रश्न 1: फादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी?   उत्तर : देवदार एक विशाल एवं छायादार वृक्ष होता है। यह बिना भेदभाव किए सभी को एक समान छाया और शीतलता प्रदान करता है। फादर भी विशाल व्यक्तित्व के धनी थे। उनके मन में सभी के लिए एक समान प्रेम की भावना थी। वह अपने अगणित मानवीय गुणों से सब का उपकार किया करते थे। स्नेह, ममता, आत्मीयता, करुणा आदि से भरपूर विशाल हृदय वाले फादर विभिन्न मांगलिक अवसरों पर उपस्थित होकर सब को अपना आशीष दिया करते थे। इसलिए फादर की उपस्थिति हर किसीको देवदार की छाया जैसी लगती थी। प्रश्न 2: फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं।  किस आधार पर ऐसा कहा गया है? उत्तर :  भारत में रहकर फादर ने स्वयं को पूरी तरह भारतीयता के रंग में रंग लिया था। भारत को ही वे अपना देश मानने लगे थे। भारतीय संस्कृति के प्रति उनके गहरे प्रेम का प्रमाण है उनका शोध ग्रंथ 'रामकथा: उत्पत्ति और विकास'। वे हिंदी को जन-जन की भाषा और भारत की राष्ट्रभाषा बनते हुए देखना चाहते थे। उन्हो

प्रेमचंद के फटे जूते/प्रश्नोत्तर

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  प्रेमचंद के फटे जूते        --- हरिशंकर परसाई प्रश्न 1: हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं? उत्तर : प्रेमचंद एक संघर्षशील लेखक थे। वे सादा जीवन परंतु उच्च विचार के पक्षधर थे। वे गैर समझौतावादी और स्वाभिमानी व्यक्ति थे। सामाजिक कुप्रथाओं और परंपरावादी रूढ़ियों के वे घोर विरोधी थे। वे दिखावटीपन से दूर रहते थे और चारित्रिक दृढ़ता को मनुष्य का मुख्य गुण मानते थे। कुल मिलाकर वे पाठ में एक प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में पाठकों के सामने आते हैं। प्रश्न 2: सही कथन के सामने (✓) का निशान लगाइए-- (क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है। उत्तर : गलत कथन (सही कथन है --- बाएँ जूते में बड़ा छेद हो गया है) (ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए। उत्तर : ✓(सही कथन) (ग) तुम्हारी यह व्यंग्य मुसकान मेरे हौसले बढ़ाती है। उत्तर : गलत कथन (सही कथन है --- प्रेमचंद की व्यंग्य मुसकान लेखक परसाई के हौसले पस्त कर द

बच्चे काम पर जा रहे हैं/प्रश्नोत्तर

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             बच्चे काम पर जा रहे हैं               कवि: राजेश जोशी प्रश्न 1: कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से आपके मन-मस्तिष्क में जो चित्र उभरता है उसे लिखकर व्यक्त कीजिए। उत्तर :  कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से हमा रे मन-मस्तिष्क में बाल-मजदूरी करते बच्चों की एक करुण एवं  दयनीय तस्वीर उभरती है। मन में यह विचार आता है कि यह तो इन बच्चों की खेलने-कूदने की उम्र है, किंतु इन्हें भयंकर कोहरे में भी आराम नहीं है।  उनका बचपन खो गया है।   आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण  सुबह-सुबह उठने के लिए और न चाहते हुए भी काम पर जाने के लिए ये बच्चे मज़बूर हैं। प्रश्न 2: कवि का मानना है कि बच्चों के काम पर जाने की भयानक बात को विवरण की तरह न लिखकर सवाल के रूप में पूछा जाना चाहिए कि ‘काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?’ कवि की दृष्टि में उसे प्रश्न के रूप में क्यों पूछा जाना चाहिए? उत्तर : कवि के अनुसार इसे प्रश्न  की भाँति पूछा जाना चाहिए ताकि इसका कोई हल निकले।  अकसर हम समस्याओं को विवरण की तरह लिखते हैं, अतः कोई हल नहीं निकलता। गंभीर समस्याओं को सवालों की तरह लिख