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अभिज्ञान शाकुंतलम्

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                         शकुंतला                              ---By: पुरुषोत्तम पोख्रेल          'अभिज्ञान शाकुंतलम्' को कालिदास का सर्वश्रेष्ठ नाटक माना जाता है। संस्कृत में रचित नाटकों में यह निर्विवाद रूप से ही सर्वश्रेष्ठ है। महाभारत में वर्णित एक छोटे से आख्यान पर आधारित एक प्रसंग पर कालिदास ने इस सर्वांगसुंदर नाटक की रचना की है। यह मनोरम नाटक सात अंकों में विभक्त है।         पुरु वंशी महा पराक्रमी राजा दुष्यंत सैन्य सामंतों के साथ मृगया के लिए निकलते हैं। एक हरिण शावक का पीछा करते हुए वह किसी मुनि के आश्रम पहुँच जाते हैं।  राजा दुष्यंत उस शावक पर तीर छोड़ने ही वाले होते हैं, तभी आश्रम के ऋषिगण राजा को संबोधित करते हुए कहते हैं, "महाराज! महाराज!! यह आश्रम का मृग है। इस पर तीर मत छोड़िए। इसे मत मारिए।" राजा ने उनकी बात मान ली। ऋषि यों से उन्हें पता चला कि वह महर्षि कण्व का आश्रम है। उस समय महर्षि कण्व आश्रम में नहीं थे। अपनी पालिता कन्या शकुंतला पर अतिथि सत्कार का दायित्व देकर महर्षि सोमतीर्थ के लिए निकले थे। राजा दुष्यंत के मन में शकुंतला को एक नजर देखने की तीव्र