शब्दार्थ: राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
----तुलसीदास
शब्दार्थ:
(1) "नाथ संभुधनु भंजनिहारा......बिदित सकल संसार" तक:
(i) भंजनिहारा -------- तोड़ने वाला
(ii) होइहि ------------ होगा
(iii) केउ ------------- कोई
(iv) मोही ------------ मुझे
(v) रिसाई ----------- क्रोध करके
(vi) कोही ----------- क्रोधी
(vii) अरिकरनी ----- शत्रुता का कर्म
(viii) रिपु ----------- शत्रु
(ix) बिलगाउ -------- अलग होना
(x) अवमाने --------- अपमान करते हुए
(xi) धनुही ----------- छोटा धनुष
(xii) तोरी ----------- तोड़े
(xiii) लरिकाईं ------ लड़कपन में, बचपन में
(xiv) गोसाईं -------- स्वामी, महाराज, एक आदरसूचक संबोधन
(xv) हेतू ------------ कारण
(xvi) भृगुकुलकेतू --- भृगुवंश के महान पुरुष, परशुराम
(xvii) नृपबालक ---- राजा का बेटा, राजकुमार
(xviii) सँभार ------- संभल कर
(xix) बिदित -------- परिचित
(xx) सकल --------- सारा
(2) "लखन कहा हसि हमरे .... परसु मोर अति घोर।।" तक:
(i) हसी ------------- हँस कर
(ii) हमरे ------------- मेरे
(iii) जाना ------------ जानकारी में
(iv) छति ------------- क्षति, हानि
(v) भोरें -------------- भूल से, धोखे से
(vi) नयन के --------- नए के, नया समझ कर
(vii) कत ------------ क्यों
(viii) रोसू ---------- रोष, क्रोध
(ix) चितै ------------- देखकर
(x) परसु ------------ फरसा, कुल्हाड़ी
(xi) सठ ------------- मूर्ख
(xii) सुभाउ --------- स्वभाव
(xiii) जड़ ----------- मूर्ख
(xiv) विश्वविदित ----- संसार में प्रसिद्ध
(xv) द्रोही ----------- दुश्मन, संहारक
(xvi) भुजबल ------- बाहुओं के बल पर
(xvii) भूप ---------- राजा, सम्राट
(xviii) महिदेवन्ह ---- ब्राह्मणों को
(xix) छेदनिहारा ----- काटने वाला
(xx) बिलोकु --------- देखो
(xxi) महीपकुमारा ---- राजा का पुत्र, राजकुमार
(xxii) सोचबस --------- चिंता में
(xxiii) महीसकिशोर --- राजा का पुत्र, राजकुमार
(xxiv) अर्भक ---------- बच्चा, भ्रूण
(xxv) दलन ------------ कुचलने वाला, नाश करने वाला
(3) "बिहसि लखनु बोले मृदु ------ बोले गिरा गंभीर।।" तक:
(i) बिहसि ------हँस कर
(ii) मृदु -------- कोमल
(iii) बानी ----- वाणी
(iv) महाभट --- महान योद्धा, महावीर
(v) देखाव ----- दिखाते हो
(vi) चहत ------ चाहता है
(vii) पहारू ---- पहाड़
(viii) कुम्हड़बतिया --- बहुत कमजोर और निर्बल व्यक्ति
(ix) तरजनी ----- अंगूठे के पास वाली उंगली
(x) सरासन ------ धनुष
(xi) भृगुसुत ------ भृगु का पुत्र, परशुराम
(xii) सुर ---------- देवता
(xiii) महिसुर ----- ब्राह्मण
(xiv) हरिजन ----- भक्त
(xv) गाई --------- गाय
(xvi) सुराई ------- वीरता
(xvii) बधें ---- वध करने पर
(xviii) अपकीरति --- अपयश
(xix) मारतहू --------- मारने पर भी
(xx) पा -------------- पाँव
(xxi) परिअ --------- पड़ेंगे
(xxii) धरहु ---------- धारण किए हो
(xxiii) छमहु --------- क्षमा करना
(xxiv) भृगुबंशमनि --- भृगुवंश के मणि अथवा रत्न, परशुराम
(xxv) गिरा ----------- वाणी
(4) "कौसिक सुनहु मंद येहु ...... कायर कथहिं प्रतापु।" तक:
(i) कौसिक ------- विश्वामित्र
(ii) मंद ----------- मूर्ख
(iii) कालबस ---- मौत के वश में आकर
(iv) कुल घालकु--- कुल को नष्ट करने वाला
(v) भानुबंस ------ सूर्यवंश
(vi) राकेश ------- चंद्रमा (कविता में-- राक्षस)
(vii) कलंकू ------ धब्बा
(viii) निपट ------ निरा
(ix) निरंकुसु ----- उद्दंड
(x) अबुधु -------- मूर्ख, अबोध
(xi) असंकु ------ निडर
(xii) कालकवलु ---- काल का निवाला, काल का शिकार
(xiii) छन माहीं --- क्षण में ही
(xiv) खोरि ------- दोष
(xv) हटकहु ------ रोको
(xvi) सुजसु ------ सुयश, सम्मान, ख्याति
(xvii) अछत ----- छोड़कर
(xviii) बरनै पारा --- वर्णन कर पाएगा
(xix) मुहु ----------- मुँह से
(xx) बहु --------- बहुत
(xxi) पुनि -------- फिर, पुनः
(xxii) दुसह ----- असहनीय
(xxiii) बीरब्रती ---- वीरता के मार्ग पर चलने वाला
(xxiv) अछोभा ---- अक्रोधी
(xxv) गारी ------- गाली
(xxvi) समर करनी ---- युद्ध का कार्य, वीरता प्रदर्शन करना
(xxvii) कथहिं ------- कहते हैं
(xxviii) आपु ------- स्वयं को
(5) "तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा ----- बुझ अबुझ।।" तक:
(i) कालु ---------- मृत्यु, काल
(ii) जनु ---------- मानो
(iii) हाँक लावा ----- जबरदस्ती के साथ ले आना
(iv) मोहि लागि ---- मेरे लिए
(v) कर ------------- हाथ
(vi) घोरा ------‐---- भयंकर
(vii) कटुबादी -------- कड़वे वचन बोलने वाला
(viii) बधजोगू ------ वध करने योग्य
(ix) मरनिहार ------- मरने योग्य
(x) साँचा ------------ सचमुच
(xi) छमिअ ---------- क्षमा कर दो
(Xii) खर ----------- प्रखर, तेज
(xiii) अकरुन ----- करुणाहीन, दयाहीन, कठोर
(xiv) गुरुद्रोही ----- गुरु का अपमान करने वाला, गुरु का शत्रु
(xv) गुरहि --------- गुरु से
(xvi) उरिन -------- ऋणमुक्त, उऋण
(xvii) होतेउँ ------ हो जाता
(xviii) श्रम थोरे -- थोड़े परिश्रम अथवा प्रयास से
(xix) गाधिसूनु ---- गाधि के पुत्र, विश्वामित्र
(xx) हसि --------- हँसकर
(xxi) हरियरे ------ हरा ही हरा, (कविता में अर्थ-- आसान)
(xxii) अयमय ----- लोहे का बना हुआ
(xxiii) ऊखमय ---- गन्ने से बना हुआ
(xxiv) अजहुँ ----- अब भी
(xxv) अबूझ ------ अज्ञानी
(6) "कहेउ लखन मुनि सीलु ------ बोले रघुकुलभानु।।" तक:
(i) सीलु ---------- शील-स्वभाव
(ii) नीकें --------- भली प्रकार
(iii) हमरेहि माथें काढ़ा ---- हमारे माथे पर दोष मढ़ना
(iv) बाढ़ा -------- बढ़ गया
(v) आनिअ ------ ले आओ
(vi) ब्यवहरिआ ---- हिसाब-किताब करने वाला
(vii) तुरत -------- शीघ्र, तुरंत
(viii) कटु ------- कठोर, कड़वा
(ix) सुधारा ------ संभाला
(x) भृगुबर -------- परशुराम
(xi) मोही --------- मुझे
(xii) बिप्र -------- ब्राह्मण
(xiii) नृपद्रोही ----- राजाओं का शत्रु
(xiv) सुभट ------- वीर योद्धा
(xv) रन ---------- युद्ध
(xvi) गाढ़े -------- अच्छे
(xvii) द्विजदेवता ---- ब्राह्मण देवता
(xviii) सयनहि ---- आँखों के इशारे से
(xix) नेवारे --------- मना किया, रोका
(xx) सरिस --------- समान
(xxi) भृगुबरकोपु --- परशुराम का क्रोध
(xxii) कृसानु ------ आग
(xxiii) रघुकुलभानु ---- रघुवंश का सूर्य, श्रीरामचंद्र
।।
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