बालगोबिन भगत 

       -- रामवृक्ष बेनीपुरी 

प्रश्नोत्तर 


प्रश्न 1: खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे?

उत्तर: खेतीबारी करने वाले एक गृहस्थ होते हुए भी बालगोबिन भगत अपनी निम्नलिखित चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे--

(i) वे हरदम प्रभु का स्मरण करते थे और भजन कीर्तन में व्यस्त रहते थे।

(ii) उनका रहन-सहन, वेश-भूषा किसी साधु के समान बहुत ही सरल था।

(iii) वह किसी दूसरे की चीजों को छूते तक नहीं थे।

(iv) उनके मन में किसी के प्रति भी राग-द्वेष की भावना नहीं थी।

(v) लंबे उपवास में रहने के बावजूद उनमें अजीब-सी मस्ती बनी रहती थी।


प्रश्न 2: भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?

उत्तर: पुत्र की मृत्यु के बाद भगत अकेले हो चुके थे। भगत की पुत्रवधू उनकी सेवा करना चाहती थी। उनके लिए भोजन, दवा आदि का प्रबंध करना चाहती थी। इसलिए वह भगत को कतई अकेले छोड़ना नहीं चाहती थी।


प्रश्न 3: भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं?

उत्तर: भगत ने अपने बेटे की मृत्यु को भगवान की इच्छा के रूप में स्वीकार किया और इसे उत्सव की तरह मनाया। उन्होंने पुत्र के शव को सफेद वस्त्र से ढका, उस पर फूल, तुलसीदल बिखेरे, सिरहाने के पास एक दीपक जला कर रखा और फिर जमीन पर ही आसन लगाकर प्रभु के भजन गाने लगे। इस मृत्यु को उन्होंने परमात्मा के साथ आत्मा का मिलन माना और कहा कि इससे बढ़कर आनंद की कोई बात नहीं। अपनी पतोहू से भी रोने के बदले उत्सव मनाने को कहा।


प्रश्न 4: भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर: बालगोबिन भगत मँझोले कद के एक गोरे-चिट्टे आदमी थे। उनकी आयु 60 वर्ष से कुछ ऊपर थी। सफेद बालों के कारण उनका चेहरा सदैव जगमगाता रहता था। वह बहुत कम कपड़े अर्थात कमर में एक लंगोटी और सिर पर कबीरपंथियों की-सी एक कनफटी टोपी मात्र पहनते थे। उनके गले में तुलसी की बेडौल माला बँधी रहती थी। माथे पर रामानंदी चंदन होता था। वह सदा-सर्वदा प्रभु भक्ति के सुमधुर भजन गाते रहते थे।


प्रश्न 5: बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?

उत्तर: बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण थी। उनकी सादगी और उनके निःस्वार्थ स्वभाव से लोग चकित होते थे। सर्दी, गर्मी, बरसात, सुबह, शाम-- कभी भी वे भगवान के भजन गाते रहते थे। लोग तब और भी आश्चर्य प्रकट करते थे जब जाड़े के दिनों में भी बहुत सवेरे ही उठकर दो मील दूर स्थित नदी में वे स्नान कर आते थे। माघ महीने के प्रातः काल में भी भजन गाते हुए उनके माथे पर पसीने की बूँदें झलकती थीं। ऐसी दिनचर्या किसी गृहस्थ के जीवन में सामान्यतया नहीं देखी जाती।


 प्रश्न 6: पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए। 

उत्तर: बालगोबिन भगत अत्यंत सुमधुर आवाज के धनी थे। उनके आरोह-अवरोह से युक्त सुरीले भजनों को सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे। उनके गायन को न आषाढ़ अथवा भादो की वर्षा प्रभावित करती थी, न माघ की सर्दी और न जेठ की गर्मी। गर्मी की उमसभरी शाम भी उनके गायन से शीतल प्रतीत होती थी। खेत में काम करने वाले नर-नारी उनके गीत और उनकी आवाज को सुनकर सुध-बुध खो बैठते थे। वे ज्यादातर कबीर के भजन गाया करते थे।


प्रश्न 7: कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: बालगोबिन भगत समाज में प्रचलित कई परंपराओं को नहीं मानते थे। उनके विवेक से जो बात सही लगती थी, वे वही करते थे। सामाजिक मान्यताओं के विपरीत अपनी पतोहू से ही उन्होंने बेटे की चिता को आग दिलवाई। बेटे की मृत्यु के पश्चात पतोहू के भाई को बुलाकर उसे उसके साथ कर दिया और उसकी दूसरी शादी कराने का आदेश भी दिया। बेटे की मृत्यु पर भी वे नहीं रोए। रोने के बजाय उन्होंने तो इसे उत्सव की तरह मनाया।


प्रश्न 8: धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर: आसाढ़ का महीना था। रिमझिम बारिश हो रही थी। कहीं हल चल रहे थे तो कहीं धान की रोपाई हो रही थी। भगत की स्वर लहरियाँ वातावरण में अपना जादू बिखेर रही थीं। भगत के गले से निकली सुमधुर आवाज़ कभी आकाश की ऊँचाई नापती थी तो कभी उनकी गंभीर आवाज़ जमीन पर खड़े लोगों के कानों में रस घोलती थी। उनके स्वर को सुनकर बच्चे खेलते हुए झूम उठते थे। मेंड़ पर खड़ी औरतें भी उनके साथ-साथ गुनगुनाने लगती थीं। हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते थे। रोपनी करनेवालों की उंगलियाँ अजीब क्रम से चलने लगती थीं। वातावरण में उनकी मोहक आवाज़ का जादू-सा असर होता था।


प्रश्न 9: पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है ?

उत्तर: भगत कबीर को 'साहब' अथवा ईश्वर मानते थे। उन्हीं के गीत, भजन, सबद, दोहे आदि वे हरदम गाया करते थे। उनके उपदेशों का पालन करते थे। सिर पर कबीरपंथियों की-सी टोपी पहनते थे। उनके खेत में जो भी पैदा होता था, उसे कबीरपंथी मठ ले जाते थे और प्रसाद रूप में उन्हें जो मिलता था, उसे घर लाते थे और उसी से अपना गुजर-बसर चलाते थे।


प्रश्न 10: आप की दृष्टि से भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?

उत्तर: बालगोबिन भगत की प्रवृत्ति कबीर के समान ही थी। उनके विचार भी कबीर से मिलते-जुलते थे। दोनों सामाजिक रूढ़ियों को समाज से हटाने का प्रयत्न करते थे। अहितकर सामाजिक मान्यताओं का खंडन करते थे। कबीर और भगत दोनों अच्छे कर्म और शुद्ध आचरण पर ज्यादा विश्वास रखते थे। इन आधारों पर कहा जा सकता है कि दोनों एक ही सोच और स्वभाव के थे। इसीलिए कबीर पर भगत की अगाध श्रद्धा रही होगी।


प्रश्न 11: गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?

उत्तर: गाँव के ज्यादातर लोग खेती पर निर्भर करते हैं। खेती वर्षा पर निर्भर करती है। वर्षा आषाढ़ के माह से शुरू होती है। वे वर्षभर से इस महीने की प्रतीक्षा करते हैं। रिमझिम बरसते आषाढ़-सावन के महीने किसानों के लिए सालभर का भरोसा होते हैं और यह समय उनके लिए फसल बोने का सबसे उपयुक्त समय होता है। ग्रामीण लोग खेतों में हल जोतकर रोपाई-बुवाई आरंभ करते हैं। गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लासपूर्ण हो जाता है।


प्रश्न 12: "ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।" क्या 'साधु' की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति 'साधु' है?

उत्तर: साधु की पहचान पहनावे के आधार पर कतई नहीं की जानी चाहिए। एक साधु की पहचान माला, तिलक अथवा उसके पहने हुए वस्त्र आदि से नहीं, बल्कि उसकी वाणी, आचार-विचार, संस्कार आदि के आधार पर होनी चाहिए। एक साधु भौतिक वस्तुओं का संचय नहीं करता। वह अपने मनमें हमेशा दया, करुणा, परोपकार आदि की भावनाएँ रखता है। कृत्रिमता एवं आडंबरों से साधु कोसों दूर रहता है।


प्रश्न 13: मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे? 

उत्तर: मोह और प्रेम में अंतर होता है। मोह में स्वार्थ की भावना होती है जबकि प्रेम निःस्वार्थ होता है। प्रेम की भावना में परहित की चिंता भी होती है। भगत जी ने पतोहू के भाई को उसकी दूसरी शादी करा देने का आदेश देकर उसकी हित चिंता की। इस प्रसंग से पता चलता है कि उनके मन में पतोहू की सेवा पाने का कोई मोह नहीं था।  उसके प्रति तो भगत के मन में सच्चे प्रेम की और हित की भावना थी।



 


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