लघुकथा
मिट्टी का मोल
"माँ! मैं बाहर खेलने जाऊँगा।" नन्हा निहाल अपनी माँ से कहते हुए घर से बाहर निकलने लगा।
"नहीं बेटा, बाहर मिट्टी में खेलना ठीक नहीं है। तुम्हारे कपड़े गंदे हो जाएँगे। घर में ही खेलो।"
"नहीं माँ, मेरे साथी बाहर मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं। मुझे जाने दो न माँ।"
"अरे बहू! उसे जाने दो न। आखिर मिट्टी का भी उस पर उतना ही हक है, जितना तुम्हारा है उस पर।"
निहाल के दादाजी ने अपनी बहू को समझाते हुए कहा। निहाल के दादा दीनानाथ जी किसी समय भारतीय सेना में मेजर थे। सीमा की रक्षा में दुश्मन की गोली खाकर उन्होंने देश की रक्षा की थी। निहाल में वह अपना ही रूप देखते थे। मन-ही-मन वे चाहते थे कि निहाल भी बहुत ऊँचा सैनिक अधिकारी बनकर देश की सेवा करे और परिवार और देश का सम्मान ऊँचा करे।
***
आखिरकार उनका सपना सच हुआ। आज निहाल भारतीय वायु सेवा में चयनित होकर प्रशिक्षण के लिए हैदराबाद जा रहा है।
"चलता हूँ दादाजी! गाड़ी का समय हो रहा है।" यह कहते हुए निहाल ने दादाजी के चरण स्पर्श किए। बाहर निकलकर निहाल नीचे झुका और जहाँ की धूल-मिट्टी में खेलते हुए वह बड़ा हुआ था, उस पावन भूमि की मिट्टी को अपने माथे से लगाकर गाड़ी में बैठ गया।
दादाजी उसे देखकर मुस्कुरा उठे। उनकी शिक्षा आज रंग लाई थी। निहाल ने मिट्टी का मोल पहचान लिया था।
========================================
हार-जीत
मदन और गगन दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे। मदन खेल-कूद में निपुण था और गगन पढ़ाई में अब्बल। खेल के मैदान में और खेल-कूद के दौरान मदन हमेशा गगन को पछाड़ देता था। गगन भी हँसते हुए मैदान से बाहर आ जाता था। वह जानता था कि खेल-कूद उसके बस की बात नहीं। वह अपनी आनेवाली परीक्षाओं की जमकर तैयारी करने लगता था और परीक्षा परिणाम में हमेशा प्रथम आया करता था। अपने-अपने क्षेत्र में उनकी हार-जीत होती रहती थी। लेकिन दोनों को इस बात का कोई मलाल न था। दोनों को पता था कि उनके अपने ही क्षेत्र हैं, अपनी ही अभिरुचियाँ हैं।
***
उस दिन विद्यालय का वार्षिकोत्सव था। सारा हॉल खचाखच भरा था। गगन को विद्यालय के सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी का पुरस्कार मिला। मिलता भी क्यों नहीं, अपने राज्यभर में उसने उत्कृष्ट परीक्षा परिणाम जो हासिल किया था। मदन को भी सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का पुरस्कार मिला क्योंकि उसीके नेतृत्व में उसके विद्यालय को कई खेलों में खिताबें मिली थीं। दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र में उत्तम थे। वार्षिक उत्सव के बाद दोनों सहपाठी एक दूसरे से बिछड़ गए। मदन ने अपनी खेलकूद की प्रतिभा के दम पर राज्य के मुख्य खेल प्रशिक्षक का पद हासिल कर लिया। उधर गगन ने आई.ए.एस. प्रतियोगिता की बेहतर तैयारी करके जिलाधिकारी का पद ग्रहण किया।
=====================================
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें