शून्य चिंतन

 


                        शून्य चिंतन

                                           -- पुरुषोत्तम पोख्रेल 

                    मानव सभ्यता के विकास में पहिया एक बेहद ही महत्वपूर्ण आविष्कार सिद्ध हुआ है । इतना ज्यादा महत्वपूर्ण  कि इसके बिना आधुनिक विश्व की कल्पना तक नहीं की जा सकती। असंख्य मशीनों में आज पहियों का और गोलाकार पूर्जों का  प्रयोग किया जाता है। 

                   मानव इतिहास की प्राचीनता की तुलना में पहिया अपेक्षाकृत काफी नया अविष्कार है।  माना जाता है कि पहिए के आविष्कार से पहले ही मानव समाज में आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक आदि प्रणालियाँ विकसित हो चुकी थीं। जानवरों को पालतू बना लिया गया था। खेती की जाने लगी थी । आग, सुई-धागा, कपड़े, बाँस-बेंत से बनी टोकरियाँ, नाव आदि सब कुछ पहिए से पहले की चीजें मानी जाती हैं । पहिए के आविष्कार से पहले भले ही सैकड़ों अथवा हजारों आविष्कार हुए, परंतु फिर भी मानव समाज बहुत ज्यादा विकास न कर सका था। परंतु जब एक बार पहियों का आविष्कार हुआ, इसका निर्माण होने लगा, दैनंदिन जीवन में इसका बहुतायत मात्रा में प्रयोग होने लगा तो सभ्यता ने विकास की ऐसी रफ्तार पकड़ी, जो आज तक रुकने का नाम नहीं ले रही।

                  पहिया वास्तव में ही एक क्रांतिकारी आविष्कार था। आज की दुनिया पहिए के बल पर ही चल रही है, यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। पहिए के बिना आप आज के आधुनिक विश्व की कल्पना करके तो देखिए। सारा संसार रुका हुआ, स्तब्ध होता हुआ-सा दिखाई देगा। पहिए की रफ्तार आज वाकई बहुत तेज हो गई है। इसे नि:संकोच मानव सभ्यता का सबसे बड़ा आविष्कार माना जा सकता है। इसीके बल पर आज चंद घंटों में मानव धरती के इस छोर से उस छोर तक पहुँच सकता है अथवा पहुँचा करता है।

                पहिए का आविष्कार सबसे पहले किसने,  कहाँ और कैसे किया, किस कारणवश किया होगा- यह अवश्य ही एक खोज का विषय है और इसका सही-सही पता लगाना अत्यंत दुष्कर कार्य भी है।  परंतु मानव इतिहास और सभ्यता के प्राचीनतम ग्रंथ वेद, पुराण, रामायण, महाभारत आदि में रथ, विमान, सुदर्शन चक्र आदि का उल्लेख मिलता है। इस हिसाब से भारतीय सभ्यता को ही पहिए का पहला जनक कहने का आधार अवश्य प्राप्त होता है।

              जिस तरह पहिए के आविष्कार ने दुनिया को तेज-तर्रार गति प्रदान की, उसी तरह यह कहना गलत नहीं होगा कि गणित में शून्य (0) के आविष्कार ने भी दुनिया को कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया। शून्य  के आविष्कार  ने विज्ञान की दुनिया में क्रांति ला दी। पूरी दुनिया भारत की ऋणी है कि भारत ने अन्य अंकों के अलावा शून्य (0) की खोज की। शून्य(0) की अवधारणा न होने के कारण विश्व की अन्य कई सभ्यताओं में गिनती की सीमा अत्यंत कम हुआ करती थी। शून्य(0) के आविष्कार ने गिनती को अनंतता प्रदान की। शून्य (0) कहने को तो शून्य है, परंतु शून्य (0) का ही चमत्कार है कि यह 1(एक) से 10(दस), 10 (दस) से 100(सौ), 100 (सौ) से 1000(हजार), 100000(लाख), 10000000 (करोड़), अरब, खरब आदि कितनी सारी संख्याओं का जन्म दे सकता है। शून्य (0) की विशेषता है कि इसे किसी संख्या से गुणा करो अथवा भाग करो, उसका फल शून्य (0) ही रहेगा।

                भारत का शून्य (0) अरब जगत में 'सिफर' (अर्थ है- खाली) नाम से प्रचलित हुआ । अंग्रेजी में इसे 'जीरो' कहते हैं । 'जीरो' (0) या 'सिफर' एक बहुत ही दिलचस्प नंबर है। इसका अपना तो कोई वजन नहीं होता है, लेकिन  किसी और अंक के साथ जब यह जुड़ जाता है तो अपनी संख्या अनुसार उस नंबर की ताकत को यह बढ़ा देता है। एक(1) नंबर के पहले (01) इसकी कोई पहचान नहीं होती। लेकिन एक(1) नंबर के बाद यह एक बार लग जाए तो यह एक को सीधे 10 बना देता है, दो बार लग जाए तो 100, तीन बार लग जाए तो 1000, इसी तरह.......। शून्य लगाए बिना तो कोई भी संख्या बढ़ी नहीं बन सकती। शून्य (0) बढ़ाते जाइए, संख्या भी बड़ी होती जाएगी । यह है शून्य(0) का कमाल। 'जीरो' अथवा 'शून्य' की खोज ने वास्तव में ही अंक, संख्या अथवा गणित की दुनिया में क्रांति ला दी। अंकगणित की दुनिया अचानक की चमक उठी। अगर शून्य (0) न होता तो आज की दुनिया कैसी होती होगी? 1 से 9 तक के सारे अंक हमेशा के लिए बौने ही रह जाते।

                    कभी आपको भी कोई 'हीरो' के बदले 'जीरो' बताए तो इसका कभी बुरा न मानें, क्योंकि सारी ताकत जीरो में ही तो है। और दुनिया में चाहे कोई कितना ही ताकतवर क्यों न हो, आखिर सबको शून्य में ही विलीन हो जाना है। तो चिंता किस बात की?!









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