दुःख का अधिकार/यशपाल



दुःख का अधिकार / यशपाल

प्रश्नोत्तर 

मौखिक 

प्रश्न 1: किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें क्या पता चलता है?

उत्तरः किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें समाज में उसका दर्जा और अधिकार का पता चलता है। 

प्रश्न 2: खरबूजे बेचने वाली स्त्री से कोई खरबूजे क्यों नहीं खरीद रहा था? 

उत्तरः खरबूजे बेचने वाली स्त्री के जवान बेटे की हाल ही में मृत्यु हुई थी। उस वक्त सूतक का समय चल रहा था। इस समय ऐसे लोगों के हाथों का लोग न खाना खाते हैं और न ही पानी पीते हैं। लोगों को लग रहा था कि बाजार में खरबूजे बेचने आकर वह लोगों का धर्म भ्रष्ट कर रही थी। इसलिए कोई उससे खरबूजे नहीं खरीद रहा था।

प्रश्न 3: उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा? 

उत्तरः उस स्त्री को देखकर लेखक को उससे सहानुभूति हुई और साथ ही मन में दुख भी हुआ। वह उसके दुख को दूर करना चाहता था पर उसकी पोशाक ही बंधन और अड़चन बन रही थी।

प्रश्न 4: उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था? 

उत्तरः उस स्त्री का लड़का भगवाना एक दिन मुँह-अँधेरे खेत में बेलों से तरबूज चुन रहा था कि गीली मेड़ की तरावट में आराम करते साँप पर उसका पैर पड़ गया और साँप ने उसे डस लिया। ओझा से झाड़-फूँक आदि करवाने के बावजूद उसका लड़के पर कोई प्रभाव न पड़ा  और अंत में उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 5: बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नहीं देता? 

उत्तरः बुढ़िया बहुत गरीब थी। अब बेटा भी नहीं रहा तो लोगों को अपने पैसे लौटने की संभावना नहीं दिखाई दी। इसलिए कोई भी उसे उधार नहीं दे रहा था।

लिखित (क):

प्रश्न 1: मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्व है? 

उत्तरः पोशाक का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। पोशाक शरीर को ढकने मात्र के लिए नहीं होती। यह हमें मौसम के मार से भी बचाती है। पोशाक से मनुष्य की हैसियत, पद तथा समाज में उसके स्थान का पता चलता है। पोशाक मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारती है। जब हम किसी से मिलते हैं तो पहले उसकी पोशाक से प्रभावित होते हैं  और उसके व्यक्तित्व का अंदाजा भी लगा लेते हैं। पोशाक जितनी प्रभावशाली होगी, लोग उतने प्रभावित होंगे।

प्रश्न 2: पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाते हैं? 

उत्तरः हमारे सामने कभी ऐसी परिस्थिति आती है कि हमें किसी दुखी एवं गरीब व्यक्ति के साथ सहानुभूति प्रकट करनी होती है, परंतु उसे छोटा समझकर उससे बात करने तक हम संकोच करते हैं। उसके साथ सहानुभूति अथवा प्यार भरे दो शब्द तक प्रकट नहीं कर पाते हैं। हमारी पोशाक उसके समीप जाने में तब बंधन और अड़चन बन जाती है।

प्रश्न 3: लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया?

उत्तरः वह स्त्री घुटनों में सिर गढ़ाए फफक-फफक कर रो रही थी। अभी-अभी अपने बेटे की मृत्यु से स्त्री सूतक की स्थिति में होने के कारण लोग उससे खरबूजे नहीं खरीद रहे थे। उसे भला-बुरा कह रहे थे। उस स्त्री को देखकर लेखक का मन व्यथित हो उठा। उसके मन में उसके प्रति सहानुभूति की भावना भी उत्पन्न हुई थी। परंतु लेखक उस स्त्री के रोने का कारण इसलिए नहीं जान पाया क्योंकि उसकी पोशाक रुकावट बन गई थी।

प्रश्न 4: भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था? 

उत्तर: भगवाना के पास शहर के निकट डेढ़ बीघा जमीन थी, जिसमें वह हरी सब्जियाँ, खरबूजे बगैरह उगाता था और उन्हें बेचकर वह अपने परिवार का निर्वाह करता था।

प्रश्न 5: लड़की की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूजे बेचने क्यों चल पड़ी?

उत्तरः बुढ़िया के घर में जो कुछ थोड़ा बहुत आटा-दाल था, वह ओझा से झाड़-फूँक करने में, नाग देवता की पूजा करने में और भगवाना के उपचार के क्रम में खर्च हो चुका था। पोती-पोते और बीमार बहू को खिलाने के लिए कुछ भी बाकी न बचा था। इसलिए लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया को खरबूजे बेचने जाना पड़ा। 

प्रश्न 6: बुढ़िया के दुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई?

उत्तरः बुढ़िया के दुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद इसलिए आई क्योंकि दोनों स्त्रियों को अपने पुत्र के वियोग का दुख था।  लेखक के अनुसार दोनों महिलाओं का दुःख समान था, परंतु अपने-अपने दुख व्यक्त करने के दोनों के तरीके बिल्कुल विपरीत थे।

लिखित (ख):

प्रश्न 1: बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे? अपने शब्दों में लिखिए। 

उत्तरः बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री की मजबूरी का अनदेखा करते हुए उस वृद्धा को बहुत भला-बुरा कहते हैं। कोई घृणा से थूक कर उसे बेहया कहता है, कोई उसकी नीयत को दोष देता है, कोई उसे रोटी के टुकड़े पर जान देने वाली कहता है, कोई कहता है कि उसे रिश्तों का कोई मतलब नहीं है, परचून वाला तो कहता है कि धर्म-ईमान बिगाड़ कर उसने सामाजिक अपराध किया है, आदि।

प्रश्न 2: पास पड़ोस की दुकानों में पूछने पर लेखक को क्या पता चला?

उत्तरः पास-पड़ोस की दुकानों में पूछने पर लेखक को पता चला कि उसका तेइस साल जवान लड़का था। घर में उसकी बहू और पोता-पोती हैं। लड़का डेढ़ बीघा भर जमीन में कछियारी करके घर-परिवार चलाता था। कभी माँ और कभी बेटा बाजार में खरबूजे बेचने बैठ जाया करते थे। खेत में खरबूजे चुनते समय साँप के डसने से लड़के की जान चली गई थी, आदि।

प्रश्न 3: लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्या-क्या उपाय किए?

उत्तर: लड़के को बचाने के लिए वृद्धा स्त्री जो कुछ कर सकती थी, उसने वे सभी उपाय किए। झाड़-फूँक करवाने के लिए वह ओझा को बुला लाई, साँप का विष निकल जाए या उसका प्रभाव न पड़े इसके लिए नाग देवता की पूजा भी की, दान-दक्षिणा में घर का आटा-अनाज समाप्त कर दिया, परंतु दुर्भाग्य से बेटे को वह नहीं बचा सकी।

प्रश्न 4: लेखक ने बुढ़िया के दुख का अंदाजा कैसे लगाया? 

उत्तरः लेखक ने बुढ़िया के दुख की गहराई का अंदाजा लगाने के लिए अपने पड़ोस की घटना को याद किया। पिछले वर्ष लेखक के पड़ोस की एक संभ्रांत महिला अपने पुत्र की मृत्यु के बाद इतनी दुखी हो गई थी कि ढाई महीने तक बिस्तर से उठ नहीं सकी थी। पुत्र वियोग के कारण हर पंद्रह मिनट में बेहोश हो जाती थी। उसकी देखभाल के लिए दो-दो डॉक्टर हरदम सिरहाने मौजूद रहते थे। इस घटना ने पूरे शहर भर के लोगों को शोकाकुल कर दिया था।




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