बच्चे काम पर जा रहे हैं, क्षितिज, हिंदी, कक्षा: 9
बच्चे काम पर जा रहे हैं
कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?
क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया है
सारी रंग बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्म हो गए हैं एकाएक
तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में ?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज़्यादा यह
कि हैं सारी चीज़ें हस्बमामूल
पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजरते हुए
बच्चे, बहुत छोटे छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं।
बच्चे काम पर जा रहे हैं
कवि: राजेश जोशी
प्रश्न 1: कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से आपके मन मस्तिष्क में जो चित्र उभरता है उसे लिखकर व्यक्त कीजिए।
उत्तर: कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से हमारे मन-मस्तिष्क में बाल-मजदूरी करते बच्चों की एक करुण एवं दयनीय तस्वीर उभरती है। मन में यह विचार आता है कि यह तो इन बच्चों की खेलने-कूदने की उम्र है, किंतु इन्हें भयंकर कोहरे में भी आराम नहीं है। उनका बचपन खो गया है। आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण सुबह-सुबह उठने के लिए और न चाहते हुए भी काम पर जाने के लिए ये बच्चे मज़बूर हैं।
प्रश्न 2: कवि का मानना है कि बच्चों के काम पर जाने की भयानक बात को विवरण की तरह न लिखकर सवाल के रूप में पूछा जाना चाहिए कि ‘काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?’ कवि की दृष्टि में उसे प्रश्न के रूप में क्यों पूछा जाना चाहिए?
उत्तर: कवि के अनुसार इसे प्रश्न की भाँति पूछा जाना चाहिए ताकि इसका कोई हल निकले। अकसर हम समस्याओं को विवरण की तरह लिखते हैं, अतः कोई हल नहीं निकलता । गंभीर समस्याओं को सवालों की तरह लिखे जाने से उसका जवाब भी मिल जाता है और समस्या का समाधान भी हो जाता है।
प्रश्न 3: सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से बच्चे वंचित क्यों हैं?
उत्तर: सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से बच्चों के वंचित रहने का मुख्य कारण उनकी गरीबी है। दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए भी इन बच्चों को इतनी मेहनत करनी पड़ती है कि सुख-सुविधा और मनोरंजन की कल्पना करना तक उनके लिए असंभव है।
प्रश्न 4: दिन-प्रतिदिन के जीवन में हर कोई बच्चों को काम पर जाते देख रहा/रही है, फिर भी किसी को कुछ अटपटा नहीं लगता। इस उदासीनता के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर: आज का मनुष्य बहुत ही स्वार्थी हो चुका है। उसे अपने अलावा दूसरों की कोई परवाह नहीं होती। वह अपनी परेशानियों को सुलझाने में इतना व्यस्त है कि किसी और की परेशानी की तरफ़ देखने तक की उसे फुर्सत नहीं है। उसके मन से मानवीय संवेदनाएँ भी मर चुकी हैं। इसलिए बच्चों को काम पर जाते हुए देखने के बावजूद किसीको कुछ अटपटा नहीं लगता।
प्रश्न 5: आपने अपने शहर में बच्चों को कब-कब और कहाँ-कहाँ काम करते हुए देखा है?
उत्तर: शहर में अक्सर बच्चे – (i) छोटी-बड़ी दुकानों में, कारखानों में काम करते हुए नज़र आते हैं। (ii) ढाबों में, चाय की दुकानों में बरतन साफ़ करते हुए नज़र आते हैं। (iii) बड़े-बड़े दफ्तरों में काम करते हुए नज़र आते हैं। (iv) सड़कों के किनारे जूते पॉलिश करते हुए दिखाई देते हैं। (v) घरों में भी अक्सर कम उम्र के बच्चों को ही नौकर के रूप में काम करते हुए देखा जाता है। (vi) अखबार, खिलौने, पानी की बोतलें, खाने की सामग्रियाँ बेचते हुए नज़र आते हैं।
प्रश्न 6: बच्चों का काम पर जाना धरती के एक बड़े हादसे के समान क्यों है?
उत्तर: बच्चों के हाथों ही इस दुनिया का भविष्य होता है। यह धरती कल बच्चों का ही है। ऐसी स्थिति में यदि उन्हें ही काम पर जाना पड़े तो मानव सभ्यता और दुनिया का विकास कैसे संभव होगा? ऐसी स्थिति में नुकसान केवल बच्चों का ही नहीं बल्कि संपूर्ण मानव जाति का और इस पूरी धरती का होगा। इसलिए बच्चों का काम पर जाना धरती के एक बड़े हादसे के समान है।
प्रश्न 7: आपके विचार से बच्चों को काम पर क्यों नहीं जाना चाहिए? उन्हें क्या करने के मौके मिलने चाहिए?
उत्तर: बच्चों को काम पर इसलिए नहीं भेजा जाना चाहिए क्योंकि काम पर जाना बच्चों का दायित्व नहीं होता। यह तो बड़ों का दायित्व है कि वे काम पर जाएँ और बच्चों का भविष्य सँवारें। बच्चों को तो पढ़ने और खेलने का पूरा अवसर मिलना चाहिए। यदि बच्चे ही काम पर जाएँगे तो उनके व्यक्तित्व का विकास कैसे हो सकेगा? पढ़ाई-लिखाई से दूर होने के कारण वे समझदार अथवा बुद्धिमान नहीं हो पाएँगे। भविष्य में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने में सक्षम नहीं हो पाएँगे। यदि बच्चे ही काम पर जाएँगे तो भविष्य के वैज्ञानिक, कलाकार, डॉक्टर, लेखक, कवि, विद्वान आदि आएँगे कहाँ से? इसलिए बच्चों को काम पर भेजा नहीं जाना चाहिए। बच्चों को तो पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने, घूमने-फिरने, नाचने-गाने का मौका मिलना चाहिए, जिससे उनकी आंतरिक और छिपी हुई प्रतिभा का विकास हो और आसानी के साथ भविष्य की कठिनाइयों का सामना करने में वे सक्षम हों।
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हमारे मन-मस्तिष्क में चिंता और करुणा का भाव उमड़ता है। करुणा का भाव इस कारण उमड़ता है कि इन बच्चों की खेलने-कूदने की आयु है किंतु इन्हें भयंकर कोहरे में भी आराम नहीं है। पेट भरने की मजबूरी के कारण ही ये । ठंड में सुबह उठे होंगे और न चाहते हुए भी काम पर चल दिए होंगे। चिंता इसलिए उभरी कि इन बच्चों की यह दुर्दशा कब समाप्त होगी? कब समाज बाल-मजदूरी से मुक्ति पाएगा? परंतु कोई समाधान न होने के कारण चिंता की रेखा गहरी हो गई
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