मुहावरे
मुहावरे
---- संग्रह: पुरुषोत्तम पोख्रेल
1. अंगूठा दिखाना: (कोई चीज देने से तिरस्कार के साथ इनकार कर देना): धर्मचंद ने कल कहा था-- किताब ले जाना, लेकिन आज जब लेने गया तो अंगूठा दिखा दिया।
2. अँधेरे मुँह या मुँह अँधेरे: (बड़े सवेरे) वह अँधेरे मुँह उठ कर चला गया और मुझे मालूम भी न हुआ।
3. अक्ल चरने जाना: (समझ का न रहना) अरे रमण, क्या तुम्हारी अक्ल चरने गई थी कि घर की चाबी लेकर चले गए, मैं यहाँ कब से बैठा हूँ।
4. अक्ल पर पत्थर पड़ना, अक्ल मारी जाना या अक्ल पर पर्दा पड़ना: (बुद्धि नष्ट होना) भाई रामू की अक्ल पर तो पत्थर पड़ गया है, कहा था दाल में नमक छोड़ने को और इसने छोड़ी चीनी।
5. अगर मगर करना: (बहाने बनाना अथवा टालमटोल करना) देखो भाई, अगर मगर करने से काम नहीं चलेगा साफ-साफ कहो चलोगे या नहीं?
6. अन्न-जल उठना: (जीविका का न रहना) नहीं महेश, मैं अपने मन से नहीं जा रहा हूँ। सच पूछो तो अब यहाँ से मेरा अन्न-जल उठ गया है।
7. अपनी-अपनी पड़ना: (अपनी अपनी चिंता में व्यग्र होना) अरे! वहाँ प्लेग फैला था प्लेग! सबको अपनी-अपनी पड़ी थी, मेरी खबर कौन लेता?
8. अपना उल्लू सीधा करना: (अपना स्वार्थ सिद्ध करना) विजय, तुम्हें क्या, कोई मरे या जिए, तुम तो अपना उल्लू सीधा किए जाओ।
9. आँख मिलाना या लड़ाना: (आँख से आँख मिलाना) जब उधर जाता हूँ तो उससे मेरी आँख लड़(मिल) ही जाती हैं।
10. आँचल में बात बाँधना या गाँठ में बात बाँधना: (बात को अच्छी तरह याद रखना, कभी ना भूलना) यह बात आँचल में बाँध रखो कि दूसरे के झगड़े में पड़ना बुरा है।
11. आँधी के आम: (बहुत सस्ता माल) अरे ले लो बाबू, ये तो आँधी के आम हैं, फिर नहीं मिलेंगे।
12. आँसू पीकर रह जाना: (भीतर ही भीतर दुखी होना) जब उसे अपने पति की याद आती है, तब वह आँसू पीकर रह जाती है।
13. आग में घी डालना: (क्रोध को और बढ़ाना) एक तो वे वैसे ही नाराज हैं, अब तुमसे शिकायत करके और आग में घी डाल रहे हो।
14. आगा-पीछा करना: (हिचकिचाना) अच्छे कामों को करने में आगा-पीछा नहीं करना चाहिए।
15. आगा-पीछा सोचना: (कार्य का परिणाम सोचना) काम आरंभ करने से पहले उसका आगा-पीछा सोच लेना चाहिए।
16. आधी बात: (तनिक-सी कड़ी बात) किसी से भी पूछ लो, मैंने इनसे आधी बात कही हो।
17. आपे से बाहर होना: (क्रोध आदि के आवेश में सुध खो बैठना) जरा-जरा सी बात पर आपे से बाहर होना ठीक नहीं।
18. इज्जत दो कौड़ी की होना: (इज्जत नष्ट होना) इन बदमाशों के साथ रहकर तुम्हारी इज्जत दो कौड़ी की हो जाएगी।
19. उठा न रखना: (कसर न छोड़ना) इनकी दवा करने में मैंने कुछ उठा न रखा, पर ईश्वर के सामने हम लाचार हैं।
20. उधेड़-बुन में लगना: (सोचना-विचारना) भैया प्रकाश, तुम मुझे क्यों कोसते हो? मैं तो दिन-रात इसी उधेड़-बुन में लगा रहता हूँ कि इतने बड़े परिवार का भरण-पोषण कैसे कर सकूँगा?
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