शब्दार्थ (सूरदास के पद)



       शब्दार्थ (सूरदास के पद)

(1) पहला पद "उधौ, तुम हौ ..... ज्यौं पागी।।" के कुछ  शब्दार्थ:

(i) बड़भागी ------ भाग्यशाली

(ii) अपरस ------ अछूता, अलिप्त, दूर 

(iii) तगा --------- धागा, बंधन 

(iv) नाहिन ------  नहीं

(v) अनुरागी ------ प्रेम में डूबा हुआ

(vi) पुरइनि पात --- कमल का पत्ता

(vii) देह ------------ शरीर 

(viii) दागी --------- दाग, धब्बा

(ix) माहँ --------  में 

(x) ताकौं ------- उसको 

(xi) प्रीति ------  प्रेम

(xii) पाऊँ --------- पाँव

(xiii) बोरयौ -------- डुबोया

(xiv) परागी ------- मुग्ध हुई, मोहित हुई 

(xv) अबला------ शक्तिहीन नारी, महिला 

(xvi) भोरी ------ भोली-भाली 

(xvii) गुर -------- गुड़ 

(xviii) चाँटी-------- चींटी

(xix) पागी ------ पगी हुई, पिघली हुई 

                       *****

(2) दूसरा पद "मन की मन ही ---- मरजादा न लही।।"  के कुछ शब्दार्थ:

(i) माँझ --------- में, अंदर 

(ii) अवधि ------ समय 

(iii) अधार ---- आधार 

(iv) आस ------ आशा 

(v) आवन की --- आने की 

(vi) बिथा ------- व्यथा 

(vii) जोग ------  योग 

(viii) विरह ----- वियोग, विछोह, जुदाई 

(ix) दही -------- जली, जल गई 

 (x) हुतीं -------- थीं

 (xi) गुहारी ----- रक्षा के लिए पुकारना

 (xii) जितहिं तैं ---- जहाँ से 

(xiii) उत तैं -------- वहाँ से 

(xiv) धार --------- योग की धारा

(xv) धीर --------- धीरज, धैर्य 

(xvi) धरहिं -------- रखें, धारण करें

(xvii) क्यौं -------- कैसे 

(xviii) मरजादा ---- मर्यादा, प्रतिष्ठा, सम्मान 

(xix) न लही ---- नहीं रही, न रखी

                  *****

(3) तीसरा पद "हमारैं हरि हारिल ..... जिनके मन चकरी।।" के कुछ शब्दार्थ:

(i) हरि ------------ भगवान श्रीकृष्ण

(ii) हारिल -------- एक पक्षी जो सदैव अपने पंजों में एक लकड़ी                                थामे रहता है 

(iii) लकरी ------- लकड़ी 

(iv) क्रम --------- कर्म 

(v) नंद-नंदन ----- श्रीकृष्ण, नंद का बेटा

(vi) उर ---------- ह्रदय 

(vii) पकरी ------ पकड़ी

(viii) दिवस-निसि ---- दिन-रात 

(ix) कान्ह-कान्ह ---- कन्हैया-कन्हैया 

(x) जक री --------- रटती रहती हैं, जपती रहती हैं 

(xi) जोग ----------- योग संदेश

(xii) करुई --------- कड़वी 

(xiii) सु ----------- वह 

(xiv) व्याधि ------- रोग, पीड़ा पहुँचाने  वाली वस्तु 

(xv) तिनहिं ------- उनको 

(xvi) मन चकरी ---- जिनका मन स्थिर नहीं रहता, दुविधायुक्त मन

                   ******

(4) चौथा पद "हरि हैं राजनीति ....... प्रजा न जाहिं सताए।।" के कुछ शब्दार्थ:

(i) पढ़ि आए ------------  सिख आए

(ii) मधुकर -------------- भ्रमर, भँवरा, कविता में उधौ अर्थात उद्धव

(iii) हुते ------------------ थे 

(iv) पठाए ---------------  भेजा

(v) आगे के -------------  पहले के 

(vi) पर हित ------------- दूसरों की भलाई के लिए

(vii) डोलत धाए --------- दौड़ते फिरते थे

(viii) फेर पाइहैं ---------- फिर से पा लेंगी 

(ix) अनीति ------------- अन्याय 

(x) आपुन ------------- स्वयं, खुद 

(xi) जे ----------------- जो 

(xii) जाहिं सताए ------ सताया जाए











।।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अभ्यास प्रश्नोत्तर (कक्षा: नौ)

संक्षिप्त प्रश्नोत्तरः व्याकरण (कक्षा: 9)

नेताजी का चश्मा/ स्वयं प्रकाश