कालिदास
पुष्पेषु जाती
नगरेषु काञ्ची
नारीषु रंभा
पुरुषेषु विष्णु:।
नदीषु गंगा
नृपतिषु राम:
काव्येषु माघः
कवि कालिदास:।।
का लि दा स
भारत के इतिहास में गुप्त वंश का शासन काल भारतीय राजनीतिक इतिहास का एक स्वर्णिम युग माना जाता है। इसी युग में कला, शिल्प, स्थापत्य, साहित्य, विज्ञान, व्यापार, वाणिज्य आदि विविध क्षेत्रों में भारत का सर्वांगीण विकास हुआ। उस काल के मठ-मंदिरों की कला या वास्तुशिल्प, विख्यात अजंता-इलोरा गुफाओं की भास्कर्य कला आज भी गुप्त युग में विकसित असाधारण शिल्पकला का परिचय प्रस्तुत करता है। इस युग में संस्कृत साहित्य की अत्यंत श्रीवृद्धि हुई। प्राचीन भारतवर्ष के अद्वितीय कवि कालिदास का आविर्भाव भी इसी समय की बात है।
भारत के प्राचीन काल में गुप्त वंश के राजा द्वितीय चंद्रगुप्त सम्राट विक्रमादित्य के नाम से भी जाने जाते थे। कहा जाता है कि कालिदास इन्हीं सम्राट विक्रमादित्य के सभा कवि थे और उनके नवरत्नों में अन्यतम रत्न थे। ज्यादातर इतिहासविदों का यह मानना है कि कालिदास ईस्वी चौथी शताब्दी के अंतिम काल से पांचवी सदी के प्रारंभिक काल तक जीवित थे।
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