दो बैलों की कथा / शब्दार्थ

 


दो बैलों की कथा

                   ---- प्रेमचंद

 शब्दार्थ:

(i) निरापद -------- सुरक्षित

(ii) सहिष्णुता ---- सहनशीलता

(iii) पछाईं -------- पालतू पशुओं की एक नस्ल

(iv) गोईं --------- जोड़ी

(v) कुलेल(कल्लोल) --- क्रीड़ा 

(vi) विषाद ------- उदासी

(vi) पराकाष्ठा ---- अंतिम सीमा 

(vii) गण्य-------- गणनीय, सम्मानित 

(viii) विग्रह ------ अलगाव 

(ix) पगहिया ----- पशु बाँधने की रस्सी 

(x) गराँव --------- फुँदेदार रस्सी जो बैल आदि के गले में पहनाई                                जाती है

(xi) प्रतिवाद ----- विरोध

(xii) टिटकार --- मुँह से निकलने वाला टिक-टिक का शब्द 

(xiii) मसलहत -- हितकर 

(xiv) रगेदना ---- खदेड़ना 

(xv) मल्लयुद्ध -- कुश्ती 

(xvi) साबिका --- वास्ता, सरोकार 

(xvii) कांजीहौस -- मवेशीखाना, वह बाड़ा जिसमें दूसरे का खेत                                आदि खाने वाले या लावारिस चौपाये बंद किए                              जाते हैं और कुछ दंड लेकर छोड़े या नीलाम                                  किए जाते हैं

(xviii) रेवड़ ---- पशुओं का झुंड

(xix) उन्मत्त --- मतवाला

(xx) थान ------ पशुओं के बाँधे जाने की जगह

(xxi) उछाह ---- उत्सव, आनंद











।।

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