रसखान के सवैये/ शब्दार्थ
रसखान के सवैये
शब्दार्थ:
(1) "मानुष हौं तो वही...... कालिंदी कूल कदंब की डारन।"
(i) मानुष ----- मनुष्य
(ii) मँझारन ---- मध्य में, बीच में
(iii) पाहन ------- पत्थर
(iv) पुरंदर ------- इंद्र
(v) कालिंदी ----- यमुना नदी
(vi) नित -------- नित्य, हमेशा, रोज
(vii) धेनु -------- गाय
(viii) गिरि ------ पर्वत
(ix) खग -------- पक्षी
(x) डारन ------- डालियाँ
(xi) बसेरो ------ निवास
(2) " या लकुटी अरु कामरिया....... कुंजन ऊपर वारौं।"
(i) लकुटी --------- लाठी
(ii) कामरिया ----- कंबल
(iii) कोटिक -------करोडों
(iv) कलधौत ----- सोना-चाँदी
(v) धाम ----------- घर, महल
(vi) करील ------- काँटेदार पौधा
(vii) तिहूँ पुर ----- तीनों लोक
(viii) तजि डारौं -- त्याग देना
(ix) तड़ाग ------- तालाब
(x) वारौं ---------- न्योछावर करना, त्याग करना
(xi) कुंजन ------- लताओं से बने घर
(xii) निहारौं ----- देखूँ
(xiii) बिसारौं --- भूल जाऊँ
(3) "मोर पखा सिर ऊपर .... अधरान धरी अधरा न धरौंगी।"
(i) मोरपखा -------- मोर का पंख
(ii) गुंज ------------- एक प्रकार का फूल
(iii) गरें ------------- गले में
(iv) पितंबर --------- पीला वस्त्र
(v) लकुटी ---------- लाठी
(vi) गोधन --------- गायें
(vii) ग्वारनि ------- ग्वाल-बालों के साथ
(viii) भावतो ------- अच्छा लगता है
(ix) स्वाँग ------------ रूप धारण करना, भेष बनाना
(x) अधरान ---------- होठों पर
(xi) धरौंगी ---------- रखूँगी
(xii) फिरौंगी -------- घुमूँगी
(4) "काननि दै अँगुरी....... सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।"
(i) काननि ----------- कानों में
(ii) अँगुरी ------------ उंगली
(iii) रहिबो ----------- रहूँगी
(iv) धुनि ------------- धुन
(v) मोहनि ----------- मोहित करने वाली
(vi) तानन ----------- तानों से, सुरों से
(vii) अटा ----------- अट्टालिका, महल, ऊँचे भवन की छत
(viii) गोधन --------- एक सुंदर लोकगीत
(ix) गैहै -------------- गाना गाए
(x) टेरि -------------- पुकारना
(xi) सिगरे ----------- सारे, समग्र
(xii) काल्हि --------- आनेवाला कल
(xiii) सम्हारी न जैहै--- सम्हाली नहीं जाएगी
।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें