जॉर्ज पंचम की नाक/प्रश्नोत्तर
जॉर्ज पंचम की नाक
लेखक: कमलेश्वर
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1: सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है?
उत्तर: सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह सरकारी तंत्र की पोल खोलती है। सरकारी कार्य कर्तव्यबोध के साथ नहीं किए जाते। सरकारी तंत्र मीटिंग करने एवं कार्यों को निचले स्तर के कर्मचारियों पर लादने में ही विश्वास रखता है।
प्रश्न 2: रानी एलिजाबेथ के दर्जी की परेशानी का क्या कारण था? उसकी परेशानी को आप किस तरह तर्कसंगत ठहराएँगे?
उत्तर: दर्जी परेशान था क्योंकि रानी के लिए महँगे सूट सिलाने के पश्चात वह खराब दिखें तो रानी के नाराज होने का भय था। इसके अलावा उसे यह भी चिंता थी कि जहाँ-जहाँ रानी को जाना था उसी देश की परंपरा अनुसार कपड़ों का चुनाव करके उनके पोशाक बनाने थे।
दर्जी की परेशानी बिल्कुल उचित है क्योंकि सिलाई में थोड़ी-सी भी कमी या लापरवाही होने पर उसे ही जिम्मेवार ठहराया जाता अथवा दंडित किया जाता।
प्रश्न 3: 'और देखते ही देखते नई दिल्ली का कायापलट होने लगा'-- नई दिल्ली की कायापलट के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए गए होंगे?
उत्तर: नई दिल्ली की कायापलट के लिए निम्नलिखित प्रयत्न किए गए होंगे:
(i) सार्वजनिक एवं ऐतिहासिक स्थलों को साफ-सुथरा किया गया होगा।
(ii) सरकारी इमारतों को रंगाया अथवा सजाया-सँवारा गया होगा।
(iii) जगह-जगह सुरक्षा का प्रबंध किया गया होगा।
(iv) सड़कों की साफ-सफाई और मरम्मत की गई होगी। सड़कें बड़ी और चौड़ी बनाई गई होंगी।
(v) पूरी दिल्ली को दुल्हन की तरह सजाया गया होगा।
प्रश्न 4: आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है--
(क) इस प्रकार की पत्रकारिता के बारे में आपके क्या विचार हैं?
उत्तर: इस प्रकार की पत्रकारिता के बल पर भले ही अखबार के पाठकों की संख्या बढ़ जाए परंतु यह अति अनावश्यक है। इससे देश अथवा जनता का कोई भला नहीं होता। इससे सिर्फ मनोरंजन ही प्राप्त होता है।
(ख) इस तरह की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालती है?
उत्तर: इस तरह की पत्रकारिता आम जनता और विशेषकर युवा पीढ़ी को केवल गुमराह करने का कार्य करती है। उनमें हीनमन्यता जगाती है। युवावर्ग अपनी पढ़ाई अथवा अपने कर्तव्य से विमुख होकर फैशन में ज्यादा रुचि लेने लगता है। कृत्रिम जीवनशैली अपनाने लगता है अथवा दिखावटीपन के प्रति आकर्षित होने लगता है। ऐसी पत्रकारिता आम जनता, विशेषकर युवा पीढ़ी को लक्ष्य और कर्तव्य से भटकाने वाली होती है।
प्रश्न 5: जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने क्या-क्या यत्न किए?
उत्तर: जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार सर्वप्रथम लाट जैसे पत्थर की तलाश करने हिंदुस्तान के प्रत्येक पहाड़ पर गया। परंतु उसे वैसा पत्थर नहीं मिला। भारतीय नेताओं की लाटों के नाक का नाप ढूँढा। सन् '42(बयालीस) में शहीद हुए बच्चों की मूर्तियों के नाक का नाप ढूँढा। किंतु वैसी नाक का नाप न मिलने पर अंत में वह जिंदा नाक लगाने के बारे में सोचने लगा।
प्रश्न 6: प्रस्तुत कहानी में जगह-जगह कुछ ऐसे कथन आए हैं जो मौजूदा व्यवस्था पर करारी चोट करते हैं। उदाहरण के लिए 'फाइलें सब कुछ हजम कर चुकी हैं।' 'सब हुक्कामों ने एक दूसरे की तरफ ताका।' पाठ में आए ऐसे अन्य कथन छाँटकर लिखिए:
उत्तर: प्रस्तुत कहानी में मौजूदा व्यवस्था पर चोट करने वाले कुछ अन्य कथन निम्नलिखित हैं--
(i) नई दिल्ली में सब कुछ था... किंतु नाक नहीं थी।
(ii) ...अगर यह नाक नहीं है तो हमारी भी नाक नहीं रहेगी...
(iii) विदेशों की सारी चीजें हम अपना चुके हैं-- दिल-दिमाग, उनके तौर-तरीके और रहन-सहन, सब कुछ।
(iv) पुरातत्व विभाग की फाइलों के पेट चीरे गए, लेकिन कुछ भी पता नहीं चला।
(v) एक की नजर ने दूसरे से कहा कि यह सब बताने की जिम्मेदारी तो तुम्हारी है, आदि।
प्रश्न 7: नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात पूरी व्यंग रचना में किस तरह उभर कर आई है? लिखिए।
उत्तर: नाक मानव शरीर का एक प्रमुख एवं महत्वपूर्ण अंग है। यह मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक भी है। विदेशी शासक जॉर्ज पंचम की लाट की कटी हुई नाक ब्रिटिश शासक अथवा शासन पर दिखाए गए अपमान और रोष का प्रतीक है। मूर्तिकार द्वारा भारतीय नेताओं की और शहीद बच्चों की मूर्तियों की नाक बड़ी पाना वास्तव में उन शहीदों के प्रति उनके द्वारा दिखाया गया सम्मान है। महारानी के सम्मान में कहानी के अंत में मूर्ति पर जिंदा नाक लगाया जाना अत्यंत अनुचित एवं निंदनीय कार्य है। अतः कहानी में शुरू से अंत तक नाक का प्रश्न मान सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक बना है।
प्रश्न 8: जॉर्ज पंचम की नाक पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक तक फिट न होने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है?
उत्तर: जॉर्ज पंचम की नाक पर किसी भी भारतीय नेता, भारतीय शहीद बच्चों तक की नाक फिट न होने की बात से लेखक यह संकेत करना चाहते हैं कि भारत और प्रत्येक भारतीय का मान-सम्मान और मर्यादा अंग्रेजों से बढ़कर है। बयालीस के शहीद बच्चों की नाक के नाप तक बड़े होना वास्तव में भारत के बच्चों तक का सम्मान भी जॉर्ज पंचम के सम्मान से बढ़कर होना दर्शाता है।
प्रश्न 9: अखबारों ने जिंदा नाक लगने की खबर को किस तरह से प्रस्तुत किया?
उत्तर: अखबारों ने जिंदा नाक लगने की खबर को इस तरह प्रस्तुत किया--
"और वह दिन भी आया।
जॉर्ज पंचम की नाक लग गई।
जॉर्ज पंचम के जिंदा नाक लगाई गई है... यानी ऐसी नाक जो कतई पत्थर की लगती ही नहीं थी।"
प्रश्न 10: "नई दिल्ली में सब था... सिर्फ नाक नहीं थी।" इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर: "नई दिल्ली में सब था... सिर्फ नाक नहीं थी।"-- इस कथन के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि आजाद भारत में सब कुछ था, पर भारतीय अधिकारियों के मन में आत्मसम्मान की भावना नहीं थी। जॉर्ज पंचम और अन्य अंग्रेज शासकों ने भारतीयों पर हमेशा अत्याचार ही किए। फिर भी भारतीय अधिकारी अपने आत्मसम्मान को भूलकर और देशवासियों पर हुए अंग्रेजों के दमन को भूलकर जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक लगाने और उनका सम्मान बचाने के लिए जुटे हुए थे।
प्रश्न 11: जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप क्यों थे?
उत्तर: जॉर्ज पंचम के लाट पर जिंदा नाक लगाई गई थी, जो किसी भी भारतीय के लिए एक लज्जाजनक और अपमानजनक बात थी। यह घटना हर भारतीय के दिल पर और आत्मसम्मान पर चोट करने वाली घटना थी। सत्य होते हुए भी इस बात को अखबार वालों ने न छाप कर इस कार्य का विरोध जताया। इसके अलावा इस सच को छापते ही दुनिया भर में भारत और भारतीयों की जग हँसाई भी होती। इसलिए जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप थे।
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