वाख/शब्दार्थ और प्रश्नोत्तर

 


वाख

         कवि: ललद्यद

शब्दार्थ: 

(i) भवसागर ------- संसाररूपी सागर

(ii) कच्चे सकोरे--- कच्ची मिट्टी से बने पात्र, कमजोर साधन 

(iii) हूक ------------- तड़प, वेदना 

(iv) अहंकारी ------- घमंडी 

(v) सम (शम) ----- संयमित

(vi) समभावी ------- समानता की भावना 

(vii) साँकल ---------- कुंडी

(viii) सुषुम-सेतु ------ सुषुम्ना नाड़ी का मध्य भाग

(ix) माझी ----------- नाविक, पार उतारने वाला, (कविता में) ईश्वर

(x) शिव ------------ भगवान, परमेश्वर 

(xi) साहिब ---------- स्वामी, ईश्वर 

(xii) कौड़ी न पाई --- कुछ प्राप्त नहीं हुआ 

(xiii) थल-थल ------- स्थल स्थल में, सर्वत्र 

(xiv) वाख ------------ चार पंक्तियों में लिखी गई कश्मीरी शैली

                                 की गाई जा सकने वाली कविता 

(xv) रस्सी कच्चे धागे की ---- कमजोर और नाशवान सहारे 

(xvi) जेब टटोली ---- (कविता में) आत्मालोचना की 

(xvii) उतराई --------- (कविता में) सत्कर्म रूपी मेहनताना, 

                                  उत्तर अथवा जवाब


प्रश्नोत्तर:

प्रश्न 1: 'रस्सी' यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है? 

उत्तर: ललद्यद की कविता 'वाख' में 'रस्सी' शब्द जीवन जीने के साधन अथवा सहारों के लिए प्रयुक्त हुआ है। वह स्वभाव से कच्ची अथवा अत्यंत कमजोर है।


प्रश्न 2: कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं? 

उत्तर: कवयित्री इस संसारिकता तथा मोह के बंधनों से मुक्त नहीं हो पा रही है। ऐसे में वह प्रभु की भक्ति सच्चे मन से नहीं कर पा रही है। उसे लगता है कि कच्चे, नाशवान और कमजोर शरीर के माध्यम से की जा रही उसकी सारी साधनाएँ व्यर्थ होती जा रही हैं। इसलिए उसके द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले सारे प्रयास विफल होते जा रहे हैं।


प्रश्न 3: कवयित्री का 'घर जाने की चाह' से क्या तात्पर्य है? 

उत्तर: 'घर जाने की चाह' से कवयित्री का तात्पर्य है -- परमात्मा के पास जाना, मोक्ष प्राप्त करना अथवा इस भवसागर से मुक्ति पाकर अपने ईश्वर की शरण में जाना। कवयित्री ललद्यद परमात्मा की शरण को ही अपना वास्तविक घर मानती है। 


प्रश्न 4: भाव स्पष्ट कीजिए:

(क) जेब टटोली कौड़ी न पाई। 

उत्तर: ईश्वर की खोज में कवयित्री जीवन भर कठोर साधना करती रही। ईश्वर प्राप्ति के लिए कठोर से कठोर तरीके अपनाती रही। परंतु उसे सफलता न मिली। इसलिए वह कहती है कि उसकी जेब खाली ही रही अर्थात उसके सारे प्रयास व्यर्थ हुए।

(ख) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, 

       न खाकर बनेगा अहंकारी।

उत्तर: आजीवन केवल सांसारिक सुख-सुविधाओं का उपभोग करने में व्यस्त व्यक्ति को कभी भगवान की प्राप्ति नहीं होती। वहीं निराहार रहकर कठोर उपवास, तपस्या अथवा साधना करने वाले भी अक्सर घमंडी बन जाते हैं और ऐसे अहंकारी व्यक्तियों से भी ईश्वर मिलना नहीं चाहते। इसलिए ईश्वर की साधना करने वालों को कवयित्री मध्य मार्ग अपनाने का सुझाव देती हैं। 


प्रश्न 5: बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है?

उत्तर: ईश्वर की साधना करने वालों को कभी अत्यधिक भोग-विलास में लिप्त नहीं रहना चाहिए और न ही अपने शरीर को सुखाकर साधना अथवा तपस्या करनी चाहिए। कभी  किसी बात का घमंड भी नहीं करना चाहिए। उन्हें मध्य मार्ग अपनाना चाहिए। तभी उनके लिए प्रभु का बंद द्वार खुलेगा।


प्रश्न 6: ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है?

उत्तर: उपर्युक्त भाव प्रकट करने वाली पंक्तियाँ हैं--

आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।

सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!

जेब टटोली, कौड़ी न पाई।

माझी को दूँ, क्या उतराई ?


प्रश्न 7: 'ज्ञानी' से कवयित्री का क्या अभिप्राय है? 

उत्तर: 'ज्ञानी' से कवयित्री का अभिप्राय उस व्यक्ति से है जो हर स्थान में ईश्वर का अस्तित्व अनुभव करता है, जो जाति, धर्म आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता, जो अपने हृदय में बसे परमात्मा के स्वरूप को समझता है और जिसने आत्मज्ञान की चेतना से अथवा अंतर्ज्ञान के माध्यम से ईश्वर को जान लिया है।













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