रस-निष्पत्ति/भाग 2
रस-निष्पत्ति/भाग-2
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1: शृंगार रस किसे कहते हैं? उदाहरण सहित लिखिए:
उत्तर: नायक-नायिका के ह्रदय में स्थित प्रेम अथवा रति नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है तो वहाँ शृंगार रस होता है।
शृंगार रस को सभी रसों में श्रेष्ठ और रसों का राजा माना जाता है। इसे 'रसराज' भी कहा गया है।
इस रस का स्थायी भाव 'रति' है।
शृंगार रस के दो भेद हैं-- (i) संयोग शृंगार और (ii) वियोग शृंगार।
शृंगार रस के कुछ उदाहरण:
(i) बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय।
सौंह करैं भौंहनु हँसै दैन कहैं नटी जाय।।
(संयोग शृंगार)
(ii) निसिदिन बरसत नैन हमारे।
सदा रहत पावस ऋतु हम पै जब ते श्याम सिधारे।
(वियोग शृंगार)
(iii) कहत नटत रीझत खिझत मिलत खिलत लजियात।
भरे भुवन में करत हैं नैनन ही सों बात।।
(संयोग शृंगार)
(iv) हे खग मृग हे मधुकर श्रेणी।
तुम देखी सीता मृगनयनी ।। (वियोग शृंगार)
प्रश्न 2: उदाहरण सहित हास्य रस की परिभाषा लिखिए:
उत्तर: साधारण से भिन्न व्यक्ति, वस्तु, आकृति, विचित्र वेशभूषा, असंगत विचार, प्रसंग, व्यवहार आदि को देखकर जहाँ सहज हँसी आ जाए तो वहाँ हास्य रस होता है।
'हास' हास्य रस का स्थायी भाव है।
हास्य रस के कुछ उदाहरण:
(i) कर्ज़ा देता मित्र को वह मूरख कहलाए।
महामूर्ख वो यार है जो पैसे लौटाए।।
(ii) हाथी जैसी देह है गैंडे जैसी खाल।
तरबूजे सी खोपड़ी खरबूजे से गाल।।
(iii) मैं ऐसा महावीर हूँ पापड़ तोड़ सकता हूँ ।
अगर गुस्सा आ जाए कागज मरोड़ सकता हूँ ।।
(iv) दूर युद्ध से भागते नाम रखा शूरवीर।
भागचंद के आज तक सोई है तकदीर।।
सोई है तकदीर बहुत से देखे भाले।
निकले प्रिय सुखदेव सभी दुख देनेवाले।।
कह काका कविराय आँकड़े बिल्कुल सच्चे।
बालकराम ब्रह्मचारी के बारह बच्चे।।
प्रश्न 3: वीर रस की परिभाषा लिखिए और उदाहरण भी दीजिए:
उत्तर: जब युद्ध या कठिन कार्यो को करने के लिए, कीर्ति प्राप्त करने के लिए मन में उत्साह की भावना जागृत होती है, उसे वीर रस कहते हैं।
'उत्साह' वीर रस का स्थायी भाव है।
उत्साह की अभिव्यक्ति जीवन के चार क्षेत्रों में मुख्यतः पाई जाती है-- युद्ध, धर्म, दया और दान। परंतु वीर रस की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति युद्ध में ही होती है।
वीर रस के कुछ उदाहरण:
(i) मैं सत्य कहता हूँ सखे सुकुमार मत जानो मुझे।
यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा मानो मुझे।
है और की तो बात ही क्या गर्व मैं करता नहीं।
मामा तथा निज तात से भी समर में डरता नहीं।।
(ii) तनकर भाला यूँ बोल उठा
राणा मुझको विश्राम न दे।
मुझको वैरी से हृदय क्षोभ
तू तनिक मुझे आराम न दे।।
(iii) दिया सब कुछ सहा सब कुछ
हरिश्चंद्र बिक गए स्वयं भी।
पत्नी पुत्र दास बन गए
तो भी धर्म हारा न कभी।
(iv) वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो
सामने पहाड़ हो, सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं, तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
प्रश्न 4 उदाहरण सहित करुण रस की परिभाषा लिखिए:
उत्तर: प्रिय व्यक्ति, वस्तु, वैभव आदि के नाश से, प्रेमपात्र के चिरवियोग से अथवा मृत्यु से जहाँ शोक भाव की परिपुष्टि होती है, वहाँ करुण रस होता है।
इसका स्थायी भाव 'शोक' है।
करुण रस के कुछ उदाहरण:
(i) अपनी तुतली भाषा में वह सिसक सिसक कर बोली
जलती थी भूख तृषा की उसके अंतर में होली
हा! सही न जाती मुझसे अब आज भूख की ज्वाला
कल से ही प्यास लगी है हो रहा ह्रदय मतवाला।
(ii) किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई
रानी विधवा हुई हाय! विधि को भी नहीं दया आई
...रानी शोक समानी थी।
(iii) एकाएक अर्थी पर
माँ को पड़ी देखकर
जीजी की गोद से कूद पड़ने के लिए
करके करुण रोर
रोकर लगाने लगी पूरा जोर
जाते हैं कहाँ वे अरे माँ को लिए।
(iv) कौरवों का श्राद्ध करने के लिए
याकि रोने को चिता के सामने
शेष अब है रह गया कोई नहीं
एक वृद्धा एक अंधे के सिवा।
प्रश्न 5: रौद्र रस किसे कहते हैं? उदाहरण सहित लिखिए: उत्तर: किसी विरोधी, शत्रु, अपराधी अथवा दुष्ट व्यक्ति के कार्य अथवा उसकी चेष्टाएँ, असाधारण अपराध, अपमान या अहंकार, पूज्यजनों की निंदा या अवहेलना आदि की प्रतिक्रिया में जिस क्रोध का संचार होता है, वही रौद्र रस के रूप में व्यक्त होता है। क्रोध के कारण उत्पन्न इंद्रियों की प्रबलता को रौद्र कहते हैं।
रौद्र रस का स्थायी भाव 'क्रोध' है।
रौद्र रस के कुछ उदाहरण:
(i) एक दिन न्यूयॉर्क भी मेरी तरह हो जाएगा
जिसने मिटाया है मुझे वह भी मिटाया जाएगा
आज ढाई लाख में कोई नहीं जीवित बचा
एक दिन न्यूयॉर्क में कोई नहीं बच पाएगा।
(ii) फिर दुष्ट दु:शासन समर में शीघ्र सम्मुख आ गया
अभिमन्यु उसको देखते ही क्रोध से जलने लगा
नि:श्वास बारंबार उसका उष्णतर होने लगा।
(iii) सुनहुँ राम जेहि शिवधनु तोरा।
सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा
न त मारे जैहहीं सब राजा।।
(iv) श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे,
सब शोक अपना भूलकर करतल युगल मलने लगे।
प्रश्न 6: भयानक रस की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए:
उत्तर: जब किसी भयानक वस्तु या आकार को देखने से, उसके बारे में सुनने से, भयप्रद घटना के स्मरण से, घातक परिणाम आदि की कल्पना आदि से मन में निहित भय की भावना पुष्ट हो जाती है, तब भयानक रस की निष्पत्ति होती है।
भयानक रस का स्थायी भाव 'भय' है।
भयानक रस के कुछ उदाहरण:
(i) एक ओर अजगरहिं लखि एक ओर मृगराय
विकल बटोही बीच ही परयो मूरछा खाए।
(ii) उधर गरजती सिंधु लहरियाँ कुटिल काल के जालों-सी
चली आ रही फेन उगलती फन फैलाए व्यालों-सी।
(iii) उस सुनसान डगर पर था सन्नाटा चारों ओर
गहन अँधेरी रात घिरी थी अभी दूर थी भोर
सहसा सुनी दहाड़ पथिक ने सिंह गर्जना भारी
होश उड़ गए सिर गया घूम हुईं शिथिल इंद्रियाँ सारी।
(iv) लंका की सेना तो कपि के गर्जन रव से काँप गई
हनुमान के भीषण दर्शन से विनाश ही भाँप गई।
प्रश्न 7: वीभत्स रस परिभाषा लिखिए और उदाहरण भी दीजिए:
उत्तर: गंदी, भद्दी, अरुचिकर वस्तु, प्रसंग अथवा घटनाओं के वर्णन से जब हृदय में घृणा की भावना पुष्ट हो जाती है तब वीभत्स रस की निष्पत्ति होती है।
'जुगुप्सा' (घृणा) वीभत्स रस का स्थायी भाव है।
वीभत्स रस के उदाहरण:
(i) लेकिन हाय मैंने यह क्या देखा
तलवों में बाण बिंधते ही
पीप भरा दुर्गंधित नीला रक्त
वैसा ही बहा
जैसा इन जख्मों से अक्सर बहा करता है।
(ii) सिर पर बैठ्यो काग आँख दोउ खात निकारत
खींचत जीभहिं स्यार अतिहिं आनंद उर धारत
गीध जाँघि को खोदि-खोदि कै मांस उपारत
स्वान आँगुरिन काटि-काटि कै खात विदारत।
(iii) गिद्ध चील सब मंडप छावहिं
काम कलोल करहिं और गावहिं।
(iv) कोउ अंतड़िन की पहिरी माल इतरात दिखावत
कोउ चरबी लै चोप सहित निज अंगनि लावत
कोउ मुंडनि लै मानि मोद कंदुक लौं डारत
कोउ रुंडनि पै बैठी करेजो कोरि निकारत
कोउ कड़ाकड़ हाड़ चाबि नाचत दै ताली
कोउ पीवत रुधिर खोपड़ी की करि प्याली।
प्रश्न 8 उदाहरण सहित अद्भुत रस की परिभाषा लिखिए:
उत्तर: किसी असाधारण, आश्चर्यजनक एवं विचित्र वस्तु, व्यक्ति, घटना आदि को देखकर अथवा सुनकर मानव हृदय में जो आश्चर्य का भाव जागृत होता है, वही अद्भुत रस में परिणत होता है।
'विस्मय' अद्भुत रस का स्थायी भाव है।
अद्भुत रस के कुछ उदाहरण:
(i) अखिल भुवन चर अचर सब हरि मुख में लखि मातु।
चकित भई गदगद बचन विकसित दृग पुलकातु।।
(ii) एक अचंभा देख्यो रे भाई
ठाड़ा सिंह चरावे गाई
जल की मछली तरुवर ब्याई
पकड़ी बिलाइ मुरगै खाई।।
(iii) सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।
सारी की ये नारी है कि नारी की ये सारी है।।
(iv) आगे नदिया खड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।।
प्रश्न 9: शांत रस किसे कहते हैं? उदाहरण सहित लिखिए:
उत्तर: संसार की निस्सारता अथवा नश्वरता का अनुभव करने से मानव हृदय में वैराग्य की भावना उत्पन्न होती है। मन में वैराग्य उत्पन्न होने पर शांत रस की निष्पत्ति होती है।
भक्तों के मन में परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होने पर जो आनंद अथवा शांति मिलती है, वहाँ भी शांत रस की निष्पत्ति होती है। शांत रस की स्थिति में न दुख होता है, न इच्छा होती है और न राग-द्वेष ही होता है।
'शांतोपि नवमो रस:'
अर्थात-- साहित्य में प्रसिद्ध नवरसों में से शांत रस को नवम और अंतिम रस माना गया है।
वैराग्य, निर्वेद अथवा शम-- शांत रस के स्थायी भाव हैं।
शांत रस के कुछ उदाहरण:
(i) देखी मैंने आज जरा
हो जावेगी क्या ऐसी ही मेरी यशोधरा
हाय मिलेगा मिट्टी में वह वर्ण सुवर्ण खरा
सुख जावेगा मेरा उपवन जो है आज हरा भरा।
(ii) मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै।
जैसे उड़ी जहाज को पंछी पुनि जहाज पै आवै।।
(iii) मन रे तन कागद का पुतला।
लागै बूँद बिनसि जाए छिन में गरब करै क्यों इतना।।
(iv) जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाहिं।
सब अँधियारा मिटि गया जब दीपक देख्या माहिं।।
प्रश्न 10: उदाहरण सहित वात्सल्य रस की परिभाषा लिखिए:
उत्तर: पुत्र, बालक, शिष्य, अनुज आदि के प्रति और उनकी मोहक बातों और गतिविधियों में स्वाभाविक आकर्षण होता है। इस आकर्षण में निहित स्नेह अथवा प्रेमभाव की व्यंजना में ही वात्सल्य रस की निष्पत्ति होती है।
वत्सलता अथवा बच्चों के प्रति स्नेह वात्सल्य रस का स्थायी भाव है।
वात्सल्य रस के कुछ उदाहरण:
(i) चलत देखि जसुमति सुख पावै।
ठुमुकि ठुमुकि पग धरनी रेंगत, जननी देखि दिखावै।
(ii) मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो।
ख्याल परे ये सखा सबै मिलि बरवश मुख लपटायो।
मैं बालक बहियन को छोटो छींको केहि बिधि पायो।
(iii) जसोदा हरि पालने झुलावैं।
हलरावैं दूलरावैं मल्हावैं जोइ सोइ कछु गावैं।
मेरे लालको आवरी निंदरिया काहे न आन सुलावैं।
तू काहे नहिं बेगहिं आवै तोको कान्ह बुलावैं।।
(iv) तुझे सूरज कहूँ या चंदा, तुझे दीप कहूँ या तारा।
मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राजदुलारा।।
प्रश्न 11: भक्ति रस किसे कहते हैं? उदाहरण सहित लिखिए:
उत्तर: जो भाव मानव मन में ईश्वर विषयक प्रेम नामक स्थायी भाव को जागृत करता है, उसे भक्ति रस कहते हैं। भक्ति रस के दौरान भक्त केवल भगवान का सान्निध्य पाना चाहता है।
भगवत् रति अर्थात भगवान के प्रति प्रेम भक्ति रस का स्थायी भाव है।
भक्ति रस के कुछ उदाहरण:
(i) मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।
(ii) राम सौं बड़ो है कौन मोसो कौन छोटो।
राम सौं खरो है कौन मोसो कौन खोटो।।
(iii) हमारैं हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम वचन नंदनंदन उर यह दृढ़ करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस निसि कान्ह कान्ह जकरी।
(iv) पायो री मैंने राम रतनधन पायो।
वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु किरपा करी अपनायो।
।।
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