ध्वनि/सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

 



ध्वनि

--कवि: सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'


अभी न होगा मेरा अंत
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसंत--
अभी न होगा मेरा अंत

हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ, कोमल गात।
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर।

पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,

द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
हैं वे मेरे जहाँ अनंत--
अभी न होगा मेरा अंत।







।।

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