कबीरदास के कुछ लोकप्रिय दोहे
कबीरदास के कुछ लोकप्रिय दोहे
[1]
दुःख में सुमिरन सब करे ,सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे को होय।।
[2]
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ।।
[3]
साईं इतना दीजिये जामें कुटुम्ब समाये ।
मैं भी भूखा न रहूँ ,साधु न भूखा जाये ।।
[4]
निंदक नियरे राखिये, आँगनि कुटी छवाय ।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।
[5]
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप ।
अति का भला न बरसना , अति की भली न घूप ।।
[6]
तिनका कबहु ना निंदिये ,जो पाँव तलि होय ।
कबहु उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय ।।
[7]
मालि आवत देखि के कलियाँ करे पुकार ।
फूले फूले चुन लिये,काल्ह हमारि बार ।।
[8]
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में परलय होयेगी , बहुरि करेगा कब ।।
[9]
जिन खोजा तिन पाइयाँ , गहरे पानी पैठ ।
मैं बपुरो बूड़न डरा, रहा किनारे बैठ ।।
[10]
कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूँढत बन माही।
ऐसो घट– घट राम हैं, दुनिया देखे नाही ।।
[11]
पानी कर बुदबुदा, अस मानुस की जात।
एक दिन छिप जायेगा, ज्यों तारा प्रभात ।।
[12]
गुरु गोविंद दोउ खड़े काको लागूँ पाय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय ।।
[13]
जाति न पूछो साधु की,पूछ लीजिये ज्ञान ।
मोल करो तरवार का , पड़ा रहन दो म्यान ।।
[14]
साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार–सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय ।।
[15]
धीरे– धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, रितु आये फल होय ।।
[16]
माला फेरत जुग भया, फिरा न मनका फेर ।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर ।।
[17]
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूँगी तोहे ।।
[18]
ऐसी बानी बोलिये ,मन का आप खोय ।
औरों को शीतल करे ,आपहुँ शीतल होय ।।
[19]
जहाँ दया तहँ धर्म है, जहाँ लोभ तहँ पाप ।
जहाँ क्रोध तहँ काल है, जहाँ क्षमा तहँ आप ॥
[20]
कबीरा ते नर अन्ध हैं, जे गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
[21]
रात गँवाया सोय करि, दिवस गँवाया खाय ।
हीरा जनम अनमोल था, कौड़ी बदले जाय ॥
[22]
दुर्लभ मानुष जनम है, देह न बारम्बार ।
तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार ॥
[23]
दुर्बल को न सताइए, जाकि मोटी हाय ।
बिना जीव की साँस सों, लौह भस्म हो जाय ॥
[24]
प्रेम न बाड़ी उपजै, प्रेम न हाट बिकाय ।
राजा प्रजा जेहि रुचें, शीश देई ले जाय ॥
[25]
ज्यों तिल माँही तेल है, ज्यों चकमक में आग ।
तेरा साँई तुझमें, बस जाग सके तो जाग ॥
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