कहानी लेखन
कहानी 1
बुद्धि ही बल है
प्राचीन समय की बात है। किसी जंगल में एक पेड़ पर कौए का जोड़ा रहता था। दोनों कौए अपने बच्चों के साथ आनंदपूर्वक रह रहे थे। उसी पेड़ की बिल में एक काला साँप भी रहता था। एक दिन दोनों कौए दाना चुगने कहीं निकल गए थे। कौए जब अपने घोंसले में वापिस आए तो अपने बच्चों को न पाकर बहुत दु:खी हुए। उन्होंने अपने बच्चों के पंख साँप की बिल में देखे। दोनों कौए सर्प के पास गए और बोला-- हे सर्प देवता, हम आपके पड़ोसी हैं। पड़ोसियों पर तो आपको दया रखनी चाहिए थी। साँप ने जब कौओं की बात को सुना तो गुस्से के मारे फन उठाकर फुफकारने लगा। कौओं ने सोचा कि इस समय इस मूर्ख के निकट यहाँ रुकना ठीक नहीं होगा। वे तुरंत उड़कर अपने घोंसले में जा बैठे।
दोनों कौओं ने सोचा कि या तो हम यहाँ से चले जाएँ या इस सर्प को जान से मार दें। सर्प का हमारे साथ रहना ठीक नहीं। वे सर्प को समाप्त करने के बारे में सोचने लगे। कुछ समय के पश्चात् उन्हें एक उपाय सूझा। एक कौआ पेड़ से उड़ा और पास के तालाब पर गया जहाँ एक राजकुमार स्नान कर रहा था। उसने सोने के कुछ आभूषण अपने कपड़ों के ऊपर रखे थे। कौए ने उनमें से एक आभूषण को उठा लिया और उड़ चला। राजकुमार के अंगरक्षकों ने कौए का पीछा किया। कौए ने जल्दी से उस आभूषण को साँप की बिल के ऊपर रख दिया। अंगरक्षक वृक्ष पर चढ़कर आभूषण उठाने लगे। वहाँ पर बैठे हुए साँप को देखकर उन्होंने तलवार से उसको मार दिया। इस प्रकार चतुर कौए ने अपनी बुद्धि के बल से अपने से अधिक शक्तिशाली शत्रु को समाप्त कर दिया और अब वे दोनों कौए वहाँ आराम से रहने लगे।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि बुद्धिबल से बड़ी समस्याओं को भी आसानी के साथ सुलझाया जा सकता है।
======================
कहानी 2
टोपी वाले की सूझ
एक समय की बात है। एक शहर में एक टोपी बेचने वाला रहता था। वह रोज बहुत सारी टोपियाँ बेचता था। उसके पास रंग-बिरंगी और सुंदर-सुंदर टोपियाँ थीं। वह सुबह से लेकर शाम तक फेरी लगा लगाकर टोपियाँ बेचा करता था। वह कभी गाँव तो कभी शहर जा-जाकर टोपियाँ बेचता था।
एक दिन उसने दूर के गाँव में जाकर टोपी बेचने के बारे में सोचा। गाँव में जाने के लिए उसे एक जंगल पार करना था। चलते-चलते वह थक गया तो उसने सोचा क्यों न थोड़ा आराम ही कर लिया जाए। वह एक पेड़ के नीचे बैठा और आराम करने लगा। आराम करते-करते उसकी आँख लग गई। जिस पेड़ के नीचे वह आराम कर रहा था, उसी पेड़ पर बहुत सारे बंदर रहते थे। सारे बंदर नीचे आए और फेरी वाले की टोपियाँ लेकर पेड़ पर चढ़ गए और टोपियों को पहन कर वे डालियों पर उछल-कूद करने लगे।
बंदरों की आवाज़ से टोपी बेचने वाले की नींद खुल गई और वह उठ गया। टोपी बेचने वाले ने देखा कि टोकरी में तो एक भी टोपी नहीं है। वह सोचने लगा कि, मेरी टोपियाँ कहाँ गईं। वह उदास हो गया। उदास होकर वह सोचने लगा--आज तो मैंने एक भी टोपी नहीं बेची और मेरी सारी टोपियाँ गायब हो गईं। उसने इधर-उधर सब जगह टोपियों को ढूँढा। फिर उसको एक बंदर दिखाई दिया जो टोपी पहने हुआ था। फिर उसको पेड़ पर और भी बंदर दिखे। उसको पता लग गया कि बंदरों ने उसकी सारी टोपियाँ ले ली हैं। उसने ऊपर हाथ कर बंदरों से कहा-- अरे मेरी टोपी दे दो। लेकिन बंदर कहाँ समझने वाले थे। बंदरों ने टोपी नहीं दिए। फेरीवाले ने सोचा-- बंदर तो नकलची होते हैं। क्यों न सूझ-बूझ से काम लिया जाए। फिर बंदरों को दिखाते हुए उसने अपने हाथ ऊपर किये, तो सभी बंदरों ने भी अपने हाथ ऊपर किये। उसने नीचे हाथ किया तो सभी बंदरों ने भी नीचे हाथ किया।
फिर उसने सोचा- कि जैसे-जैसे मैं कर रहा हूं, वैसे-वैसे ही बंदर कर रहे हैं। उसके पास एक टोपी थी, उसने वो टोपी टोकरी मे फेंक दी, तो सभी बंदरों ने भी अपनी-अपनी टोपी उतारी और टोकरी में फेंक दी। इस तरह फेरी वाले को अपनी सारी टोपियाँ वापस मिल गईं।
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि बल से बुद्धि बड़ी होती है और जो कार्य बलपूर्वक संपन्न नहीं किए जा सकते, उन्हें सूझ-बूझ के साथ किया जाना चाहिए।
============================================
कहानी लेखन 3
एकता में बल है
किसी गाँव में एक किसान रहता था। उसके चार बेटे थे और चारों आपस में लड़ते झगड़ते रहते थे। उनको लड़ता हुआ देखकर किसान को बड़ा दुख होता था, मगर वह कुछ कर नहीं पाता था। एक बार किसान बीमार पड़ गया। तब एक दिन उसने चारों बेटों को अपने पास बुलाया और एक लकड़ी का गट्ठर तोड़ने के लिए दिया। चारों बेटों ने गट्ठर को तोड़ने के लिए खूब जोर लगाया, किंतु चारों में से कोई भी उसे तोड़ न सका। अब किसान ने गट्ठर खोलकर चारों से एक-एक लकड़ी तोड़ने के लिए कहा। चारों ने बड़ी आसानी से एक एक लकड़ी तोड़कर पूरा गट्ठर तोड़ डाला।
किसान ने अपने बेटों को समझाया कि एकता में बड़ी शक्ति होती है। जब तक लकड़ियाँ एक साथ थीं, तब तक तुम में से कोई भी उन्हें नहीं तोड़ सका। उनको अलग करके तुमने सभी लकड़ियों को आसानी से तोड़ डाला। इसी प्रकार यदि तुम भी एक होकर रहोगे तो कोई भी तुम्हें किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचा सकेगा और अगर तुम ऐसे ही लड़ते हुए अलग-अलग रहोगे तो कोई भी तुम्हें हानि पहुँचा सकता है। इसलिए तुम्हें आपस में प्रेम से मिलकर रहना चाहिए।
।।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें