मेरी जननी मेरी जन्मभूमि
मेरी जननी मेरी जन्मभूमि
=======/===============================
पृष्ठ ii
=======================================
पृष्ठ iii
मेरी जननी मेरी जन्मभूमि
(बाल यात्रावृत्त)
घनश्याम राजकर्णिकार
विवेक सृजनशील प्रकाशन प्रा. लि.
काठमांडू, नेपाल
=======================================
पृष्ठ iv
मेरी जननी मेरी जन्मभूमि
विधा: बाल यात्रावृत्त
लेखक: घनश्याम राजकर्णिकार
संस्करण: प्रथम, 2077 (नेपाली संस्करण)
सर्वाधिकार: लेखक में
प्रकाशक: विवेक सृजनशील प्रकाशन प्रा. लि.
आवरण: युवक श्रेष्ठ
लेआउट: आनंद राउत
मुद्रण: बंगलामुखी अफसेट प्रेस
=======================================
पृष्ठ v
स्नेहासिक्त उपहार
यह बाल यात्रावृत्त मेरे पोते पोतियाँ--
आश्रय, ओजष, हृदयषा,
सुयेशा, रयान, सुवंश
और
श्रयान के लिए
--- घनश्याम राजकर्णिकार
======================================
पृष्ठ vi
प्रौढ़ यात्रा संस्मरण के रचनाकार के अनुभव जनित बाल यात्रावृत्त
मेरी जननी मेरी जन्मभूमि
वरिष्ठ यात्रावृत्तकार घनश्याम राजकर्णिकार इस बार लेखन का एक अलग ही स्वाद लेकर आए हैं। अपनी पहचान दिलाने वाली वाली विधा यात्रावृत्त को नवीन बालसाहित्य के आयाम में सजाकर उपस्थित हुए हैं। राजकर्णिका अचानक बाल यात्रावृत्त लेखक के रूप में सशक्त पहचान बनाकर पाठकों के बीच आ पहुँचे हैं। बाल बालिकाओं को लक्षित करते हुए उन्होंने अत्यंत स्तुत्य कार्य किया है, जिसके लिए वे अत्यंत धन्यवाद के पात्र बने हैं।
इस यात्राकृति का जन्म अमेरिका में निवास कर रही घनश्याम राजकर्णिकार की साढ़े तीन वर्षीय पोती हृदयषा के कारण हुआ। घनश्याम जी की अर्धांगिनी शांता राजकर्णिकार अक्सर अपने पति से अमेरिका जाने का आग्रह करती रहती थीं। घनश्याम जी उस पर ज्यादा महत्व नहीं देते थे। परंतु नातिन हृदयषा का बालसुलभ आग्रह एवं जिद्द वे टाल न सके। राजकर्णिकार जी की इस कृति का श्रेय पूर्णतया हृदयषा को ही जाता है। बाल मनोविज्ञान के भीतर का बाल स्नेह कितना प्रभावकारी और परिणाममुखी होता है, इस यात्राकृति के प्रकाशन ने उसी बात को चरितार्थ किया है।
विक्रम संवत 2063 (सन 2006) में कृतिकार की उम्र थी 65 वर्ष। इसी वर्ष अपनी नातिन के प्रति असीम स्नेह और वत्सलता की
======================================
पृष्ठ vii
भावनाओं के कारण उन्होंने अमेरिका की यात्रा की। इस यात्रा के लगभग 6 वर्ष बाद अर्थात विक्रम संवत 2069 (सन् 2012) में 'यात्रा अमेरिकाको: माया नेपालको' यात्रा कृति का लेखन और प्रकाशन हुआ। विक्रम संवत 2073 में इस कृति का द्वितीय और 2074 में तृतीय प्रकाशन भी हुआ। प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय संस्करण भी निकल चुके 'यात्रा अमेरिकाको: माया नेपालको' नामक यही कृति बाल संस्करण के रूप में 'घामै प्यारो आमै प्यारो' नाम से प्रकाशित हुई है। यह एक सुखद संयोग है। नातिन के कारण संभव बनी यात्रा और तत्पश्चात रचित यात्रा कृति 'यात्रा अमेरिकाको: माया नेपालको' के इस बाल संस्करण के प्रकाशन ने यात्रा साहित्य को ही एक विशिष्टता प्रदान की है। इस बाल संस्करण के माध्यम से उन्होंने न सिर्फ अपनी नातिन हृदयषा पर प्यार बरसाया है, अपितु संपूर्ण नेपाली बाल-बालिकाओं पर भी अपनी स्नेहवर्षा की है। मेरा मानना है कि इस यात्राकृति का प्रकाशन नेपाली बाल साहित्य जगत को प्रदान किया गया एक अनमोल उपहार है।
राजकर्णिकार जी को बाल यात्रावृत्तकार बनाने की पृष्ठभूमि उनकी नातिन हृदयषा ने ही तैयार की है। उसके स्नेह की आँच में वे न गले होते तो कहाँ यह यात्रा होती और कहाँ 'घामै प्यारो आमै प्यारो' जैसी यात्राकृति का लेखन एवं प्रकाशन संभव होता? इसलिए नातिन हृदयषा को मेरा ढेर सारा आशीर्वाद है। एक छोटी बालिका के कारण रची गई यह यात्राकृति बाल साहित्य के इतिहास में अपना सुदृढ़ पहचान बनाने में अवश्य सफल होगी, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है। इस कृति की सफलता की कामना करते हुए यात्रावृत्तकार के प्रति भी मैं अपनी हार्दिकता प्रकट करता हूँ।
प्रा. डाॅ. कृष्णप्रसाद दाहाल
पाटन संयुक्त कैंपस
त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू
=======================================
पृष्ठ viii
नेपाली बाल-बालिकाओं की जय हो
नेपाली साहित्य जगत में मैं विशेषकर यात्रा कृतिकार के रूप में संलग्न हूँ और परिचित हूँ। मैं इसी में रमता आया हूँ। मैंने 'यात्रा अमेरिकाको: माया नेपालको' नामक एक मूल कृति का लेखन किया था। बाल संस्करण के रूप में इसी कृति का पुनर्लेखन करते हुए बच्चों के समक्ष 'घामै प्यारो आमै प्यारो' शीर्षक देकर मैंने इस छोटे कलेवर की कृति प्रस्तुत की है। आशा करता हूँ, अमेरिका के संबंध में लिखा हुआ यह बाल साहित्य बच्चों के लिए अवश्य ही उपयुक्त एवं रुचिकर होगा।
अमेरिका में लगभग दो महीने की यात्रा के दौरान मैंने वहाँ के विभिन्न गाँव-शहरों की खूब यात्राएँ कीं। खूब घूमा। अमेरिका एवं अमेरिकियों के बारे में बहुत सारी बातों का, बहुत सारे तथ्यों का पता चला। उनके संबंध में लिखी गई बातें हमारे किशोर-किशोरियों को अवश्य ही कुछ आनंद एवं सुखकर अनुभूति दे सकने में सफल होंगी, इस बाल यात्रा कृति से मेरी यही अपेक्षा है।
इस पुस्तक के विभिन्न पृष्ठों में रखी हुईं कुछ तस्वीरें मेरे द्वारा ही खींची गई हैं और कुछ गूगल इंटरनेट से भी साभार ली गई हैं।
अंत में कृपापूर्वक इस पुस्तक का प्रकाशन करने के लिए विवेक सृजनशील प्रकाशन को मैं हार्दिक धन्यवाद ज्ञापन करता हूँ। इस पुस्तक के संबंध में अपना बहुमूल्य मंतव्य प्रदान करने के लिए मैं प्रा. डॉ. कृष्ण प्रसाद दाहाल जी को भी हार्दिक धन्यवाद ज्ञापन करना चाहता हूँ।
भविष्य के कर्णधार संपूर्ण बाल-बालिकाओं के प्रति भी मैं अपना हार्दिक स्नेह एवं शुभ आशीर्वाद प्रदान करता हूँ।
-- घनश्याम राजकर्णिकार
कमलपोखरी, काठमांडू
वि.सं. 2077/11/01
=======================================
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें