अनुच्छेद लेखन
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बाल मजदूरी की समस्या
बाल मजदूरी से तात्पर्य ऐसी मजदूरी से है, जिसके अंतर्गत 5 से 14 वर्ष तक के बच्चे किसी संस्थान में कार्य करते हैं। जिस आयु में बच्चों को शिक्षा मिलनी चाहिए, उस आयु में वह किसी दुकान, रेस्टोरेंट, पटाखे की फैक्ट्री, हीरे तराशने की फैक्ट्री, शीशे के सामान बनाने की फैक्ट्री आदि में काम करते हैं। बाल मजदूरी के अनेक कारण होते हैं। शिक्षा का महत्व न समझ पाने के कारण अशिक्षित व्यक्ति अपने बच्चों को मजदूरी करने के लिए भेज देते हैं। जनसंख्या वृद्धि बाल मजदूरी का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। निर्धन परिवार के सदस्य पेट भरने के लिए छोटे-छोटे बच्चों को काम पर भेज देते हैं। भारत में बाल मजदूरी जैसी समस्या को गंभीरता से नहीं लिए जाने के कारण इसे प्रोत्साहन मिलता है। देश में कार्य कर रही सरकारी एवं गैर सरकारी और निजी संस्थाओं की समस्या के प्रति गंभीरता दिखाई नहीं देती। बाल मजदूरी की समस्या का समाधान करने के लिए सरकार कड़े कानून बना सकती है। समाज के निर्धन वर्ग को शिक्षा प्रदान करके बाल मजदूरी को प्रतिबंधित किया जा सकता है। जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण कर के बाल मजदूरी को नियंत्रित किया जा सकता है। ऐसी संस्थाओं को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए जो बाल मजदूरी का विरोध करती हैं या बाल मजदूरी करने वाले बच्चों के लिए शिक्षा से जुड़े कार्यक्रम चलाती है।
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साहित्य अध्ययन का महत्व
साहित्य सोते हुए मनुष्य को भी जागृत करने का सामर्थ्य रखता है। साहित्य कमजोर एवं शोषितों को उत्साहित करने का कार्य करता है। यह साहित्य ही है जिसने कई बार हारी हुई लड़ाइयों को भी जीतने में मदद की है। कहा भी गया है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। साहित्य देश की वास्तविक स्थिति का सजीव चित्रण करता है, जिससे प्रभावित होकर समाज के जागरूक लोग सामाजिक बुराइयों को पहचान कर, उनका कारण समझकर तथा उन्हें मिटाने के तरीके ढूँढ कर उन्हें समाप्त कर देते हैं। जिस समय भारतीय संस्कृति और सभ्यता को दुष्प्रभावित करने का षड्यंत्र किया जा रहा था, उस समय कबीरदास, तुलसीदास, भूषण, प्रेमचंद, रामधारी सिंह 'दिनकर' आदि साहित्यकारों ने जनता को अपनी रचनाओं के माध्यम से शिक्षित एवं संवेदनशील बनाने का कार्य किया। राष्ट्रीयता एवं मानवीय मूल्यों की रक्षा करने में अनेक साहित्यकारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। साहित्यकारों ने अपने राष्ट्रीय एवं नैतिक दायित्व को पहचाना तथा उसी के अनुसार कार्य किया। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि साहित्यकार का सामाजिक उत्तरदायित्व होता है। समाज के हित की दृष्टि से लिखा गया साहित्य ही श्रेष्ठ साहित्य कहा जा सकता है। साहित्य अध्ययन का अपना ही महत्व है।
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कंप्यूटर आज की जरूरत
कंप्यूटर वास्तव में विज्ञान द्वारा विकसित एक ऐसा यंत्र है, जो कुछ ही क्षणों में लाखों-करोड़ों गणनाए कर सकता है। कंप्यूटर ने मानव जीवन को बहुत सरल बना दिया है। कंप्यूटर द्वारा रेलवे टिकटों की बुकिंग बहुत आसान और समय बचाने वाली हो गई है। आज किसी भी बीमारी की जाँच करने, स्वास्थ्य का पूरा परीक्षण करने, रक्तचाप एवं हृदय गति आदि मापने में इसका भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। रक्षा क्षेत्र में प्रयुक्त उपकरणों में कंप्यूटर का बेहतर प्रयोग उन्हें और भी उपयोगी बना रहा है। आज हवाई यात्रा में सुरक्षा का मामला हो या यान उड़ाने की प्रक्रिया-- कंप्यूटर के कारण सभी जटिल कार्य सरल एवं सुगम हो गए हैं। संगीत हो या फिल्म, कंप्यूटर की मदद से इनकी गुणवत्ता को सुधारने में बहुत मदद मिली है। कंप्यूटर से कुछ हानियाँ भी हैं। कंप्यूटर पर आश्रित होकर मनुष्य आलसी प्रवृत्ति का बनता जा रहा है। कंप्यूटर के कारण बच्चे आजकल घर के बाहर खेलों में रुचि नहीं लेते और इस पर गेम खेलते रहते हैं। इस कारण उनका शारीरिक विकास ठीक से नहीं हो पाता। कंप्यूटर आज जीवन की आवश्यकता बन गया है। अतः इसका सही ढंग से प्रयोग कर हम अपने जीवन में प्रगति कर सकते हैं।
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