सूरदास की जीवनी 

                    -- पुरुषोत्तम पोख्रेल 

सूरदास हिंदी साहित्य जगत के भक्ति काल के एक अनन्य कवि थे। वह श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त और ब्रजभाषा के एक श्रेष्ठ कवि थे। उनका जन्म सन् 1478 में मथुरा, उत्तर प्रदेश के निकट रुनकता अथवा रेणुका क्षेत्र में हुआ था, ऐसी मान्यता है। दूसरी मान्यता के अनुसार उनका जन्म  दिल्ली के पास सीही नामक ग्राम में एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह बहुत बड़े विद्वान थे। सूरदास के पिता का नाम रामदास था और वह गायक थे। 

कृष्ण की भक्ति में लीन होकर सूरदास गौघाट, मथुरा में आकर रहने लगे थे। वहीं उनकी भेंट महाप्रभु वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने ही उन्हें कृष्ण लीला के पदों की रचना करने और गाने का आदेश दिया था। सूरदास अष्टछाप के कवियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। वह श्रीनाथजी के मंदिर में नियमित भजन-कीर्तन करते थे। सूरदास की मृत्यु गोवर्धन मथुरा के निकट पारसौली ग्राम में सन् 1583 में हुई थी। 'आईने अकबरी' ग्रंथ के अनुसार सूरदास अकबर के दरबारी संगीतज्ञ थे। 

एक बहुप्रचलित मान्यता के अनुसार सूरदास जन्म के अंधे थे। किंतु अपनी काव्य रचनाओं में उन्होंने कृष्ण की बाल लीलाओं का, राधा कृष्ण के रूप-सौंदर्य का जिस तरह वर्णन और चित्रण किया है, सूक्ष्म पर्यवेक्षण क्षमता जिस तरह प्रदर्शित की है उसे देखते हुए आज के अधिकतर विद्वान उन्हें जन्मांध स्वीकार नहीं करते। 

'सूरसागर', 'साहित्य लहरी' और 'सुरसारावली' उनके द्वारा रचित सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ हैं। 'सूरसागर' के बारे में कहा जाता है कि इसमें उनकी सवा लाख पद रचनाएँ संग्रहित थीं। परंतु आज सात-आठ हजार पद ही मिलते हैं।

सूरदास 'वात्सल्य' और 'शृंगार' रस के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। उनकी रचनाओं में कृष्ण की बाल लीलाओं का कृष्ण और गोपियों के बीच का सहज मानवीय प्रेम संबंध का अनुपम वर्णन देखा जाता है।उनकी कविताओं में ब्रजभाषा का अत्यंत निखरा हुआ रूप देखा जाता है।


 सूरदास के बारे में कुछ तथ्य

*सूरदास भगवान श्री कृष्ण के अनन्य उपासक थे।

* वे ब्रजभाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं।

* सूरदास जी को वात्सल्य रस का सम्राट माना जाता है।

*उन्होंने अपनी रचनाओं में शृंगार और शांत रसों का भी बड़ा ही मर्मस्पर्शी वर्णन किया है।

* हिंदी साहित्य के आकाश में महाकवि सूरदास की ख्याति सूर्य की भाँति है। इसीलिए इनके संबंध में एक दोहा बहुत प्रचलित हुआ --

        सूर   सूर   तुलसी   ससि,   उडुगन   केशवदास।

        अब के कवि खद्योत सम, जहँ तहँ करत प्रकाश।।

* 'आईने अकबरी' तथा 'मुतखबुत-तवारीख' के अनुसार सूरदास अकबर के दरबारी संगीतज्ञ माने जाते हैं।

* सूरदास ने भगवत भक्ति के साथ शृंगार को भी जोड़ कर शृंगार रस के संयोग एवं वियोग पक्षों का जितना अतुलनीय वर्णन किया है वैसा वर्णन अन्य भक्त कवियों के काव्य में दुर्लभ है।

 *आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने सूरदास की कवित्व शक्ति की अद्भुत प्रशंसा करते हुए लिखा है--

'सूरदास जब अपने प्रिय विषय का वर्णन शुरू करते हैं तो मानो अलंकार शास्त्र हाथ जोड़कर उनके पीछे पीछे दौड़ा करता है, उपमाओं की बाढ़ आ जाती है, रुपकों की वर्षा होने लगती है।'

* सूरदास को हिंदी साहित्य का महाकवि माना जाता है।उन्होंने भाव और भाषा की दृष्टि से हिंदी साहित्य जगत को सुसज्जित ही नहीं किया, कृष्ण काव्य की विशिष्ट परंपरा को भी जन्म दिया।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अभ्यास प्रश्नोत्तर (कक्षा: नौ)

संक्षिप्त प्रश्नोत्तरः व्याकरण (कक्षा: 9)

नेताजी का चश्मा/ स्वयं प्रकाश