निबंध लेखन/कक्षा 9 और 10

 


श्रम का महत्त्व

परिश्रम ही मनुष्य जीवन का सच्चा सौंदर्य है । संसार में प्रत्येक प्राणी सुख चाहता है । संसार-चक्र सुख की प्राप्ति के लिए चल रहा है । संसार का यह चक्र यदि एक क्षण के लिए रुक जाए तो प्रलय हो सकती है ।

इसी परिवर्तन और परिश्रम का नाम जीवन है । हम देखते हैं कि निर्गुणी व्यक्ति गुणवान् हो जाते है; मूर्ख बड़े-बड़े शास्त्रों में पारंगत हो जाते हैं; निर्धन व्यक्ति धनवान बनकर सुख व चैन की जिंदगी बिताने लगते हैं । यह किसके बल पर होता है ? सब श्रम के बल पर ही न । ‘श्रम’ का अर्थ है- तन-मन से किसी कार्य को पूरा करने के लिए प्रयत्नशील होना ।

जिस व्यक्ति ने परिश्रम के बल पर आगे बढ़ने की चेष्टा की, वह निरंतर आगे बढ़ा । मानव-जीवन की उन्नति का मुख्य साधन परिश्रम है । जो मनुष्य जितना अधिक परिश्रम करता है, उसे जीवन में उतनी ही अधिक सफलता मिलती है ।

जीवन में श्रम का अत्यधिक महत्त्व है । परिश्रमी व्यक्ति कै लिए कोई कार्य कठिन नहीं । इसी परिश्रम के बल पर मनुष्य ने प्रकृति को चुनौती दी है- समुद्र लाँघ लिया, पहाड़ की दुर्गम चोटियों पर वह चढ़ गया, आकाश का कोई कोना आज उसकी पहुँच से बाहर नहीं ।

वस्तुत: परिश्रम का दूसरा नाम ही सफलता है । किसी ने ठीक ही कहा है:

"उद्योगिनं पुरुष सिंहमुपैति लक्ष्मी:
दैवेन देयमिति कापुरुषा: वदन्ति ।"

अर्थात् परिश्रमी व्यक्ति ही लक्ष्मी को प्राप्त करता है । सबकुछ भाग्य से मिलता है, ऐसा कायर लोग कहते हैं । कम बुद्धिवाला व्यक्ति भी श्रम के कारण सफलता प्राप्त कर लेता है और एक दिन विद्वान् बन जाता है । किसी ने ठीक ही कहा है--

”करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान ।
रसरी आवत जात तें सिल पर परत निसान ।।”

श्रम दो प्रकार का होता है-- शारीरिक और मानसिक । शरीर द्वारा किया गया श्रम शारीरिक कहलाता है । यह व्यायाम, खेल-कूद तथा कार्य के रूप में प्रकट होता है । शारीरिक श्रम मनुष्य को नीरोग, प्रसन्नचित्त और हृष्ट-पुष्ट बनाता है । मानसिक श्रम मनुष्य का बौद्धिक विकास करता है । दोनों का समन्वय ही जीवन में पूर्णता लाता है। अत: जीवन की सफलता श्रम पर निर्भर है ।

यूनान के डिमास्थनीज को पहले बोलना तक नहीं आता था, परंतु आगे चलकर अपने श्रम के बल पर वह एक उच्च कोटि का वक्ता बन गया । राइट बंधुओं ने जब जहाज उड़ाने की बात सोची थी तब सबने उनका उपहास उड़ाया था, लेकिन वे विचलित नहीं हुए । वे निरंतर प्रयत्न करते रहे । अंत में उन्हें श्रम का फल मिला।

राणा प्रताप और शिवाजी ने अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र कराने के लिए कितना श्रम किया ? महात्मा गांधी ने निरंतर प्रयत्न कर सदियों से गुलामी की जंजीरों में जकड़े भारत को स्वतंत्र कराया । जार्ज वाशिंगटन, अब्राहम लिंकन आदि की उन्नति का श्रेय श्रम को ही जाता है । ईश्वरचंद्र को ‘विद्यासागर’ कहलाने का गौरव श्रम के कारण ही प्राप्त हुआ ।

श्रम का महत्ता बताते हुए गांधीजी ने कहा था- “जो अपने हिस्से का परिश्रम किए बिना ही भोजन करते है, वे चोर हैं ।” बाइबिल में भी कहा गया है कि अगर कोई काम नहीं करता तो उसे भोजन नहीं करना चाहिए । गीता और उपनिषद् तो यहाँ तक कहती हैं कि हमें इस संसार में कर्म करते हुए अर्थात् परिश्रम करते हुए ही जीना चाहिए। 

संसार में सुख के सारे साधन और पदार्थ हैं, परंतु परिश्रमहीन मनुष्य उन्हें प्राप्त नहीं कर सकता । तुलसीदासजी ने ठीक ही कहा है:

”सकल पदारथ है जग माहीं । कर्महीन नर पावत नाहीं ।।”

परिश्रम से कठिन-से-कठिन कार्य सिद्ध हो जाते हैं । श्रम में ऐसी शक्ति छुपी रहती हें, जो मानव को सिंह की भाँति बलवान् बनाकर मार्ग की कठिनाइयाँ दूर कर देती है । श्रम ही सफलता की कुंजी है ।

अत: यदि हम अपना व्यक्तिगत विकास चाहते हैं, राष्ट्र की समृद्धि चाहते हैं या विश्व की प्रगति चाहते हैं, तो हमें परिश्रम को आधार-स्तंभ बनाना पड़ेगा ।


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बीता समय हाथ नहीं आता

यदि धन समाप्त या नष्ट हो जाए, उसे दोबारा कमाया या प्राप्त किया जा सकता है । किसी कारणवश मान-सम्मान भी जाता रहे तो प्रयत्न करके, अच्छे कार्य करके उसे दोबारा प्राप्त किया जा सकता है । ऊँचे से ऊँचा भवन यदि ढह जाए, निस्संदेह दुबारा खड़ा किया जा सकता है। यदि चली गई कोई वस्तु किसी भी मूल्य पर और किसी भी उपाय से वापिस या दोबारा नहीं पाई जा सकती तो उसका नाम है – गया हुआ वक्त अर्थात बीता हुआ समय जो कि पल-छिन, एक-एक सैकिण्ड, मिनट और साँस के बहाने से लगातार बीत ही रहा है ।

मजेदार बात यह है कि इसे इस प्रकार जाने या बीतने से छोटा-बड़ा कोई भी व्यक्ति चाहकर भी, प्रयत्नपूर्वक या अपना सर्वस्व लुटाकर भी रोक नहीं सकता । सचमुच कितना असमर्थ है प्राणी, इस निरन्तर बीते जा रहे वक्त के सामने। वक्त या समय को इसी कारण अमूल्य धन कहा गया है। वह एक बार जाकर कभी वापिस नहीं आया करता। इसी कारण इस धन को व्यर्थ न गँवाने, इसके हर पल, क्षण को संभाल कर रखने की बात कही जाती है । समय का सदुपयोग करने के उपदेश दिए जाते हैं ।

जो इस बात का ध्यान नहीं रख पाते अर्थात समय रूपी धन का सदुपयोग नहीं कर पाते, सिवा हाथ मलने के अलावा उनके पास कुछ नहीं रह जाता । समय का हर प्रकार से सदुपयोग करके ही मनुष्य उस तरह की स्थिति आने से बचा रह सकता है ।

अक्सर फेल हो जाने वाले विद्यार्थियों को कहते सुना देखा जाता है कि काश ! अध्यापक ने जिस दिन यह प्रश्न समझाया था, उस दिन मैं कक्षा अथवा विद्यालय में अनुपस्थित न होता, तो मैं अच्छे अंक अवश्य ला पाता अथवा पास तो अवश्य हो गया होता । लेकिन बाद में ऐसा सोचने-कहने से कुछ नहीं हुआ करता ।

अक्सर कहा जाता है कि रेल की सीट रिजर्व भी है, फिर भी घर से कुछ समय पहले ही चल पड़ना उचित हुआ करता है । हो सकता है कि कहीं रास्ता ही जाम हो या किसी अन्य कारण से ही रास्ता रूक रहा हो । पहले चलने वाला आशा कर सकता है कि वह रेल छूटने से पहले स्टेशन पहुँच जाएगा । परन्तु जो चला ही ठीक समय पर हो, उसकी राह में यदि कहीं किसी प्रकार की बाधा आ जाए तब उसके लिए समय पर पहुँचना संभव नहीं हो पाएगा । ऐसे लोगों को अकसर एकाध मिनट की देरी के कारण भी हाथ में अटैची थामे प्लेटफार्म छोड़कर गति पकड़ रही रेल के पीछे भागते हुए देखा जा सकता है ।

समय जाकर लौटने वाला नहीं, यह जान और मान करके ही समझदारों ने आज का काम कल पर न छोड़ने की प्रेरणा दी है । यह भी बताया है कि समय बड़ा निष्ठुर हुआ करता है । कभी किसी का सगा नहीं बना करता।

उसका रूख और महत्त्व न जानने वालों को ठोकर मार कर वह आगे बढ़ जाया करता है । तब उसकी पीठ तक को भी देख पाना संभव नहीं हो पाया करता । अत: उसे सगा न जान अपना हर काम समय रहते पूरा करने की कोशिश करो । ऐसा कर पाने वाला ही सफल हुआ करता है ।

आज का काम कल पर छोड़ने वाले धीरे- धीरे ऐसा ही करते रहने के आदि हो जाया करते हैं । इस प्रकार की आदत वास्तव में परेशानी बन जाया करती है । बाद में चाहकर भी उससे छुटकारा पा सकना संभव नहीं हो पाता । अत: इस प्रकार की आदत का शिकार बनना ही नहीं चाहिए । यदि जाने-अनजाने बन भी जाएँ तो प्रयत्न करके उससे छुटकारा पा लेना ही बुद्धिमानी है ।

समय का महत्त्व पहचान कर ही अंग्रेजी में कहा गया है Time is Gold अर्थात समय ही सोना है । उस स्वर्णधन को कालरूपी तस्कर चुराकर हमें बेकार न कर दे, गरीब और लाचार न बना दे, इसका ध्यान रखना हमारा कर्त्तव्य हो जाता है ।

हमारी आदतों से इस स्वर्णधन को हम गँवा भी सकते हैं या इसका सदुपयोग भी कर सकते हैं । सज्जनों, अनुभवी महापुरुषों का कहना यही है कि समय पर अपना हर काम साधकर ही इस धन का उचित उपयोग किया जा सकता है ।

याद रहे, व्यक्ति जिस किसी भी वस्तु का निरादर करता है एक दिन वही वस्तु अपने महत्त्व को अवश्य महसूस करवाती है । इसलिए विद्यार्थी वर्ग को चाहिए कि वे समय का विशेष ध्यान रखें, इसका सम्मान करें व महत्त्व समझें। 


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आलस्य: मनुष्य का शत्रु 

आलस्य एक ऐसा भाव है जो मनुष्य को कार्य करने की इज़ाज़त नहीं देता अर्थात मनुष्य कोई भी काम नहीं करना चाहता। उसे कोई भी कार्य करना अच्छा नहीं लगता शिवाय आराम फरमाने के। आलस मनुष्य को दुर्गम मार्ग पर ले जाता है। आलसी मनुष्य को अपनी कुर्सी से उठने में भी कठिनाई होती है। उसे लगता है की उसका काम कोई दूसरा व्यक्ति कर दे तो उसकी नींद पूरी हो जाए। इस तरह आलसी मनुष्य अपना दुश्मन खुद ही बन जाता है। उसे परिश्रम का महत्व समझ नहीं आता।

मनुष्य में कई तरह के दोष होते हैं-- जैसे, लालच, हिंसा, ईर्ष्या आदि। लेकिन सबसे भयानक आलस्य का रोग है। आलस मनुष्य को असफलता की राह पर ले जाता है। असफलता, अवनति और विनाश आलसी मनुष्य के परिणाम है। शेर भी जंगल में शिकार करके अपनी भूख मिटाता है। शेर जंगल का राजा होता है लेकिन वह भी परिश्रम करके जानवर का शिकार करता है। कहने का तात्पर्य है बिना कोई काम किये किसी को जीवन में लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती।

मेहनत करने से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। एक छोटा सा बच्चा भी एक साल के बाद मेहनत से चलने की कोशिश करता है। चाहे वह कितनी बार भी गिर जाए वह हार नहीं मानता। लेकिन आलसी इंसान की बात ही कुछ और है। आलसी मनुष्य भाग्य के सहारे जीता है। मेहनत पर उसे विश्वास नहीं है। कोई भी या किसी भी परिश्थिति में इंसान को भाग्य के भरोसे नहीं रहना चाहिए।

नसीब कब अंगूठा दिखाकर चली जाए पता नहीं चलता। ईश्वर ने हमें सही सलामत बनाया है। हमें इसका उपयोग करने की आवश्यकता है। इतनी खूबसूरत ज़िन्दगी में आलसी लोग बैठे और सोये हुए अपना गुज़ारा करते है। सुबह उठने में आलस, कोई छोटा-मोटा कार्य करने में आलस, टेबल पर मोबाइल पड़ा हुआ है उसे लेने में आलस। आलसी व्यक्ति को हर जगह धक्के खाने पड़ते हैं और हर वक्त कटु वचन सुनना  पड़ता है। लेकिन कोई असर हो तब न।

आज कल लोग इतने आलसी हो गए हैं कि उन्हें अपने छोटे-छोटे काम करने के लिए भी नौकर की ज़रूरत होती है। समय के अभाव के चलते कई लोगों को सही में वक़्त नहीं मिलता। लेकिन कुछ लोग वक़्त होते हुए भी अपना आलसीपन दिखाने में बाज़ नहीं आते। आलसी इंसान को यह लगता है उन्हें उतना ही मिलेगा जितना भाग्य में लिखा होगा। इतना मेहनत करके चाँद-तारे थोड़े ही न तोड़ लाएँगे। यह एक तरह की नकारात्मक मानसकता है, जो इंसान को काम करने से पीछे खींचती है। आलसी लोगों की बुरी संगति में पड़कर अच्छे खासे लोग भी कई बार आलसी बन जाते हैं।

आलसी लोगों को कितना भी समझाया जाए वह परिश्रम के महत्व को जानने और समझने की सोच तक नहीं रखते। आलसी लोग शीघ्र ही रोगग्रस्त हो जाते हैं। उनका खाली दिमाग शैतान के घर में परिवर्तित हो जाता है। जो लोग परिश्रमी होते हैं वे मेहनत करने में कभी भी पीछे नहीं हटते। जितनी भी असफलता मिले उन्हें स्वीकार करते हैं और ज़िन्दगी में और अधिक मेहनत करते हुए सफलता हासिल करके ही छोड़ते हैं।

असफलता सफलता का दूसरा चेहरा होता है। असफल होने पर हमें अपने काम को और ज़्यादा बेहतर ढंग से करना चाहिए। आलसी लोगों को यह समझ कहाँ! वह तो अपनी नाकामयाबी और असफलता दूसरों के सर मढ़ देते हैं।

भाग्य का सहारा लेने वाले आलसी लोगों को मूर्ख, कामचोर और डरपोक कहा जाता है। आलसी मनुष्य जल्दी ही रोगग्रस्त हो जाते है। समाज में एक मज़ाक बनकर रह जाते है। कोई भी व्यक्ति आलसी मनुष्य की इज़्ज़त नहीं करता, आलसी मनुष्य को कई मानसिक बीमारियाँ होने की सम्भावना होती है। ज़िन्दगी में ऐसा कोई कार्य नहीं जो मेहनत के बल बूते पर न हो। आलश्य जैसी मनोवृति अपने मन में आने नहीं देना चाहिए। स्वयं के इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना ज़रूरी होता है। धैर्य, मेहनत, हिम्मत, दृढ़संकल्प जैसे गुण मनुष्य को एक सकारात्मक जीवन की ओर आह्वान करते हैं।

विद्यार्थी जीवन में परिश्रम का महत्व पाठ में पढ़ाया जाता है कि परिश्रमी विद्यार्थी प्रतिशत की चिंता नहीं करते। वह हमेशा मेहनत करने को प्राथमिकता देते है। असफल होने पर भी परिश्रम का दामन नहीं छोड़ते हैं। यह एक सच्चे विद्यार्थी की पहचान है। कोई भी क्षेत्र हो, परिश्रम करके ही वे अपनी पहचान बनाते हैं। सच्चा इंसान उसे ही कहा जाता है। मेहनत का फल मीठा हो या कड़वा उससे फर्क नहीं पड़ता। मेहनती लोग परिश्रम से मित्रता कर लेते हैं। रात-रातभर जागकर अपना काम पूरा करते हैं। उन्हें अपनी या अपनी सेहत की कोई चिंता नहीं होती। बस मेहनत को संग लेकर जीवन के कठिन से कठिन चुनौतियों को पार कर लेते हैं।

आलसी व्यक्ति का न वर्तमान होता है और न ही भविष्य। इसलिए कहा जाता है--

"आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महारिपु:"

कहने का तात्पर्य है की मनुष्य के शरीर में रहने वाला आलस्य ही सबसे बड़ा दुश्मन है। आलस्य से बड़ा अभिशाप कोई दूजा नहीं है। परिश्रम करके मनुष्य को जो ख़ुशी मिलती है उसे बताया नहीं जा सकता। परिश्रम से मित्रता कर लेनी चाहिए। परिश्रमी इंसान अंतत: उदास नहीं होता। आलसी मनुष्य आज का काम कल पर छोड़ देता है। रोज-रोज के बहाने बनाता है, इसलिए कबीर जी ने कहा है:

"काल करै सो आज कर, आज करै सो अब.
पल में परलय होयगी ,बहुरि करैगो कब ।।"

अर्थात आज का काम कल पर नहीं छोड़ना चाहिए और आज ही अवश्य उसे पूरा करना चाहिए। आज का काम कल पर छोड़ेंगे तो कल का काम कब पूरा करेंगे।

आलसी व्यक्ति को समय का सदुपयोग भी करना नहीं आता। समय का उपहास करना इंसान पर भीषण भारी पड़ता है। आलसी व्यक्ति हमेशा निराश, हतास और उदास रहता है। उसे दूसरों पर अपने काम को करवाने के लिए निर्भर रहना पड़ता है जो निश्चित रूप से निंदनीय है। जीवन के कठिन से कठिन मार्ग पर इंसान को मेहनत और धैर्य से काम लेना होगा। महाभारत में कहा गया है कि “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” अर्थात हमें अपने कर्म करने चाहिए, फल की चिंता नहीं। कर्म करने के लिए सच्ची नियत, मेहनत और लगन की आवश्यकता होती है। आलस्य के मार्ग पर घोर अंधकार मात्र है। आलसी लोगों को जल्द आलस्य से मुक्ति पाकर परिश्रम के मार्ग पर चलना चाहिए।


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संयुक्त परिवार: आज की माँग

माता-पिता, दादा-दादी, चाचा-चाची, नाना-नानी, बुआ आदि सभी के लिए एक ही छत के नीचे, एक ही घर का चूल्हा हो उस परिवार को हम संयुक्त परिवार कहते हैं।

परिवार के दो स्वरूप होते हैं। पहला संयुक्त तथा दूसरा एकल। संयुक्त परिवार प्राचीन भारतीय समाज का मूल स्वरूप है जो समय के बदलाव के साथ खंडित होकर वर्तमान के एकल परिवारों के रूप में सामने आया है।

संयुक्त परिवार के कई सारे लाभ हैं, जिनमें परिवार के सभी सदस्यों की वित्तीय भागीदारी होती है तथा ऐसे परिवार का मुखिया परिवार के सबसे बुज़ुर्ग अथवा सबसे बड़े व्यक्ति को माना जाता हैं। घरेलू सम्पत्ति पर सभी सदस्यों का समान अधिकार होता है। एक ही रसोईघर में सभी का खाना पकता है तथा परिवार का मुखिया ही सभी की जरूरतों को पूरा करता है।

आधुनिक परिवारों में जिस तरह बड़ा बेटा शादी के बाद अपने बीबी-बच्चों के साथ अलग हो जाता हैं, संयुक्त परिवार में वह विवाह के पश्चात पत्नी के साथ उसी घर में रहता हैं। परिवार में अधिकतर निर्णय बड़े व्यक्ति अर्थात परिवार के मुखिया द्वारा ही लिए जाते हैं.

संयुक्त परिवार में व्यक्ति को कम परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उनमें एक सामूहिक सुरक्षा का भाव रहता है जो परिवार के विकास में कारगर होता है। परिवार में एक अलिखित संविधान अर्थात कानून कायदे होते हैं, जिनका पालन सभीको करना पड़ता हैं।

सभी के साथ सहयोग तथा समायोजन के साथ जीवन जीने का असली स्वरूप संयुक्त परिवार में ही देखने को मिलता है। बच्चों के लिए यह भरा-पूरा परिवार होता है, जिनमें उनके खेलने के लिए साथी तथा पढ़ने के लिए सहपाठी सहजता से मिल जाते हैं। लड़ाई-झगड़े होने पर बड़े उन्हें समझाने बुझाने का कार्य करते हैं।

परिवार में कोई बड़ा कार्य शादी आदि की जिम्मेदारी किसी एक की न होकर सभी सदस्यों की होती है तथा परिवार के इस स्वरूप में सभी की जरूरतों का विशेष ख्याल रखा जाता है।

बड़ों का सम्मान तथा छोटों से प्यार के गुण संयुक्त परिवार का मूल आधार होता है। आपसी विश्वास तथा सहयोग से ही इस प्रकार के परिवार चलते हैं। आधुनिक समय में घर से दूर नौकरी, शहरों की ओर पलायन, अधिक स्वेच्छा तथा स्वतंत्रता से जीवन जीने की तमन्ना के चलते संयुक्त परिवार खत्म होते जा रहे हैं।

शहरों में तो ये पूरी तरह से खत्म हो चुके हैं जबकि कुछ गाँवों में आज भी ऐसे परम्परागत परिवार रहते हैं जिनमें 30-50 सदस्य एक साथ मिलजुलकर रहते हैं।

एक तरफ संयुक्त परिवार के कई फायदे हैं तो इसके कुछ नुकसान भी हैं। अक्सर परिवार के इस तरह के स्वरूप में कुछ लोग परजीवी बनकर रह जाते हैं जो दूसरों की कमाई पर ही अपना जीवन जीना पसंद करते हैं। कई बार बड़े परिवार में अच्छा कार्य करने वाले अथवा बड़े लोगों की यातना सभी को सहनी पड़ती हैं। आपसी द्वंद्व के चलते माँ-बाप अपने बच्चे को अच्छे विद्यालय में स्वेच्छा से दाखिला नहीं दिलवा पाते हैं। परिवार में अधिकतर अहम निर्णय बड़े लोगों द्वारा ही लिए जाते हैं जिनमें प्रत्येक सदस्य की सहमति एवं सहभागिता नहीं होती है। इन तमाम बातों के बावजूद संयुक्त परिवार कई मायनों में एकल परिवारों से बेहतर है।

हमें चाहिए कि हम लुप्त होते परिवार के इस स्वरूप को बचाएँ तथा आपसी सहयोग तथा विश्वास के साथ इस प्रकार के परिवार का निर्माण करें जिसमें सभी का सहयोग तथा संतुलन से सफलतापूर्वक जीवन को जिया जा सके।



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