इतनी शक्ति हमें देना दाता

इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमज़ोर हो ना 
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना 
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमज़ोर हो ना
दूर अज्ञान के हो अँधेरे, तू हमें ज्ञान की रोशनी दे
हर बुराई से बचके रहें हम, जितनी भी दे भली ज़िन्दगी दे 
बैर हो न किसीका किसीसे, भावना मन में बदले की हो ना
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमज़ोर हो ना
हम न सोचें हमें क्या मिला है, हम ये सोचें किया क्या है अर्पण
फूल खुशियों के बाँटें सभी को, सबका जीवन ही बन जाए मधुवन 
अपनी करुणा का जल तू बहाकर, कर दे पावन हरेक मन का कोना
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमज़ोर हो ना 
हम अँधेरे में हैं रोशनी दे, खो न दें खुद को ही दुश्मनी से 
हम सज़ा पाएँ अपने किए की, मौत भी हो तो सह लें ख़ुशी से
कल जो गुज़रा है फिर से न गुज़रे, आने वाला वो कल ऐसा हो ना
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना 
हर तरफ़ ज़ुल्म है बेबसी है, सहमा-सहमा सा हर आदमी है 
पाप का बोझ बढ़ता ही जाए, जाने कैसे ये धरती थमी है 
बोझ ममता का तू उठा ले, तेरी रचना का ये अंत हो ना
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना 
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना 
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमज़ोर हो ना





शिवतांडवस्तोत्रम् 

(1)

जटाओं से है जिनके जल प्रवाह मात गंग का,
गले में जिनके सज रहा है हार विष भुजंग का
डमड्ड मड्ड मड्ड डमरु कह रहा शिवः शिवम्
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम्

(2)

सजल लहर भी हो गयी चपल चपल ललाट पर 
धधक रहा है स्वर्ण-सा अनल सकल ललाट पर
ललाट से ही अर्ध चंद्र कह उठा शिवः शिवम्
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम्

(3)

वे नन्दनी के वंदनीय,नन्दनी स्वरूप हैं
वे तीन लोक के पिता,स्वरूप एक रूप हैं
कृपालू ऐसे हैं के चित्त जप रहा शिवः शिवम्
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम्

(4)

समस्त प्राणियों में उनकी ही कृपाएँ बह रही 
भुजंग देवता के शीर्ष मणिप्रभाएँ कह रही 
दशा दशा शिवः शिवम् दिशा दिशा शिवः शिवम्
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम्

(5)

वे देव देवताओं के अनादि से गढ़े हुए
समक्ष उनके धूल पुष्प शीर्ष पर चढ़े हुए 
विभिन्न कामनाओं के हैं सम्पदा शिवः शिवम्, 
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम्

(6)

जो इंद्र देवता के भी घमंड का दमन करें
जो कामदेव की समस्त कामना दहन करें
वही समस्त सिद्धियाँ वही महा शिवः शिवम्
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम्

(7)

विशाल भाल पट्टिका पे अग्नि वे जलाए हैं 
वे भष्म काम देवता के शीर्ष पर लगाए हैं 
है नंदनी के रूप की तरल छटा शिवः शिवम्
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम् 

(8)

नवीन श्याम मेघ कंठ पर सवार घर चले 
वही तो बाल चंद्र नाग गंग शीश धर चले 
सकल जगत का भार भी चले उठा शिवः शिवम्
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम् 

(9)

है नील कंठ सौम्य नील पंकजा समान है,
मनुष्य क्या वे देवता के दंड का विधान है
समक्ष उनके काल स्वयं भज रहा शिवः शिवम्
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम्

(10)

सदैव सर्व मंगला कला के शीर्ष देवता 
वही विनाश काल है, वही जनक जनन सदा
नमन कृतज्ञ प्राण यह जपे सदा शिवः शिवम्
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम्

(11)

प्रचंड ताण्डवः प्रभः स्वयं विलीन देख कर
की नित्य देवता को नृत्य में प्रलीन देख कर 
मृदंग मुग्ध भावना से कह उठा शिवः शिवम्
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम् 

(12)

समक्ष उनके देव जन का एक ही विधान है 
समग्रता में उनकी दृष्टि एक ही समान है 
नमन नमन समानता के देवता शिवः शिवम्
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम् 

(13)

है मात्र एक कामना है मात्र एक वंदना
उन्हीं के दर्शनों से पूर्ण हो सभी उपासना 
न जाने कब करेंगे हम पे यह कृपा शिवः शिवम्
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम्  

(14)

चरण को जिनके अप्सराओं के पराग चूमते 
शरण में जिनके इंद्रालोक और देव झूमते 
अनादि से उमंग की परम्परा शिवः शिवम्
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम् 

(15)

प्रचंड अग्नि से समस्त पाप कर्म भष्म कर
महान अष्ट सिद्धि से सभी अधर्म भष्म कर 
विजय के मूल मन्त्र की है साधना शिवः शिवम्
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम् 

(16)

वही अघोर नाथ हैं उन्हीं से पूर्ण शुद्धता
निहित उनके जाप में मनुष्यता विशुद्धता 
समस्त मोह नाश के हैं देवता शिवः शिवम्
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम् 

(17)

पूजा वसान ध्यान से करे जो पाठ स्तोत्र का 
मुकुट बने वही मनुज परम विशिष्ट गोत्र का 
उसी को देते हैं समस्त सम्पदा शिवः शिवम्
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम् 

(18)

वे शेष हैं, अशेष हैं, प्रशेष हैं, विशेष हैं 
जो उनको जैसा धार ले वो उसके जैसा वेष हैं
वे नेत्र सूर्य देवता का चंद्रमा का भाल हैं,
विलय भी वे प्रलय भी वे, अकाल महाकाल हैं
उसी के नाथ हो लिए, जो उनके साथ हो लिया
वहीं के हो गये हैं वे जहाँ सुना शिवः शिवम्
डमड्ड मड्ड मड्ड डमरु कह रहा शिवः शिवम्,
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम्
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम्
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम्
तरल अनल गगन पवन धरा धरा शिवः शिवम्
हर हर महादेव...  हर हर महादेव................

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