लघुकथा लेखन/ कक्षा 9
लघुकथा लेखन
लालच बुरी बला है
एक गाँव में एक सेठ रहता था। उसके बंगले के पास ही एक गरीब मोची की छोटी-सी दुकान थी। उस मोची की आदत थी कि वह जब भी जूते सिलता, भगवान का भजन भी करता था। लेकिन सेठ का भजन की तरफ कोई ध्यान नहीं रहता था। एक दिन सेठ व्यापार के सिलसिले में विदेश गया। घर लौटते वक्त उसकी तबीयत बहुत खराब हो गई, लेकिन पैसे की कमी न होने से देश-विदेश से डॉक्टरों को बुलाया गया। पर कोई भी सेठ की बीमारी का इलाज नहीं कर सका। अब सेठ की तबीयत इतनी खराब हो गई कि वह चल भी नहीं पाता था। एक दिन बिस्तर पर लेटे हुए उसे मोची के भजन गाने की आवाज सुनाई दी। उसे आज मोची के भजन अच्छे लग रहे थे। सेठ भजन सुनकर ऐसा मंत्रमुग्ध हो गया कि उसे लगा जैसे उसे साक्षात परमात्मा के दर्शन हो गए। मोची का भजन सेठ को उसकी बीमारी से दूर ले जा रहा था। भगवान के भजन में लीन होकर वह अपनी बीमारी भूल गया और उसे आनंद की प्राप्ति हुई तथा उसके स्वास्थ्य में भी सुधार आने लगा। एक दिन सेठ ने मोची को बुलाकर एक हजार रुपए का इनाम देते हुए कहा कि मेरी बीमारी का इलाज बड़े से बड़े डॉक्टर नहीं कर पाए, पर तुम्हारे भजन ने यह काम कर दिया। मैं तुम्हें रहने के लिए एक घर भी दूँगा। मोची इनाम पाकर बहुत खुश हुआ। अब वह रात दिन पैसों के और घर के बारे में सोचता रहा। अगले दिन वह काम पर भी नहीं गया। लालच के कारण धीरे-धीरे उसकी दुकानदारी चौपट होने लगी। उधर सेठ की बीमारी फिर से बढ़ती जा रही थी। मोची को जब लालच का एहसास हुआ तो वह सेठ को पैसे वापस करने के लिए सेठ के बंगले में आया। उसने सेठ से निवेदन किया कि आप यह पैसे वापस रख लीजिए। मुझे आपका घर भी नहीं चाहिए क्योंकि इसके कारण मेरा धंधा चौपट हो गया है। मैं भजन भूल गया हूँ। इस धन ने मेरा परमात्मा से नाता तोड़ दिया। मोची पैसे वापस करके पुनः अपने काम में जुट गया। वास्तव में पैसों और घर के लालच ने मोची को पथभ्रष्ट कर दिया था। वह अपने काम को ही नहीं, परमात्मा तक को भूल कर पैसों और घर के लालच में ही डूब गया था। अंत में मोची जान गया था कि लालच बुरी बला है। इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि हमें लालच नहीं करना चाहिए।
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जैसी करनी वैसी भरनी
'जैसी करनी वैसी भरनी' उक्ति का अर्थ है कि मनुष्य जैसा कर्म करता है वैसा ही फल उसे भोगना पड़ता है। यह सर्वविदित है कि मानव अपने कर्मों के आधार पर ही फल भोगता है। सत्कर्मी तथा परिश्रमी मानव सर्वश्रेष्ठ लक्ष्यों को प्राप्त करता है तथा बुरे कर्म करने वाला मानव सदैव कर्म अनुरूप व्यर्थ भटकता रहता है। इसी विषय से संबंधित एक कथा है। दो भाई थे-- राम और राज। दोनों कुशाग्र बुद्धि थे। परंतु दोनों के आचरण, व्यवहार और जीवनशैली में बहुत अंतर था। उनमें राम धैर्यवान व परिश्रमी था, परंतु राज अधीर चंचल एवं आलसी था। उनके पिताजी ने उन्हें वार्षिक परीक्षा में श्रेष्ठ अंको से उत्तीर्ण होने का लक्ष्य दिया, ताकि दोनों का देश के प्रतिष्ठित कॉलेज में दाखिला हो सके। राम ने पूरी मेहनत और योजना के साथ पूरे समय परीक्षा की तैयारी की और परीक्षा में प्रथम स्थान के साथ पास हुआ। तदुपरांत उसने श्रेष्ठ कॉलेज में दाखिला भी पाया और अपने परिश्रम से प्रशासनिक सेवा में शानदार भविष्य बनाया। इसके विपरीत राज ने अपना समय व्यर्थ के कार्यों में व मित्र मंडली में व्यतीत किया, जिससे वह विद्यालय की परीक्षा तक उत्तीर्ण न कर सका। इस प्रकार राज ने खुद के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया और राम कामयाबी की बुलंदियों को प्राप्त करता गया। दोनों ने अपने कर्मों के अनुसार ही फल पाया। इसलिए इस घटना से यह कहावत सही सिद्ध हो गई कि जैसी करनी वैसी भरनी। इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल भोगना पड़ता है।
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करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान
एक बालक था। वह पढ़ लिख नहीं सकता था। उसके सहपाठी उसका मजाक उड़ाते थे। वह बहुत दुखी था। परेशान होकर वह किसी ज्योतिषी के पास गया। ज्योतिषी ने कहा-- तुम पढ़ नहीं पाओगे, क्योंकि तुम्हारे हाथ में विद्या की रेखा नहीं है। एक दिन रास्ते में जाते हुए उसने कुएँ की जगत पर रस्सी के निशान को देखा। उसने सोचा यदि कठोर पत्थर पर निरंतर रस्सी की रगड़ के कारण निशान पड़ सकते हैं तो मैं भी निरंतर अभ्यास करके पढ़कर विद्वान क्यों नहीं बन सकता। फिर उसने पढ़ाई का अभ्यास किया और एक दिन बड़ा विद्वान बन गया। निरंतर अभ्यास व्यक्ति की कार्यकुशलता को निखारता है। अभ्यास के दौरान कभी-कभी नकारात्मक भाव भी उत्पन्न होते हैं। परंतु उसे स्वयं पर हावी नहीं होने देना चाहिए, क्योंकि वह विकास के पथ में बाधा उत्पन्न करते हैं। अभ्यास के द्वारा व्यक्ति अपनी बाधाओं का डटकर मुकाबला करता है तथा विषम स्थितियों पर नियंत्रण पा लेता है। अभ्यास ही व्यक्ति को कर्तव्य के पथ पर ले जाता है एवं सफलता प्राप्त करने में सहायता करता है। कोई भी व्यक्ति सर्वगुणसंपन्न नहीं होता, न ही ज्ञान का भंडार लेकर पैदा होता है। हमें निरंतर अभ्यास के द्वारा अपने ज्ञान को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
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