प्रेमचंद के फटे जूते(प्रश्नोत्तर)
प्रेमचंद के फटे जूते
--- हरिशंकर परसाई
प्रश्न 1: हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?
उत्तर: प्रेमचंद एक संघर्षशील लेखक थे। वे सादा जीवन परंतु उच्च विचार के पक्षधर थे। वे गैर समझौतावादी और स्वाभिमानी व्यक्ति थे। सामाजिक कुप्रथाओं और परंपरावादी रूढ़ियों के वे घोर विरोधी थे। वे दिखावटीपन से दूर रहते थे और चारित्रिक दृढ़ता को मनुष्य का मुख्य गुण मानते थे। कुल मिलाकर वे पाठ में एक प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में पाठकों के सामने आते हैं।
प्रश्न 2: सही कथन के सामने (✓) का निशान लगाइए--
(क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
उत्तर: गलत कथन (सही कथन है --- बाएँ जूते में बड़ा छेद हो गया है)
(ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
उत्तर: ✓(सही कथन)
(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य मुसकान मेरे हौसले बढ़ाती है।
उत्तर: गलत कथन (सही कथन है --- प्रेमचंद की व्यंग्य मुसकान लेखक परसाई के हौसले पस्त कर देती है)
(घ) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो?
उत्तर: गलत कथन (सही कथन है --- जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ पाँव की अंगुली से इशारा करते हो)
प्रश्न 3: नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए:
(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
उत्तर: जूता अमीरी का और टोपी विद्वत्ता का प्रतिनिधित्व करता है। समाज में हमेशा अमीरों की ज्यादा इज्जत होते हुए देखा जाता है, जबकि विद्वत्ता की और विद्वान जनों की कीमत ज्यादातर लोग कम आँकते हैं। आज तो स्थिति यह हो गई है कि समाज का इज्जतदार और विद्वत वर्ग भी अमीरों के आगे सिर झुका लेता है।
(ख) तुम पर्दे का महत्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं।
उत्तर: प्रेमचंद ने कभी पर्दे को अथवा ढकने-छुपाने को महत्व नहीं दिया। उन्होंने वास्तविकता को कभी ढकने का प्रयास नहीं किया। भीतर-बाहर से वे एक समान थे। यहाँ पर्दे का सम्बन्ध इज़्ज़त बचाने के प्रयास से अथवा झूठी शान से है। जहाँ कुछ लोग इज़्ज़त को अपना सर्वस्व मानते हैं तथा उस पर अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार रहते हैं, वहीं दूसरी ओर समाज में प्रेमचंद जैसे कुछ लोग भी हैं जिनके लिए इज़्ज़त बचाने का झूठा प्रयास महत्वहीन है।
(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ़ हाथ की नहीं, पाँव की अंगुली से इशारा करते हो?
उत्तर: सामाजिक बुराइयाँ, कुरीति, कुसंस्कार, घृणित कार्य अथवा गलत प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों को प्रेमचंद्र बिल्कुल निंदनीय समझते थे। उनके प्रति वे ज़रा भी सम्मान नहीं दिखाते थे।
प्रश्न 4: पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?’ लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि ‘नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती हैं?
उत्तर: प्रेमचंद का व्यक्तित्व सादगी भरा था। वे जैसे बाहर थे वैसे ही मन के भीतर से भी थे। प्रायः लोगों के व्यक्तित्व में भिन्नता होती है। वे दिखाई कुछ देते हैं और होते कुछ हैं। ‘अलग-अलग पोशाक’ से लेखक का यही आशय है। परंतु प्रेमचंद के चित्र और चरित्र का अच्छी तरह विश्लेषण करने पर लेखक परसाई को विश्वास होता है कि उनके(प्रेमचंद के) व्यक्तित्व में यह अंतर नहीं हो सकता। इसलिए लेखक परसाई के विचार बदल जाते हैं।
प्रश्न 5: आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन सी बातें आकर्षित करती हैं?
उत्तर: प्रस्तुत व्यंग्य पढ़ने के बाद पाठकों को लेखक की कई बातें आकर्षित करती हैं। लेखक परसाई पारखी नजर रखते हैं। वे प्रेमचंद की सामान्य सी फोटो देखकर ही यह अनुमान लगा लेते हैं कि उनका व्यक्तित्व दिखावे से कोसों दूर है। उन्हें प्रेमचंद के चेहरे पर लज्जा, संकोच की जगह बेपरवाही ओर विश्वास दिखाई देता है। वह प्रेमचंद की अधूरी मुस्कान को सामाजिक विसंगतियों के प्रति व्यंग्य मानते हैं। लेखक की ऐसी सूक्ष्म दृष्टि किसी भी पाठक को अवश्य आकर्षित करती है।
प्रश्न 6: पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भों को इंगित करने के लिए किया गया होगा?
उत्तर: पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग सामाजिक विकास में बाधा प्रदान करने वाली विविध समस्याएँ, सामाजिक विषमता, अंधविश्वास, कुसंस्कार, संघर्ष, दुखद परिस्थितियाँ आदि की ओर इंगित करने के लिए किया गया होगा।
प्रश्न 7: आपकी दृष्टि में वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर: आज वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में प्रेमचंद की सोच के विपरीत बड़ा परिवर्तन आया है। वेशभूषा से लोगों का व्यक्तित्व निखरता ही नहीं, उनकी पृष्ठभूमि, रुचि और उनकी मानसिकता का भी पता चलता है। आजकल लोग अपनी वेशभूषा के प्रति अधिक सतर्क दिखाई देते हैं। यथासंभव आज के लोग हमेशा नए, सुंदर, चमकीले, रंगीन और नए फैशन/डिजाइन के कपड़े पहनना पसंद करते हैं। सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी पहले के लोगों की तरह फटी-पुरानी वेश-भूषाओं से ही गुजारा करने पर विश्वास नहीं रखते। जितना संभव हो, वे भी नयापन चाहते हैं। पुराने ज़माने में बड़े अथवा विद्वान लोगों के सादगीपूर्ण जीवन को अनुकरणीय समझा जाता था, परंतु आज सादा जीवन जीनेवालों को पिछड़ा समझ लिया जाता है।
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