नौबतखाने में इबादत(प्रश्नोत्तर)
नौबतखाने में इबादत
-- यतींद्र मिश्रप्रश्न 1: शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?
उत्तर: शहनाई और डुमराँव दोनों एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। शहनाई बजाने के लिए रीड एक प्रकार की घास से बनाई जाती है, जो मुख्यतः डुमराँव में सोन नदी के किनारे पर पाई जाती है। इसके अतिरिक्त बिस्मिल्ला खाँ का जन्म स्थान भी डुमराँव है। इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ भी डुमराँव निवासी थे। इन कारणों से डुमराँव को शहनाई की दुनिया में याद किया जाता है।
प्रश्न 2: बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?
उत्तरः शहनाई को मंगल का परिवेश प्रतिष्ठित करने वाला वाद्ययंत्र माना जाता है। इसका प्रयोग विविध जगहों पर मांगलिक विधि-विधान के अवसर पर होता है। उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ शहनाई वादन के क्षेत्र में अद्वितीय स्थान रखते हैं। बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्ष से भी अधिक समय तक शहनाई बजाते रहे। उनकी गणना भारत के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक के रूप में होती है। उन्होंने शहनाई को भारत ही नहीं, विश्वभर लोकप्रिय बनाया। इसी कारण उन्हें शहनाई की मंगलध्वनि का नायक कहा गया है।
प्रश्न 3: सुषिर वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को 'सुषिर वाद्यों में शाह' की उपाधि क्यों दी गई होगी?
उत्तर: सुषिर वाद्यों से अभिप्राय है -- ऐसे वाद्य जिन्हें मुँह से फूँक कर बजाया जाता है। ये वाद्य छेद वाले तथा अंदर से खोखले होते हैं। शहनाई को सुषिर वाद्य माना जाता है, क्योंकि इसे भी मुँह से फूँक कर बजाया जाता है। अन्य वाद्ययंत्रों की तुलना में शहनाई कहीं अधिक सुरीला होने के कारण शहनाई को 'शाहेनय' अर्थात 'सुषिर वाद्यों में शाह' की उपाधि दी गई है।
प्रश्न 4: आशय स्पष्ट कीजिए
(क) 'फटा सुर न बख़्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।'
उत्तरः जब बिस्मिल्ला खाँ की एक शिष्या ने एक बार उन्हें फटी लुंगी पहनकर लोगों से न मिलने का अनुरोध किया, तब उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ ने कपड़ों को महत्व न देकर सुर की महत्ता को दर्शाया। वे खुदा से आजीवन यही विनती करते थे कि वह उन्हें फटा सुर न दे। सुर फटा होगा तो संगीत के क्षेत्र में कोई पूछने वाला नहीं। फटा कपड़ा तो सील भी सकता है, परंतु फटा सुर नहीं। बिस्मिल्ला खाँ अपनी कला को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं न कि बाहरी चमक-दमक को। उनके लिए शहनाई के सुर का महत्व ज्यादा है, वेश-भूषा का नहीं।
(ख) मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ खुदा के सामने सज़दा करते हुए कहते हैं कि ए मेरे मालिक! मेरे सुर में वह प्रभाव पैदा कर दो, जिसे सुनकर सुनने वाले लोग इतने भावविभोर हो जाएँ कि अनायास उनकी आँखों से सच्चे मोती के समान आँसू निकल आए। सुनने वाले सुर की लहरों में ऐसे डूब जाएँ कि उनका हृदय शहनाई के सुर के साथ सामंजस्य स्थापित कर ले।
प्रश्न 5: काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला ख़ाँ को व्यथित करते थे?
उत्तर: काशी में पुरानी परंपराएँ लुप्त हो रही हैं। खान-पान की पुरानी चीजें और विशेषताएँ नष्ट होती जा रही हैं। मलाई बरफ वाले गायब हो गए हैं। कुलसुम हलवाइन की छन्न करती संगीतात्मक कचौड़ी और देसी घी की जलेबी आज नहीं रही, न ही आज संगीत, साहित्य और अदब के प्रति वह सम्मान रह गया है। हिंदू और मुसलमानों के बीच वह पहले जैसा मेलजोल नहीं रहा। अब गायकों के मन में संगतियों के लिए कोई आदर भी नहीं रहा। यह सब बातें बिस्मिल्ला ख़ाँ को व्यथित करते हैं।
प्रश्न 6: पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि --
(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
उत्तर: अपने मजहब के प्रति अत्यधिक समर्पित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की श्रद्धा काशी विश्वनाथ जी के प्रति भी अपार थी। वे रोज पाँचों वक्त नमाज़ अदा करते थे। अपने धर्म, उत्सव, त्यौहारों के प्रति गहरी आस्था रखते थे। लेकिन आजीवन काशी विश्वनाथ और बालाजी के मंदिर में शहनाई भी बजाते रहे। वे गंगा को मैया मानते थे। काशी से बाहर संगीत का कार्यक्रम करते वक्त काशी विश्वनाथ, बालाजी मंदिर की ओर मुँह कर उन्हें प्रणाम किया करते थे। दोनों धर्मों के प्रति उनकी इन्हीं सच्ची आस्थापूर्ण भावनाओं के कारण कहा जा सकता है कि बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
(ख) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इंसान थे।
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इंसान थे। उन्होंने कभी धार्मिक कट्टरता और तंगदिली नहीं दिखाई। उन्होंने काशी में रहकर काशी की परंपराओं को बखूबी निभाया। अपने धर्म की परंपराओं को भी निभाया और अन्य धर्मों को भी उतना ही सम्मान दिया। उन्होंने कभी खुदा से धन-समृद्धि नहीं माँगी। उन्होंने जब भी माँगा, सच्चा सुर माँगा। आजीवन सरल और सादगीभरी जिंदगी बिताई। ऊँचे-से-ऊँचा सम्मान पाकर भी उनके मन में कभी अभिमान का नामोनिशान नहीं था।
प्रश्न 7: बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया।
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ के संगीत जीवन को अनेक लोगों ने समृद्ध किया, जैसे -- रसूलनबाई, बतुलनबाई, मामूजान अली बख्श, नानाजी, कुलसुम हलवाइन आदि।
रसूलन बाई और बतुलनबाई की गायकी ने उन्हें संगीत की ओर खींचा। उनके द्वारा गाई गई ठुमरी, टप्पे और दादरा सुन-सुन कर उनके मन में संगीत की ललक जगी। अपने नाना को सुमधुर स्वर में शहनाई बजाते हुए सुनते थे और वह भी उन्हीं की तरह शहनाई बजाने का प्रयास करते थे। मामूजान अलीबख्श जब शहनाई बजाते हुए सम पर आते थे तो बिस्मिल्ला खाँ धड़ से एक पत्थर जमीन पर मारा करते थे और दाद देते थे। बिस्मिल्ला ख़ाँ को कुलसुम हलवाइन की कचौड़ी तलने की कला में भी संगीत का आरोह-अवरोह दिखता था। इस तरह की अनेक घटनाओं और व्यक्तियों ने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया।
प्रश्न 8: बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की ऐसी अनेक विशेषताएँ हैं जिन्होंने हमें प्रभावित किया, जैसे--
(i) ईश्वर के प्रति उनकी अगाध भक्ति
(ii) सभी धर्मों के प्रति एक समान भावना
(iii) भारत रत्न की उपाधि मिलने के बावजूद घमंड का नामोनिशान तक न होना
(iv) शहनाई और संगीत के प्रति उनका सच्चा प्रेम और लगन
(v) अपनी साधना और कर्मस्थली के प्रति सच्चा प्रेम
(vi) उनका सादा जीवन और उच्च विचार
(vii) उनका रसिक और विनोदी स्वभाव आदि।
प्रश्न 9: मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तरः बिस्मिल्ला खाँ को मुहर्रम के उत्सव से गहरा लगाव था। मुहर्रम के दस दिनों में वह किसी प्रकार का मंगलवाद्य नहीं बजाते थे, न ही कोई राग-रागिनी बजाते थे। शहनाई भी नहीं बजाते थे।आठवें दिन दालमंडी से चलने वाले मुहर्रम के जुलूस में पूरे उत्साह के साथ आठ किलोमीटर तक रोते हुए नौहा बजाते हुए चलते थे।
प्रश्न 10: बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे। तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे। 80 वर्षों तक लगातार उन्होंने शहनाई बजाई और सुर की साधना की। उनसे बढ़कर शहनाई बजाने वाला भारत भर में अन्य कोई नहीं हुआ। फिर भी वह जिंदगी के आखिरी दिनों तक खुदा से सच्चे सुर की माँग करते रहे। उन्होंने अपने को कभी पूर्ण नहीं माना। वे खुद पर झल्लाते भी थे कि क्यों उन्हें अब तक सही ढंग से शहनाई बजाना नहीं आया।
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