सुदामा चरित(प्रश्नोत्तर)
सुदामा चरित
-- नरोत्तमदास
प्रश्न 1: सुदामा की दीनदशा देखकर श्रीकृष्ण की क्या मनोदशा हुई? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: सुदामा की दीनदशा देखकर श्रीकृष्ण अत्यंत व्याकुल हो गए। अपने मित्र की दुर्दशा देखकर वे रोने लगे। उनकी आँखों से इतने आँसू निकले कि उन आँसुओं से सुदामा के पैर धूल गए।
प्रश्न 2: "पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए।"-- पंक्ति में वर्णित भाव का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर: श्रीकृष्ण ने अतिथि मित्र सुदामा के चरण धोने के लिए परात में पानी मँगवाया था। सुदामा के पैर धूल से सने थे तथा उनमें बहुत सारे काँटे भी गड़े हुए थे। श्रीकृष्ण अपने मित्र की इस दुर्दशा को देखकर अत्यंत व्याकुल हुए। उनकी आँखों से ऐसी अश्रुधारा निकल पड़ी कि इसीसे सुदामा के चरण धूल गए। उन्हें परात के पानी की आवश्यकता ही नहीं पड़ी।
प्रश्न 3:"चोरी की बान में हौ जू प्रवीने।"
(क) उपर्युक्त पंक्ति कौन, किससे कह रहा है?
उत्तर: उपर्युक्त पंक्ति श्रीकृष्ण सुदामा से कह रहे हैं।
(ख) इस कथन की पृष्ठभूमि स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: सुदामा की पत्नी ने श्रीकृष्ण को भेंट देने के लिए थोड़े से चावल भेजे थे। सुदामा संकोचवश उन्हें श्रीकृष्ण को दे नहीं पा रहे थे। श्रीकृष्ण इसे सुदामा की चोरी की प्रवृत्ति अथवा उनका पुराना स्वभाव बताकर चिढ़ा रहे थे।
(ग) इस उपालंभ (शिकायत) के पीछे कौन-सी पौराणिक कथा है?
उत्तर: श्रीकृष्ण और सुदामा गुरु सांदीपनी के आश्रम में एक साथ पढ़ते थे। गुरु निर्देश का पालन करते हुए जब वे लकड़ी एकत्रित करने के लिए वन में जाते थे, तब गुरुमाता खाने के लिए उन्हें चने देती थी। सुदामा चालकी से अपने मित्र के हिस्से के चने भी स्वयं खा जाते थे। श्रीकृष्ण सुदामा की इसी चोरी की प्रवृत्ति की ओर उपर्युक्त पंक्ति में संकेत कर रहे हैं।
प्रश्न 4: द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा मार्ग में क्या-क्या सोचते जा रहे थे? वह कृष्ण के व्यवहार से क्यों खीझ रहे थे? सुदामा के मन की दुविधा को अपने शब्दों में प्रकट कीजिए।
उत्तर: द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा मार्ग में यह सोचते हुए जा रहे थे कि क्या कृष्ण का प्रसन्नता प्रकट करना, उठकर मिलना, आदर देना-- यह सब दिखावटी था? कृष्ण मुझे क्या देता? वह तो स्वयं कभी घर-घर दही माँगता फिरता था। मैं तो आ ही नहीं रहा था, पत्नी ने उसे जबरदस्ती भेजा।
सुदामा कृष्ण के व्यवहार से इसलिए खीझ रहे थे क्योंकि उन्हें विदा करते समय कृष्ण ने कुछ भी नहीं दिया। सुदामा को लग रहा था कि उसका आना व्यर्थ ही गया। रास्ते में खाने के लिए लाए गए चावल भी अब तो हाथ से निकल गए अर्थात जो अपनी जेब में था वह भी गँवा बैठे।
प्रश्न 5: अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोपड़ी नहीं खोज पाए तब उनके मन में क्या-क्या विचार आए? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोपड़ी नहीं खोज पाए तब उनके मन में यह ख्याल आया कि कहीं भूलकर वे पुनः द्वारका ही तो नहीं आ पहुँचे? क्योंकि अपने गाँव में उन्होंने कृष्ण की राजधानी द्वारिका की तरह ही भव्य भवन और वही भव्यता देखी।
प्रश्न 6: निर्धनता के बाद मिलनेवाली संपन्नता का चित्रण कविता की अंतिम पंक्तियों मे वर्णित है। उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: 'सुदामा चरित' कविता की अंतिम चार पंक्तियाँ सुदामा की निर्धनता के बाद मिली संपन्नता का सुंदर चित्रण करती हैं। पहले तो सुदामा के पास घास-फूस की टूटी-सी झोपड़ी थी। अब श्रीकृष्ण की कृपा से सोने का सा महल हो गया है। सुदामा पहले नंगे पैर चला करते थे, अब उनके द्वार पर हाथी-घोड़े सुसज्जित खड़े हैं। पहले कठोर भूमि पर उन्हें सोना पड़ता था, अब उनको कोमल विस्तर प्राप्त है। निर्धनता के दिनों में खाने के लिए उन्हें सस्ते चावल तक नहीं मिलते थे, अब खाने के लिए अनेकों मेवा मिष्ठान्न हैं।
प्रश्न 7: उच्च पद पर पहुँचकर या अधिक समृद्ध होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता-पिता, भाई-बंधुओं से नजर फेरने लग जाता है। ऐसे लोगों के लिए सुदामा चरित कैसी चुनौती खड़ी करता है? लिखिए।
उत्तरः समृद्ध होने के बाद अपने निर्धन माता-पिता, भाई बंधुओं से नजर फेरने वालों के लिए सुदामा चरित की कहानी एक सीख देती है कि संपन्न होने के पश्चात व्यक्ति को अपने माता-पिता या भाई-बंधुओं को भुला नहीं देना चाहिए। उन्हें उनका सम्मान करना चाहिए तथा आवश्यकता अनुसार उनकी आर्थिक मदद करनी चाहिए।
प्रश्न 8: अनुमान कीजिए यदि आपका कोई अभिन्न मित्र आपसे बहुत वर्षों बाद मिलने आए तो आपको कैसा अनुभव होगा?
उत्तरः यदि हमारा कोई अभिन्न मित्र हमसे मिलने बहुत वर्षों बाद आए तो हमें बहुत प्रसन्नता होगी। हम उससे बहुत ही उत्साहपूर्वक मिलेंगे, उसका आदर-सत्कार करेंगे। उसे अपने साथ ठहरने का आग्रह करेंगे। विदा के समय उसे उपहार भी देंगे और शीघ्र ही पुनः मिलने का वचन भी देंगे।
विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत।।
-- इस दोहे में रहीम ने सच्चे मित्र की पहचान बताई है। इस दोहे से सुदामा चरित की समानता किस प्रकार दिखती है? लिखिए।
उत्तरः इस दोहे में बताया गया है कि धन-दौलत की संपन्नता के समय तो अनेक लोग मित्र बन जाते हैं, पर जो विपत्ति की कसौटी पर खरा उतरता है, वही सच्चा मित्र होता है। सुदामा चरित में कृष्ण भी सुदामा की विपत्ति के समय उनकी मदद करते हैं और मित्रता की कसौटी पर खरा उतरते हैं।
प्रश्न 10:
"पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए"
-- ऊपर लिखी गई पंक्ति को ध्यान से पढ़िए। इसमें बात को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ा कर चित्रित किया गया है। जब किसी बात को इतना बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है तो वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। आप भी कविता में से एक अतिशयोक्ति अलंकार का उदाहरण छाँटिए।
उत्तर: कविता में अतिशयोक्ति अलंकार का एक अन्य उदाहरण है--
-- कै वह टूटी-सी छानी हती, कहँ कंचन के अब धाम सुहावत।
।।
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