जब सिनेमा ने बोलना सीखा(प्रश्नोत्तर)
जब सिनेमा ने बोलना सीखा
-- प्रदीप तिवारी
प्रश्न 1: जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टर पर कौन से वाक्य छापे गए? उस फिल्म में कितने चेहरे थे?
उत्तर: जब देश की पहली बोलती फिल्म 'आलम आरा' प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टर पर निम्नलिखित वाक्य छापे गए थे
"वे सभी सजीव हैं, साँस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा इंसान जिंदा हो गए, उनको बोलते, बातें करते देखो।"
उपर्युक्त वाक्य से पता चलता है कि फिल्म में कुल मिलाकर 78(अठहत्तर) चेहरे थे।
प्रश्न 2: पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फिल्मकार अर्देशिर एम. ईरानी को प्रेरणा कहाँ से मिली? उन्होंने 'आलम आरा' फिल्म के लिए आधार कहाँ से लिया?
उत्तर: पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फिल्मकार अर्देशिर एम. ईरानी को प्रेरणा हॉलीवुड की एक बोलती फिल्म 'शो बोट' से मिली। उन्होंने 'आलम आरा' फिल्म के लिए आधार पारसी रंगमंच के एक लोकप्रिय नाटक से लिया।
प्रश्न 3: विट्ठल का चयन 'आलम आरा' फिल्म के नायक के रूप में हुआ लेकिन उन्हें हटाया क्यों गया? विट्ठल ने पुनः नायक होने के लिए क्या किया?
उत्तर: विट्ठल को उर्दू बोलने में मुश्किलें आती थीं। इसलिए 'आलम आरा' फिल्म के नायक के रूप में उनका चयन होने के बावजूद उन्हें हटाया गया। विट्ठल ने पुनः नायक होने के लिए मुकदमा कर दिया जो वह जीत गए और पहली बोलती फिल्म के नायक बनकर रहे।
प्रश्न 4: पहली सवाक फिल्म के निर्माता-निर्देशक अर्देशिर को जब सम्मानित किया गया तब सम्मानकर्ताओं ने उनके लिए क्या कहा था? अर्देशिर ने क्या कहा? और इस प्रसंग में लेखक ने क्या टिप्पणी की है?
उत्तर: पहली सवाक फिल्म के निर्माता-निर्देशक अर्देशिर को जब सम्मानित किया गया तब सम्मानकर्ताओं ने उन्हें 'भारतीय सवाक् फिल्मों का पिता' कहकर सम्मानित किया था।
इसके जवाब में अर्देशिर ने कहा था कि "मुझे इतना बड़ा खिताब देने की जरूरत नहीं है। मैंने तो देश के लिए अपने हिस्से का जरूरी योगदान दिया है।"
लेखक ने उनके बारे में टिप्पणी करते हुए कहा है कि वे अत्यंत विनम्र स्वभाव के थे।
प्रश्न 5: मुक सिनेमा में संवाद नहीं होते, उसमें दैहिक अभिनय की प्रधानता होती है। पर, जब सिनेमा बोलने लगा, उसमें अनेक परिवर्तन हुए। उन परिवर्तनों को अभिनेता, दर्शक और कुछ तकनीकी दृष्टि से पाठ का आधार लेकर खोजें। साथ ही अपनी कल्पना का भी सहयोग लें।
उत्तर: जब सिनेमा बोलने लगा तो उसमें अनेक परिवर्तन होने लगे। अभिनेताओं को पढ़ा लिखा होना जरूरी हो गया क्योंकि अब उन्हें संवाद भी बोलने पड़ते थे। दर्शकों पर भी अभिनेता-अभिनेत्रियों की लोकप्रियता का खूब असर पड़ने लगा। उनकी केश-सज्जा और वेशभूषा की नकल होने लगी। तकनीकी दृष्टि से भी फिल्मों में काफी सुधार आया। अब गीत-संगीत का महत्व बढ़ चला था। हिंदी, उर्दू आदि भाषाओं का महत्व भी बढ़ गया था। अब फिल्में ज्यादा आकर्षक बनने लगी थीं।
प्रश्न 6: डब फिल्में किसे कहते हैं? कभी-कभी डब फिल्मों में अभिनेता के मुँह खोलने और आवाज में अंतर आ जाता है। इसका कारण क्या हो सकता है?
उत्तर: डब फिल्में उन फिल्मों को कहते हैं जिनमें अभिनय तो कोई करता है पर उसके संवाद दूसरों के द्वारा बाद में बुलवाकर डब किया जाता है। ऐसा दो स्थितियों मे किया जाता है--
-- किसी फिल्म को अन्य भाषा में डब करके प्रदर्शित करने के लिए
-- किसी अभिनेता को दूसरे अभिनेता की आवाज देने के लिए। यह काम मूल फिल्म बनने के बाद किया जाता है।
जब डब करने वाला कलाकार मुख्य कलाकार को बोलते देखकर अपनी आवाज में, किंतु दूसरी भाषा में संवाद दोहराता है, तब मूल अभिनेता के मुँह खोलने तथा डब करने वाली आवाज में कई बार थोड़ा अंतर रह जाता है। दो भिन्न भाषाओं के शब्दों में अंतर आने के कारण यह स्थिति अधिक देखी जाती है।
प्रश्न 7: सवाक् शब्द वाक्य के पहले 'स' लगने से बना है। 'स' उपसर्ग से कई शब्द बनते हैं। निम्नलिखित शब्दों के साथ 'स' का उपसर्ग की भाँति प्रयोग करके शब्द बनाएँ और शब्दार्थ में होने वाले परिवर्तन को बताएँ।
हित, परिवार, विनय, चित्र, बल, सम्मान
स+परिवार= सपरिवार (परिवार सहित)
स+विनय= सविनय (विनयपूर्वक)
स+चित्र= सचित्र (चित्र सहित)
स+बल= सबल (बलवान)
स+सम्मान= ससम्मान (सम्मानपूर्वक)
उत्तर:
वि+ज्ञापन= विज्ञापन
प्र+दर्शित= प्रदर्शित
सम्+वाद= संवाद
स्व+तंत्र = स्वतंत्र
प्रति+बिंब= प्रतिबिंब
(ii) प्रत्यय युक्त शब्द:
परिश्रम+इक= पारिश्रमिक
चर्चा+इत= चर्चित
भारत+ईय= भारतीय
कला+कार= कलाकार
लोकप्रिय+ता= लोकप्रियता
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