फसल/नागार्जुन

 


फसल

प्रश्न 1: 'फसल' कविता में कवि ने 'एक के नहीं, दो के नहीं' शब्दों का प्रयोग बार-बार क्यों किया है? 

उत्तर: कवि ने 'एक के नहीं, दो के नहीं' शब्दों का बार-बार प्रयोग कर सामूहिक प्रयास पर बोल दिया है। फसल के उत्पादन में अनेक नदियों का पानी, करोड़ों मनुष्यों का श्रम एवं विभिन्न खेतों की मिट्टी का योगदान है। अर्थात फसल एक सामूहिक प्रयास का परिणाम है।

प्रश्न 2: फसल के उगने में नदियों का पानी जादू का सा काम कैसे करता है? 

उत्तरः फसल अनेक नदियों के जल से सिंचित होती है। नदियों का जल फसल के रूप में परिणत होकर सामने आता है। मिट्टी के भीतर बोए हुए बीजों पर नदियों का पानी जादू का सा असर करता है।इसी प्रभाव से बीज अंकुरित होते हैं और धरती को चीरकर बाहर निकलते हैं और फिर धीरे-धीरे विकसित होकर फसल का रूप धारण करते हैं। यह नदियों के जल का जादुई प्रभाव है।

प्रश्न 3: 'रूपांतर है सूरज की किरणों का, 
           सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का' -- पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए। 

उत्तरः 'रूपांतर है सूरज की किरणों का
         सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का' -- पंक्तियों द्वारा कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि फसल सूर्य की किरणों का बदला हुआ रूप है। पौधों पर जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है तभी वह अपना भोजन बनाते हैं। इसीसे फसल बढ़ती और विकसित होती है। हवा का स्पर्श फसल को जीवंतता प्रदान करता है। फसल को विकसित करने में हवा की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।हवा की थिरकन फसल को सजीव बनाती है।

प्रश्न 4: 'फसल' कविता में खेतों की मिट्टी के बारे में क्या कहा गया है?

उत्तरः कविता में खेतों की मिट्टी के बारे में कहा गया है कि तरह-तरह के, अर्थात भूरी, काली, संदली आदि विविध रंग-रूप वाली  मिट्टियों  के गुणधर्म से ही खेतों में भरपूर फसल उगती है।

प्रश्न 5: फसल 'हाथों के स्पर्श की महिमा' कैसे है? 

उत्तरः फसल अनगिनत किसान और श्रमिकों के हाथों के स्पर्श की महिमा है। लाखों-करोड़ों कृषकों के हाथों के कठोर परिश्रम के परिणाम स्वरुप फसल विकसित होती है। उसका लहलहाता रूप मनुष्य के कठिन मेहनत का ही परिणाम है।

प्रश्न 6: भाव स्पष्ट कीजिए --
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का 

उत्तर: 'सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का' -- पंक्ति द्वारा कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि फसल के विकास में हवा का महत्वपूर्ण योगदान है। हवा का स्पर्श पाकर फसल में जीवनदायिनी  शक्ति का संचार होता है। हवा का सिमटा हुआ रूप ही पौधों को जीवंतता प्रदान कर उसमें समा जाता है। हवा का कोमल स्पर्श पाकर फसल खुशहाल बनती है और लहलहा उठती है।

प्रश्न 7: 'फसल' कविता में फसल उपजाने के लिए जिन आवश्यक तत्वों की बात कही गई है, क्या ये तत्व एक दूसरे पर आधारित होकर ही फसल की उपज में सहायक होते हैं? समझाकर लिखिए।

उत्तर: 'फसल' कविता में फसल उपजाने के लिए नदियों का पानी, सूरज का प्रकाश, वायु, मिट्टी के प्राकृतिक गुण और कृषक के परिश्रम को आवश्यक बताया गया है। ये सभी तत्व एक दूसरे पर आधारित है। मिट्टी में उर्वरा शक्ति है, नदियों का जल सिंचाई करता है, सूर्य की गर्मी, हवा का सहयोग अथवा प्रकृति का योगदान एवं  कृषक के परिश्रम से ही खेतों में फसल खड़ी होती है। अगर इनमें से एक भी तत्व कम हो जाए तो फसल की उपज नहीं होगी। अच्छी फसल उगने में ये सभी तत्व एक दूसरे पर आश्रित और सहायक सिद्ध होते हैं।

प्रश्न 8: कवि ने फसल के निर्माण में कृषक के परिश्रम को अधिक महत्व दिया है। क्यों?

उत्तर: फसल उगाने में कृषक का अपना अथक प्रयास होता है। समय-असमय की चिंता किए बिना कृषक अपने खेत को तैयार करके बीज बोने से लेकर फसल तैयार होने तक अथक परिश्रम करता है। लंबे समय तक धैर्य बनाए रखता है। इस प्रकार फसल उसके परिश्रम और धैर्य की पराकाष्ठा का प्रतिरूप है। इसलिए कवि ने कृष्ण के परिश्रम को अधिक महत्व दिया है।

प्रश्न 9: 'फसल' कविता का संक्षेप में प्रतिपाद्य लिखिए। 

उत्तरः 'फसल' कविता में कवि ने फसल तैयार होने में कृषक और प्राकृतिक संसाधनों की उपयोग के संबंध में बताया है। फसल कृषक के परिश्रम और प्राकृतिक तत्वों का प्रतिरूप है। नदियों का पानी, मिट्टी के गुण तत्व, सूरज का प्रकाश, हवा और कृषक के परिश्रम का संयुक्त प्रयास का जीवंत स्वरूप फसल है। इस तरह 'फसल' कविता में कवि की कृषकों के प्रति सहानुभूति है। कवि उनको महत्व देता हुआ दिखाई देता है।

प्रश्न 10: किसानों के स्पर्श को महिमा क्यों माना गया है? 

उत्तरः यदि किसान फसल उगाने के लिए श्रम न करें तो फसलें अपने आप इस तरह इतनी ज्यादा मात्रा में नहीं उग सकतीं। इस कारण कई ने किसानों के हाथों की मेहनत को अधिक सम्मान दिया है। उसे महिमाशाली बताया है।












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