व्याकरण प्रश्नोत्तरी(अलंकार)/कक्षा: 10
व्याकरण(अलंकार)
प्रश्न 1: श्लेष अलंकार के कुछ उदाहरण दीजिए:
उत्तर: (i) मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
(कलियाँ: फूलों के खिलने से पूर्व की अवस्था, बचपन का समय)
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
(कलियाँ: फूलों के खिलने से पूर्व की अवस्था, बचपन का समय)
(ii) मंगन को देख पट देत बार-बार
(पट: वस्त्र, दरवाजा)
(पट: वस्त्र, दरवाजा)
(iii) मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ।
जा तन की झाँईं परै, स्यामु हरित दुति होइ।।
(iv) को घटि ये वृषभानुजा वे हलधर के वीर
(v) सुबरन को ढूँढ़त फिरत कवि, व्यभिचारी, चोर
(vi) चमचमात चंचल नयन बिच घूँघट-पट झीन।
मानहु सुरसरिता विमल जल बिछुरत जुगमीन।।
(vii) जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो करै, बढ़े अँधेरो होय।।
(viii) मि. जगदीश! आप चाहे कुछ भी कहें, मैं तो इसे जगदीश की ही कृपा मानता हूँ
(ix) नल की अरु नलनीर की, गति एकै कर जोय।
जेतो नीचो ह्वै चलै, तेतो ऊँचो होय।।
(x) रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती मानुष चुन।।
प्रश्न 2: उत्प्रेक्षा अलंकार के कुछ उदाहरण दीजिए।
(i) मनु दृग फारि अनेक जमुन निरखत ब्रज सोभा
(ii) मिटा मोदु मन भए मलीने।
विधि निधि दीन्ह लेत जनु छीन्हे।।
(iii) मानो माई घनघन अंतर दामिनि
(iv) चमचमात चंचल नयन, बिच घूँघट पट झीन।
मनहु सुरसरिता विमल, जल उछरत जुग मीन।।
(v) सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात।
मनहुँ नीलमनि सैल पर आतप परयौ प्रभात।।
(vi) उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उसका लगा।
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।।
(vii) कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए।।
(viii) ले चला मैं तुझे कनक, ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण झनक
(ix) पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के।
(x) पुलक प्रकट करती है धरती हरित तृणों की नोकों से।
मानो झूम रहे हों तरु भी मंद पवन के झोंकों से।।
प्रश्न 3: अतिशयोक्ति अलंकार के कुछ उदाहरण दीजिए।
(i) हनुमान की पूँछ में लग न पाई आग।
लंका सिगरी जरी गई गए निशाचर भाग।।
(ii) भूप सहस दस एकहिं बारा
लगे उठावन टरत न टारा।
(iii) आगे नदिया पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।।
(iv) वह शर इधर गांडीव गुण से भिन्न जैसे ही हुआ।
धड़ से जयद्रथ का इधर सिर छिन्न वैसे ही हुआ।।
(v) देख लो साकेत नगरी है यही
स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही।
(vi) छूटे विशिख कराल इधर से, कटे उधर सिर अरि के साथ
(vii) एक साथ रघु ने पैरों से चाँपा अविकल
पितृदत्त सिंहासन और सकल अरिमंडल।
(viii) कढ़त साथ ही म्यान तें, असि रिपु तन ते प्रान
(ix) तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान,
मृतक में भी डाल देगी जान।
(x) इधर उठाया धनुष क्रोध में और चढ़ाया उस पर बाण
धरा सिंधु नभ काँपे सहसा, विकल हुए जीवों के प्राण।
प्रश्न 4: मानवीकरण अलंकार के कुछ उदाहरण दीजिए।
(i) इस सोते संसार बीच जगकर सजकर रजनी बाले
(ii) बीती विभावरी जाग री
अंबर पनघट में डुबो रही तारा घट उषा नागरी।
(iii) लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
(iv) मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के
(v) दिवसावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही
संध्या सुंदरी परी-सी धीरे-धीरे।
(vi) उषा सुनहले तीर बरसाती
जय लक्ष्मी-सी उदित हुई
(vii) तनकर भाला यह बोल उठा
राणा मुझको विश्राम न दे
मुझको शोणित की प्यास लगी
बढ़ने दे शोणित पीने दे
(viii) मैं तो मात्र मृतिका हूँ
(ix) कार्तिक की एक हँसमुख सुबह
नदी तट से लौटी गंगा नहा कर।
(x) विद्युत छवि उर में, कवि नवजीवन वाले
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