अनुच्छेद लेखन/ कक्षा: नौ

 



अनुच्छेद लेखन 


1: विज्ञापन और हमारा जीवन

आज विज्ञापनों ने हमारे जीवन में एक अहम जगह बना ली है। आज विज्ञापनों का प्रचार-प्रसार व्यक्ति के मन-मस्तिष्क पर ऐसा मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालता है कि व्यक्ति उससे निकल ही नहीं पाता। आज विज्ञापनों का चलन जोर पकड़ता जा रहा है। एक ओर विज्ञापनों के द्वारा घर बैठे-बैठे लोगों को रोजगार, नौकरी, शादी संबंधी जानकारियाँ सुगमता से प्राप्त हो जाती हैं तो दूसरी तरफ आम व्यक्ति इनके भ्रम जाल में फँसता चला जाता है। कुछ विज्ञापन तो कम उम्र के बच्चों पर बहुत गलत प्रभाव डालते हैं। विज्ञापन के भड़कीले तथा घिनौने रूप से बचने और नई पीढ़ी को बचाने के लिए ऐसे विज्ञापनों पर रोक लगाई जानी चाहिए जो किशोर एवं युवा वर्ग पर अपना मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालकर उनकी सोच दूषित कर सकते हैं।

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2: वरदान है विज्ञान

विज्ञान मानव प्रदत्त ऐसा वरदान है जिसने मनुष्य को वह सब कुछ दिया है जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। मनुष्य की सुख-सुविधाओं के जितने भी साधन हो सकते थे, शायद आज विज्ञान की कृपा से उसके पास उपलब्ध हैं। यातायात के समस्त साधन, कंप्यूटर, टेलीविजन, रेडियो, मोबाइल आदि सब कुछ विज्ञान की ही देन है। सारा विश्व आज विज्ञान के कारण एक ग्लोबल विलेज बनकर उभरा है। चिकित्सा के क्षेत्र में आज जो प्रगति हुई है उसमें कंप्यूटर की भूमिका अहम है। जो रोग असाध्य अथवा लाइलाज समझे जाते थे, आज चिकित्सकों ने उन्हें साध्य बना दिया है। मनुष्य विज्ञान के उपकार से कभी उऋण नहीं हो सकता, क्योंकि विज्ञान मनुष्य के लिए वरदान है।

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3: टेलीविजन को लत न बनाएँ

'लत' -- शब्द उन आदतों के लिए प्रयुक्त किया जाता है जो आदतें अच्छी नहीं मानी जातीं। आजकल टेलीविजन देखना भी 'लत' बनता जा रहा है। यदि बच्चे निश्चित समय तक शिक्षा प्रदान करने वाले कार्यक्रम देखें तो कोई बात नहीं, लेकिन मध्यवर्गीय और उच्च मध्यवर्गीय परिवारों में टेलीविजन मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन बन गया है। जब घर में टेलीविजन चलता है तो बच्चे ज्यादा से ज्यादा समय उससे ही चिपक जाते हैं और इसकी इस लत का दुष्प्रभाव उनकी पढ़ाई-लिखाई पर तो पड़ता ही है साथ ही उनके स्वास्थ्य, स्वभाव और आचार-विचार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस संदर्भ में माता-पिता तथा अन्य बड़ों को स्वयं पर नियंत्रण रखना होगा तभी वह अपने बच्चों को टेलीविजन की लत से मुक्त कर सकते हैं।

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4: कंप्यूटरः एक अनिवार्य आवश्यकता 

आज का युग कंप्यूटर का युग है। कंप्यूटर मानव द्वारा निर्मित 'इलेक्ट्रॉनिक मस्तिष्क' है जो हर समस्या का पलक झपकते ही समाधान प्रस्तुत कर देने में सक्षम है। बैंक, रेलसेवा, विमानों का संचालन, सैटेलाइट सेवा, टेलीफोन, शिक्षा आदि अनेक क्षेत्रों में बहुत समय से यह अपनी सेवाएँ देता आ रहा है। आज इसने आम आदमी के घर में इंटरनेट के माध्यम से विशाल बाजार को भी लाकर खड़ा कर दिया है। कंप्यूटर का दुर्बल पक्ष भी है। इसके समक्ष अधिक समय बिताने वाली आज की पीढ़ी के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। पर यह दोष कंप्यूटर का प्रयोग करने वालों का है। अतः कंप्यूटर का प्रयोग हमें इस प्रकार करना चाहिए जिससे मोटापा,  आंखों के रोग, मधुमेह, तनाव, स्पॉन्डिलाइटिस आदि रोगों को खुद से दूर रख सकें।

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5: मोबाइलः एक अनिवार्य आवश्यकता 

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मोबाइल की सुविधा अपना एक अलग ही स्थान बना चुकी है। समाज का प्रत्येक व्यक्ति मोबाइल के बिना अपने को अपाहिज-सा महसूस करने लगा है। मोबाइल ने एक ओर व्यक्ति को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय जगत की सभी ज्ञानवर्धक जानकारियों से जोड़ा है तो दूसरी और अनावश्यक तथा गुमराह करने वाले बहुत सारे ऐप्स से भी जोड़ दिया है। इन एप्स का युवा वर्ग पर बहुत ही बुरा असर पड़ रहा है। मोबाइल ने फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, स्नेपचैट, विभिन्न गेम्स जैसे विभिन्न प्रकार के एप्स द्वारा युवा वर्ग का समय भी बहुत बर्बाद किया है। अतः मोबाइल के उपयोग में लाभ और हानि दोनों ही समाहित है। इसका उपयोग हमें संभलकर करना होगा।

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