अनुच्छेद लेखन/कक्षा नौ

  






अनुच्छेद लेखन 


1. आलस्य: मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु


शारीरिक, मानसिक अथवा तन-मन की उत्साहहीनता, कर्म न करने की प्रवृत्ति, काम को टालने की आदत आदि को आलस्य कहते हैं। आलसी व्यक्ति परिश्रम से हमेशा जी चुराते हैं, आराम से पड़े रहना चाहते है। आलस्य हमारा परम शत्रु है क्योंकि वह सब प्रकार के कष्टों का जनक है। आलस्य हमें दरिद्र बनाता है क्योंकि आलसी व्यक्ति परिश्रम नहीं करता। आलस्य उन्नति तथा प्रगति का बाधक है क्योंकि प्रगति होती है योजनाबद्ध कार्य करने से और आलसी व्यक्ति मानसिक शिथिलता के कारण योजना नहीं बना पाता और शारीरिक शिथिलता के कारण योजना को पूरा नहीं कर पाता। विद्यार्थी आलस के कारण नियमित रूप से अध्ययन नहीं करता और कक्षा में फिसड्डी रह जाता है। वार्षिक  परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाता। सरकारी कार्यालय में काम करने वाला आलसी कर्मचारी ठीक से काम न करने के कारण पदोन्नति नहीं पाता। व्यापारी आलस्य के कारण समय पर खरीदार को अपना माल-सामान नहीं पहुँचाता, इससे उसका काम ठप्प हो जाता है। आलसी व्यक्ति खटिया पर पड़ा आराम करता है या गहरी नींद में सोया रहता है तथा कुम्भकर्ण की संज्ञा पाता है। स्वस्थ रहने के लिए शुद्ध वायु, व्यायाम आदि आवश्यक हैं परन्तु आलसी व्यक्ति ब्रह्ममुहूर्त में उठना तो दूर रहा, सूर्योदय के बाद भी सोता रहता है। न वह व्यायाम करता है, न प्रातःकालीन भ्रमण कर शुद्ध वायु का सेवन ही कर पाता है जिससे वह जल्दी कमजोर पड़ जाता है अथवा बीमार पड़ जाता है। आलस्य हमारी इच्छाशक्ति को, संकल्पशक्ति को शिथिल बना देता है। सोने से पूर्व हम संकल्प करते हैं कि प्रातःकाल बहुत सवेरे उठ जायेंगे। घड़ी में अलार्म भी लगा देते हैं। परंतु अलार्म की घंटी बजकर शान्त हो जाती है और हम करवट लेकर, कुनमुना कर पुनः सो जाते हैं। संकल्प धरा का धरा रह जाता है। आलसी व्यक्ति में न आत्मबल होता है, न आत्मविश्वास। वह भाग्यवादी बन जाता है। अपने दोषों, अपनी त्रुटियों को उत्तरदायी न मानकर अपने कष्टों के लिए भाग्य, प्रारब्ध, नियति, विधि, माथे या हाथ की रेखाओं को दोष देता है। आलस्य वास्तव में ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।

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2: वरदान है विज्ञान

विज्ञान मानव प्रदत्त ऐसा वरदान है जिसने मनुष्य को वह सब कुछ दिया है जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। मनुष्य की सुख-सुविधाओं के जितने भी साधन हो सकते थे, शायद आज विज्ञान की कृपा से उसके पास उपलब्ध हैं। यातायात के समस्त साधन, कंप्यूटर, टेलीविजन, रेडियो, मोबाइल आदि सब कुछ विज्ञान की ही देन है। सारा विश्व आज विज्ञान के कारण एक ग्लोबल विलेज बनकर उभरा है। चिकित्सा के क्षेत्र में आज जो प्रगति हुई है उसमें कंप्यूटर की भूमिका अहम है। जो रोग असाध्य अथवा लाइलाज समझे जाते थे, आज चिकित्सकों ने उन्हें साध्य बना दिया है। मनुष्य विज्ञान के उपकार से कभी उऋण नहीं हो सकता, क्योंकि विज्ञान मनुष्य के लिए वरदान है।

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3:: मोबाइलः एक अनिवार्य आवश्यकता 

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मोबाइल की सुविधा अपना एक अलग ही स्थान बना चुकी है। समाज का प्रत्येक व्यक्ति मोबाइल के बिना अपने को अपाहिज-सा महसूस करने लगा है। मोबाइल ने एक ओर व्यक्ति को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय जगत की सभी ज्ञानवर्धक जानकारियों से जोड़ा है तो दूसरी और अनावश्यक तथा गुमराह करने वाले बहुत सारे ऐप्स से भी जोड़ दिया है। इन एप्स का युवा वर्ग पर बहुत ही बुरा असर पड़ रहा है। मोबाइल ने फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, स्नेपचैट, विभिन्न गेम्स जैसे विभिन्न प्रकार के एप्स द्वारा युवा वर्ग का समय भी बहुत बर्बाद किया है। अतः मोबाइल के उपयोग में लाभ और हानि दोनों ही समाहित है। इसका उपयोग हमें संभलकर करना होगा।


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