विशेष प्रस्तुति

 



विशेष प्रस्तुति (एंजल बजाज)


आज 30 जुलाई 2024 मंगलवार के दिन कबीर साहित्य समाज हिंदी क्लब द्वारा आयोजित प्रातःकालीन इस विशेष प्रार्थना सभा की विशेष प्रस्तुति लेकर उपस्थित हूँ -- मैं एंजेल बजाज और इस विशेष प्रस्तुति की विषयवस्तु है -- 'अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस'।

आज 30 जुलाई अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस का अवसर है। महाभारत, रामायण आदि ग्रन्थों में और कृष्ण-सुदामा, राम-सुग्रीव, कर्ण-दुर्योधन जैसी अगणित मित्रता संबंधी कहानियों को सुनकर पले बढ़े हम एक से बढ़कर एक मित्रता संबंधित प्रसंगों को जानते हैं। आइए इसी कड़ी में आज सुनते हैं ग्रीक-रोमन मायथोलोजी से जुड़ा मित्रता का महत्व दर्शाता भावुक कर देनेवाला एक प्रसंग, जो इस प्रकार है:

बहुत पुरानी बात है। सिसिली द्वीप के सरोक्यूज नामक नगर में दो गहरे मित्र थे। एक का नाम डामन और दूसरे का पेथियस था। दोनों की मित्रता की मिसाल दूर-दूर तक दी जाती थी। उन दिनों सिसिली पर एक अत्यंत क्रूर तथा धूर्त राजा का शासन था। उसका नाम डायनोसस था। क्रूर डायनोसस से पूरी प्रजा घृणा करती थी, लेकिन डर के कारण कुछ नहीं बोलती थी। एक दिन डामन से उसका अत्याचार नहीं देखा गया और उसने उसकी कड़े शब्दों में निंदा कर दी। बस फिर क्या था? डामन को राजद्रोह के अपराध में बंदी बना लिया गया और उसे मृत्युदंड की सजा सुना दी गई। जब यह बात पेथियस को पता चली तो वह दौड़ा-दौड़ा डायनोसस के राजदरबार में गया। उस समय डोमन डायनोसस से बात कर रहा था और कह रहा था, ‘राजन! आपने मुझे मृत्युदंड की सजा दी है। मैं मरने को तैयार हूँ, लेकिन मैं आखिरी बार अपनी पत्नी और बच्चों से मिलना चाहता हूँ। वे दूर समुद्र पार रहते हैं। कृपया मुझे उनसे मिलने की मोहलत दे दी जाए।

डामन की बात सुन कर क्रूर डायनोसस बोला, ‘यह कभी नहीं हो सकता।’ डामन बोला, ‘महाराज! उन्हें तो यह भी नहीं पता कि मैं किस हाल में हूँ। कम से कम अंतिम बार मुझे उनसे मिल लेने दीजिए।’ पर डायनोसस नहीं माना।

आखिर कुछ सोच कर वह बोला, ‘मैं तुम्हें ऐसे जाने की इजाजत तो कभी नहीं दूँगा, लेकिन हाँ, अगर तुम्हारे वापस आने तक तुम्हारे बदले कोई दूसरा व्यक्ति जेल में रहने को तैयार हो जाए तो मैं तुम्हें पंद्रह दिन की मोहलत दे दूँगा। पर अगर तुम पंद्रह दिन में नहीं लौटे, तो सोलहवें दिन उस व्यक्ति को तुम्हारी जगह मृत्युदंड दे दिया जाएगा।’

तभी डामन का प्रिय मित्र पेथियस वहाँ उसके सामने प्रकट होकर बोला, ‘राजन! मैं अपने मित्र की जगह पंद्रह दिन जेल में बिताने को तैयार हूँ। मुझे आपकी शर्त मंजूर है। अगर डामन पंद्रहवें दिन नहीं लौटा तो आप मुझे मृत्युदंड दे दीजिएगा।’

पेथियस की बात सुन कर डायनोसस दंग रह गया। वह सोचने लगा कि क्या दुनिया में ऐसे भी लोग हैं, जो अपने मित्र के लिए इस प्रकार अपनी जान की बाजी लगाने को तैयार हैं!

डामन की बेड़ियाँ खोल दी गईं और पेथियस को पहना दी गईं। पेथियस जेल में मन ही मन यह दुआ करता रहता कि डामन को लौटने में देर हो जाए और उसे मृत्युदंड दे दिया जाए। इससे दुनिया को पता चलेगा कि दोस्ती क्या होती है?

उधर डामन जहाज में यह सोच-सोच कर बेचैन हो रहा था कि अगर मैं समय पर नहीं पहुँच पाया, तो मेरे प्रिय निर्दोष मित्र को फाँसी हो जाएगी। मुझे हर हाल में समय से पहले वहाँ लौटना होगा। लेकिन वही हुआ, जो पेथियस सोच रहा था। हवा विरुद्ध होने के कारण डामन समय पर नहीं लौट पाया।

जब पंद्रह दिन बीत गए तो राजा डायनोसस उसके पास आया और व्यंग्य से बोला --

‘तेरा दोस्त बहुत बड़ा धोखेबाज निकला। तुझे फँसा कर खुद चैन की जिंदगी जी रहा है। अब तुझे उसकी जगह फाँसी पर चढ़ना होगा।’  राजा  क्रूरता से हँसता हुआ बोला --   ‘..... .धोखेबाज डामन।’

अपने मित्र पर लांछन लगते देख पेथियस गुस्से से बोला, ‘मेरा दोस्त धोखेबाज नहीं है। हवा का रुख विरुद्ध और तेज है, इसलिए वह तूफान में फँस गया होगा और समय पर नहीं लौट सका होगा। मेरे दोस्त पर  झूठा इल्जाम मत लगाओ।’ इतने कठिन क्षणों में भी अपनी जान की परवाह न करते हुए और मित्र की परवाह करते देख डायनोसस एक बार फिर हैरान हो गया।

आखिरी वक्त तक इंतजार करने के बाद पेथियस को फाँसी के तख्ते की ओर ले जाया जाने लगा। जल्लाद ने फाँसी की डोरी तैयार की और उसे पेथियस के मुँह पर कपड़ा चढ़ा कर चढ़ा दिया। जल्लाद रस्सी खींचने जा ही रहा था कि तभी जोर की आवाज सुनाई दी- ‘ठहरो… रुको… रुक जाओ… मैं आ गया।’ जल्लाद के हाथ वहीं रुक गए। सब लोगों ने आवाज की दिशा में देखा तो पाया कि डामन धूल-मिट्टी से सना घोड़े पर सवार तेजी से वहाँ आ रहा था  .... आ चुका था। वह उतर कर तुरंत अपने मित्र पेथियस से जा लिपटा और उसके गले से उसने फाँसी का फंदा उतार दिया।

इसके बाद वह राजा डायनोसस से बोला, ‘महाराज, मैं आ गया। अब मैं फाँसी के तख्ते पर चढ़ने के लिए तैयार हूँ।’ डामन को मौत के मुँह में जाते देख पेथियस आँखों में आँसू भर कर बोला, ‘हे ईश्वर, मैं दिन-रात यह कहता रहा कि मेरा मित्र समय पर न लौट पाए, तूफान में अटक जाए, लेकिन आपने मेरी प्रार्थना नहीं सुनी।’ इस पर डामन बोला, ‘पेथियस! ईश्वर ने तुम्हारी प्रार्थना सुन ली थी, लेकिन मुझे अपनी दोस्ती की लाज भी तो रखनी थी। नहीं तो आज के बाद दुनिया में कोई किसी को सच्चा मित्र कैसे बनाता।’

उन दोनों की बातें सुन कर और दोनों की गहरी एवं सच्ची मित्रता देख कर डायनोसस की भी आँखें खुल गईं। उसे अपने दुर्व्यवहार पर बहुत पछतावा हुआ। इसके बाद वह फाँसी के तख्ते तक स्वयं उठ कर आया और डामन का हाथ पकड़ कर उसे पेथियस के पास ले जाकर बोला, ‘तुम दोनों दोस्तों की सच्ची दोस्ती की मिसाल आज के बाद विश्व के कोने-कोने में दी जाती रहेगी। आज तुमने मुझे भी बदल दिया है।’

इसके बाद राजा डायनोसस बिल्कुल बदल गया। वह अपनी प्रजा का ध्यान रखने लगा।

आज भी डामन और पेथियस की सच्ची मित्रता लोगों को मित्रता का पाठ पढ़ाती है।

इसी मार्मिक कहानी के साथ मेरे सभी विद्यार्थी मित्रों को 'अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस' की शुभकामना प्रदान करते हुए आज की अपनी विशेष प्रस्तुति यहीं समाप्त करती हूँ।

धन्यवाद। 

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