एक कहानी यह भी/ मन्नू भंडारी



एक कहानी यह भी

               --मन्नू भंडारी 


प्रश्न 1: लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा?

उत्तर: लेखिका के व्यक्तित्व पर उनके पिताजी, हिंदी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल, पिताजी के घनिष्ठ मित्र डॉक्टर अंबालाल से लेकर अनेक लोगों का प्रभाव पड़ा। पिताजी से लेखिका ने घर, समाज--- हर कहीं अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने की सीख ली। हिंदी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने उनमें पुस्तकों के चयन के साथ-साथ विभिन्न साहित्य और साहित्यकारों के प्रति रुचि ही उत्पन्न नहीं की, चारदीवारी में रह रही लेखिका में खुलकर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने का जोश भी भरा। डॉ अंबालाल जी ने भी उनके भाषण और साहस का समर्थन कर हौसला बढ़ाया।

प्रश्न 2: इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को 'भटियारखाना' कहकर क्यों संबोधित किया है?

उत्तरः इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को 'भटियारखाना' कहकर इसलिए संबोधित किया है, क्योंकि उनका मानना है कि निरंतर रसोई में अपना समय अथवा पूरा जीवन व्यतीत करने से महिलाओं की प्रतिभा और क्षमता रसोई की भट्टी में ही जलकर राख हो जाती है। उन्हें रसोई के कामों में ही उलझ कर अपनी कला, प्रतिभा, क्षमता तथा अपनी इच्छाओं का दमन करना पड़ता है।

प्रश्न 3: वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर?

उत्तर: एक दिन कॉलेज के प्रिंसिपल ने लेखिका के पिता के नाम पत्र भेजा जिसमें उसके प्रति अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की बात कही गई थी। पत्र पढ़ते ही लेखिका के पिता जी का चेहरा क्रोध से तमतमा गया। उन्होंने कहा कि यह लड़की हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी।काॅलेज पहुँचने पर प्रिंसिपल ने लेखिका को घर पर रखने का ही आग्रह किया था, क्योंकि वह लड़कियों को जैसे-तैसे कक्षाओं में बिठाते हैं, लेकिन उनके एक इशारे पर सभी लड़कियाँ कक्षाएँ छोड़कर मैदान में एकत्र होकर नारे लगाने लगती हैं। उनके कारण उन्हें कॉलेज चलाना मुश्किल हो गया था। इसके उत्तर में पिताजी यह कहकर आए कि यह तो पूरे देश की पुकार है। इसमें मन्नू की क्या गलती? यह सब बातें जब पिता जी बड़े खुशी और गर्व भरे स्वर में बता रहे थे तो लेखिका को न तो अपनी आँखों पर विश्वास हुआ और न ही अपने कानों पर।

प्रश्न 4: लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए:

उत्तर: लेखिका ने जब से होश संभाला, तभी से पिताजी के साथ उनकी किसी-न-किसी बात पर टकराव होता ही रहता था। बचपन में ही लेखिका के काले रंग और दुबले-मरियल स्वास्थ्य की तुलना लेखिका की दीदी के सुंदर रंग-रूप और अच्छे स्वास्थ्य के साथ कर पिताजी ने लेखिका में हीनता की भावना पैदा कर दी थी। स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में लेखिका का स्वतंत्र होकर लड़कों के साथ नारे लगाना, हड़तालें करवाना, भाषणबाजी करना भी पिताजी को सहन नहीं होता था। वह उसे ऐसा करने से हमेशा मना करते थे और लेखिका को घर पर बैठने के लिए कहते। लेकिन लेखिका को दूसरों द्वारा दी जाने वाली आजादी पसंद नहीं थी। लेखिका के पिता अपनी संतान को विशिष्ट बनने के लिए भी प्रेरित करते और सामाजिक छवि को बेदाग बनाने के प्रति भी वे उतने ही सजग थे। लेखिका के अनुसार ऐसे विचार हमेशा टकराहट भरे ही होते हैं।

प्रश्न 5: इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए।

उत्तर: सन् 1946-47 के स्वतंत्रता आंदोलन में लेखिका मन्नू भंडारी भी पीछे नहीं रही। छोटे शहर की एक युवा लड़की होने के बावजूद आजादी की लड़ाई में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। स्वाधीनता आंदोलन के अंतर्गत जब देशभर में हड़ताल, नारेबाजी, भाषण, जुलूस आदि हो रहे थे, तब लेखिका ने भी अपने कॉलेज में यही सिलसिला आरंभ कर दिया। कॉलेज में उनका इतना प्रभाव था कि उनके एक संकेत मात्र से ही लड़कियाँ कक्षाएँ छोड़कर मैदान में एकत्रित हो जाती थीं और नारे लगाने लगती थीं।

प्रश्न 6: लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले किंतु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित था। क्या आज भी लड़कियों के लिए स्थितियाँ ऐसी ही हैं या बदल गई हैं, अपने परिवेश के आधार पर लिखिए।

उत्तर: आज स्थितियाँ काफी बदल गई हैं। लड़कियाँ पहले की तरह  केवल चारदीवारी के अंदर सीमित नहीं रह गई हैं। वह घर की दहलीज पार कर देश और विदेशों तक पहुँचने लगी हैं। आज लड़कियों पर लगे अंकुश धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं। लड़कियाँ लड़कों के समान हर क्षेत्र में तरक्की करने लगी हैं और खेल-कूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम,  समाज सेवा, राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में उत्साहपूर्ण ढंग से भाग लेने लगी हैं।

प्रश्न 7: मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्व होता है। परंतु महानगरों में रहने वाले लोग प्रायः पड़ोस कल्चर से वंचित रह जाते हैं। इस बारे में अपने विचार लिखिए।

उत्तर: मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्व होता है।पड़ोस कल्चर के कारण अकेला व्यक्ति भी कभी अकेलेपन का शिकार नहीं होता है। लेकिन महानगरों में फ्लैट कल्चर की संस्कृति के कारण लोग अपने फ्लैट तक ही सिमट कर रह गए हैं और आत्मकेंद्रिक बनने लगे हैं। इससे सामाजिक भावना एवं मानवीय मूल्यों पर गहरा धक्का पहुँच रहा है। महानगरों में इंसानों का जीवन दो या तीन कमरों के फ्लैट तक ही सीमित रह गया है। इंसान धन-दौलत व भौतिक सुख-सुविधाओं को इकट्ठा करने में इतना व्यस्त हो गया है कि उसको यह भी पता नहीं होता है कि उसके पड़ोस में कौन रहता है। अपने आस-पड़ोस से अनजान होने के कारण विपत्ति पड़ने पर वह किसी से सहायता भी नहीं ले पाता है। इसलिए महानगरों में इंसान अपने आप को बेहद असहाय और असुरक्षित महसूस करने लगा है।

प्रश्न 8: लेखिका द्वारा पढ़े गए उपन्यासों की सूची बनाइए।

उत्तर: पाठ के आधार पर लेखिका द्वारा पढ़े गए विभिन्न लेखक, साहित्यों का पता चलता है। उनमें से कुछ उपन्यासों का स्पष्ट उल्लेख भी मिलता है, जैसे:

सुनीता (जैनेंद्र कुमार),

त्यागपत्र (जैनेंद्र कुमार),

शेखर: एक जीवनी (अज्ञेय),

नदी के द्वीप (अज्ञेय),

चित्रलेखा (भगवतीचरण वर्मा)।





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