मैं धूल का कण
जिस दिन बिछड़ूँ मैं, इस तन से उड़ जाऊँ,
क्या खोएगा विश्व, कोई रत्न गवाऊँ?
मेरा होना-न होना, यह बात छोटी-सी,
कौन जानेगा कितनी, इस जग की गति-सी?
मैं चला जाऊँ, फिर भी दिन-रात गाएगा,
चाँद-सूरज का रथ उसी पथ नाच आएगा;
फूल हँस-हँस खिलेंगे, पवन गीत सुनाएगी,
तारों की टोली अपनी राह पर जाएगी।
जैसा आज, वैसा कल, जग का क्रम अटल,
न संशय का छींटा, न मन में कोई विह्वल;
विश्व के नियम अडिग, न कभी डगमगाते हैं,
मेरे बिना भी सदा, वे गीत गुनगुनाते हैं।
मेरे न रहने से, न रुकेगा कोई काम,
सृष्टि की धारा बहे, न थमे उसका धाम;
कर्म में लीन यह विश्व, अनंत, अथाह, सुंदर,
मेरे जाने की खबर न पाएगा यह मंदर।
धूल की अनंत रज में, मैं कण एक तुच्छ-सा,
नन्हा-मुन्ना, हल्का-सा, बस स्वप्न-सा चटक-सा;
मेरे बिना भी सृष्टि, रहेगी पूर्ण, रमणीया,
न होगी कमी कभी, न टूटेगा यह तमाशा।
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