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बालगोबिन भगत          -- रामवृक्ष बेनीपुरी  प्रश्नोत्तर   प्रश्न 1: खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे? उत्तर : खेतीबारी करने वाले एक गृहस्थ होते हुए भी बालगोबिन भगत अपनी निम्नलिखित चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे-- (i) वे हरदम प्रभु का स्मरण करते थे और भजन कीर्तन में व्यस्त रहते थे। (ii) उनका रहन-सहन, वेश-भूषा किसी साधु के समान बहुत ही सरल था। (iii) वह किसी दूसरे की चीजों को छूते तक नहीं थे। (iv) उनके मन में किसी के प्रति भी राग-द्वेष की भावना नहीं थी। (v) लंबे उपवास में रहने के बावजूद उनमें अजीब-सी मस्ती बनी रहती थी। प्रश्न 2: भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी? उत्तर : पुत्र की मृत्यु के बाद भगत अकेले हो चुके थे। भगत की पुत्रवधू उनकी सेवा करना चाहती थी। उनके लिए भोजन, दवा आदि का प्रबंध करना चाहती थी। इसलिए वह भगत को कतई अकेले छोड़ना नहीं चाहती थी। प्रश्न 3: भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं? उत्तर : भगत ने अपने बेटे की मृत्यु को भगवान की इच्छा के रूप में स्वीकार किया और

कालिदास

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                                          पुष्पेषु जाती                     नगरेषु काञ्ची                     नारीषु रंभा                      पुरुषेषु विष्णु:।                     नदीषु गंगा                      नृपतिषु राम:                     काव्येषु माघः                     कवि कालिदास:।।         का   लि   दा   स  भारत के इतिहास में गुप्त वंश का शासन काल भारतीय राजनीतिक इतिहास का एक स्वर्णिम युग माना जाता है। इसी युग में कला, शिल्प, स्थापत्य, साहित्य, विज्ञान, व्यापार, वाणिज्य आदि विविध क्षेत्रों में भारत का सर्वांगीण विकास हुआ। उस काल के मठ-मंदिरों की कला या वास्तुशिल्प, विख्यात अजंता-इलोरा गुफाओं की भास्कर्य कला आज भी गुप्त युग में विकसित असाधारण शिल्पकला का परिचय प्रस्तुत करता है। इस युग में संस्कृत साहित्य की अत्यंत श्रीवृद्धि हुई। प्राचीन भारतवर्ष के अद्वितीय कवि कालिदास का आविर्भाव भी इसी समय की बात है।                   भारत के प्राचीन काल में गुप्त वंश के राजा द्वितीय चंद्रगुप्त सम्राट विक्रमादित्य के नाम से भी जाने जाते थे। कहा जाता है कि कालिदास इन्हीं सम्राट विक्रमादित्

ऐसी हो जीवनशैली

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  २१ मई, २०२२ शनिवार    पृष्ठ १ ऐसी हो जीवनशैली लेखक: डाॅ. राजु अधिकारी _________________________________ पृष्ठ २ __________________________________ पृष्ठ ३ ऐसी हो जीवनशैली लेखक: डाॅ. राजु अधिकारी __________________________________ पृष्ठ ४ सादर समर्पण  युगॠषि, संस्कृतिपुरुष, ३२०० पुस्तकों के एकल स्रष्टा परमपूज्य गुरुदेव आचार्य पंडित श्रीराम शर्मा जी देव संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति, अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख,  मेरे विद्यावारिधि शोधकार्य के मार्गदर्शक              डाॅ. प्रणव पंड्या जी __________________________________________ पृष्ठ ५ ऐसी हो जीवनशैली लेखक: डाॅ. राजु अधिकारी omadhiraja@gmail.com  प्रकाशक: मानव उत्कर्ष नेपाल, काठमांडू मोबाइल: ९८४१३८५५८० संस्करण: प्रथम, माघ(वसंत पंचमी), २०७३ सर्वाधिकार: लेखक में भाषा संपादन: लक्ष्मण भंडारी आवरण: रामकृष्ण राना  लेआउट: यदुकुमार  मूल्य: ३९९/- ISBN: ९७८-९९३७-०-२०५१-० _______________________________________ पृष्ठ ६ पुस्तक के भीतर  १. जीवनशैली उत्प्रेरणा --- जीवनशैली उत्प्रेरणा  --- जीवनशैली विज्ञान  --- जीवनशैली क्रांति --- अस्त-व
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  दो बैलों की कथा                   ---प्रेमचंद   प्रश्नोत्तर: प्रश्न 1: कांजीहौस में कैद पशुओं की हाजिरी क्यों ली जाती होगी ? उत्तर : कांजीहौस में कैद पशुओं की हाजिरी इसलिए ली जाती होगी जिससे यह पता चल सके कि सभी पशु मवेशीखाने में हैं या नहीं। हाजिरी लेकर यह पता अथवा अनुमान लगाया जाता होगा कि कहीं कोई पशु भाग तो नहीं गया या उसकी चोरी तो नहीं हुई।  प्रश्न 2: छोटी बच्ची को बैलों के प्रति प्रेम क्यों उमड़ आया?    उत्तर : छोटी बच्ची की माँ मर चुकी थी। उसकी सौतेली माँ उस पर बहुत अत्याचार करती थी। बैलों पर हुए अत्याचारों की तुलना भी वह अपने ऊपर हुए अत्याचारों से करती थी। उनके दुखों को वह भली-भाँति समझती थी। बैलों के प्रति इन्हीं आत्मीयता भरी भावनाओं के कारण छोटी बच्ची को बैलों के प्रति प्रेम उमड़ आया। प्रश्न 3: कहानी में बैलों के माध्यम से कौन-कौन से नीति-विषयक मूल्य उभर कर आए हैं? उत्तर:  कहानी में बैलों के माध्यम से अनेक नीति-विषयक मूल्य उभर कर आए हैं; जैसे-- (i) स्वतंत्रता के लिए हमें सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिए,  (ii) अत्याचार का यथासंभव विरोध करना चाहिए,  (iii) असहाय अवस्था में पड़े हुए
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    नेताजी का चश्मा    --- स्वयं प्रकाश प्रश्नोत्तर   प्रश्न 1:  सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे? उत्तर :  चश्मेवाले के मन में देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। उसे देशभक्तों से बहुत प्रेम था। कस्बे के चौराहे में स्थित बिना चश्मेवाली नेता जी की मूर्ति देखकर अथवा मूर्ति के अधूरेपन को देखकर वह बहुत दुखी होता था। इसलिए अपनी ओर से चश्मा पहनाकर वह मूर्ति का अधूरापन दूर करता था और नेताजी के प्रति अपने मन की श्रद्धा भी प्रकट करता था। उसके मन की देशभक्ति की इसी भावना को देखकर लोग उसे कैप्टन कहकर बुलाते होंगे। प्रश्न 2: हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा--- (क) हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे? उत्तर : हालदार साहब को लगा था कि कैप्टन चश्मे वाले की मृत्यु के बाद नेता जी की मूर्ति हमेशा बिना चश्मे के खड़ी रहेगी। इसलिए हालदार साहब पहले मायूस हो गए थे। (ख) मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है? उत्तर:  मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा यह उम्मीद जगाता है कि आज भी समाज में देशवासियों का सम्मा