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विदेश: नेपाली यात्री की दृष्टि में

 विदेश: नेपाली यात्री की दृष्टि में                   उद्गार साहित्य के महत्वपूर्ण अंग को एक बड़ा योगदान यात्रा संस्मरण के महत्व अनेक हैं। पाँचवीं और सातवीं शताब्दी के करीब नेपाल और भारत की यात्रा करने वाले चीनी यात्री फाहियान और ह्वेनसांग के यात्रा संस्मरण की याद भी इन्हीं कारणों से इतिहासकार आज तक करते हैं। आज के अन्वेषण अनुसंधान के युग में ऐसे यात्रा संस्मरण से लोगों को रोचक जानकारी देने के साथ-साथ ज्ञान की सीढ़ी चढ़ने का मात्र न होकर प्रगति पथ पर आगे बढ़ने के लिए आवश्यक प्रेरणा देने का कार्य भी होता है। यात्रा संस्मरण इसीलिए आज के संदर्भ में देश-विदेश के वर्णन में मात्र सीमित न होकर एक मानव की अनुभव अनुभूति से दूसरे मानव को सीखने समझने की विधा रूप में विस्तृत हो गया है। श्री घनश्याम राजकर्णिकार की प्रस्तुत पुस्तक में समाहित विभिन्न देशों के भ्रमण वृत्तांत इसी अर्थ में अविस्मरणीय हो गए हैं। इसमें एक नेपाली बुद्धिजीवी के मन मस्तिष्क के द्वारा ग्रहण की गई उसकी अपने देश की तुलना में विकसित हो चुके देशों के विकास के रहस्य मात्रा अभिलिखित ...

महिषासुरमर्दिनिस्तोत्रम्

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  महिषासुरमर्दिनिस्तोत्रम् अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्द नुते गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनिविष्णुविलासिनिजिष्णुनुते भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि   शैलसुते ।।१॥ सुरवर वर्षिणि दुर्धर धर्षिणि दुर्मुख मर्षिणि हर्षरते त्रिभुवनपोषिणिशङ्करतोषिणि किल्बिष मोषिणि घोषरते। दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥२॥   अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रिय वासिनि हासरते शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमालय शृङ्गनिजालय मध्यगते। मधुमधुरे  मधुकैटभ गञ्जिनि कैटभ भञ्जिनि रासरते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥३॥   अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड वितुण्डित शुंड गजाधिपते रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते। निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥४॥   अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते। दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदूत कृतान्तमते जय जय हे मह...

प्रश्नोत्तर अभ्यास

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प्रश्नोत्तर अभ्यास प्रश्न 1: सलीम अली की दृष्टि में प्रकृति कैसी है?  उत्तर : सालिम अली की दृष्टि में प्रकृति रहस्यों से भरी हुई है। उनके अनुसार जितना ज्यादा प्रकृति के निकट रहा जाए, उतना ही ज्यादा उसे समझा जा सकता है। सालिम अली प्रकृति को ही अपनी दुनिया मानते थे। प्रश्न  2: लेखक ने सालिम अली को 'नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप' क्यों कहा है?  उत्तर : लेखक ने सालिम अली के स्वाभाविक, सरल एवं सहज जीवन चरित्र की ओर संकेत करने के लिए उन्हें 'नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप' कहा है। उनका व्यक्तित्व प्रकृति की ही भाँति सहज एवं सरल था, जिसमें कृत्रिमता या बनावटीपन के लिए कोई जगह नहीं थी।  प्रश्न  3: फ्रीडा अपने पति के बारे में कुछ भी लिख पाने में असमर्थ क्यों महसूस कर रही थी?  उत्तरः फ्रीडा को ऐसा लगता था कि उनके पति के बारे में उनसे ज्यादा तो उनकी छत पर बैठने वाली गौरैया जानती है, क्योंकि उनके पति डी. एच. लॉरेंस का प्रकृति से बहुत गहरा लगाव था और घनिष्ठ संबंध भी। फ्रीडा को लगता था कि उनके पति लॉरेंस का जितना समय प्रकृति एवं पक्षियों के बीच बीत जाता है, उतना समय उनके (अप...

हिंदी कविताएँ

  एक नया अनुभव                           :हरिवंश राय बच्चन  मैंने चिड़िया से कहा--  मैं तुम पर एक कविता लिखना चाहता हूँ  चिड़िया ने मुझसे पूछा, 'तुम्हारे शब्दों में मेरी परों की रंगीनी है?' मैंने कहा-- 'नहीं' 'तुम्हारे शब्दों में मेरे कंठ का संगीत है?' 'नहीं' 'तुम्हारे शब्दों में मेरे पंखों का उड़ान है?' 'नहीं' 'जान है?' 'नहीं'  'तब तुम मुझ पर कविता क्या लिखोगे?' मैंने कहा, 'पर तुमसे मुझे प्यार है।' चिड़िया बोली, 'प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है?  एक अनुभव हुआ नया,  मैं मौन हो गया। =======================================        अलंकार   प्रश्नोत्तर : प्रश्न 1: अलंकार किसे कहते हैं? इसके मुख्यतः कितने भेद हैं? उनके नाम लिखिए: उत्तर : काव्य की शोभा या सुंदरता बढ़ाने वाले तत्वों को  अलंकार  कहते हैं। इसके मुख्यतः दो भेद हैंं --- (क)  शब्दालंकार  और (ख)  अर्थालंकार प्रश्न 2: शब्दालंकार किसे कहते हैं? उदाहरण सहित लिखिए: उत्तर : जिस अलंका...