अट नहीं रही है/शब्दार्थ और प्रश्नोत्तर
अट नहीं रही है कवि: सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला ' शब्दार्थ: (i) अट ------------ समा जाना, प्रविष्ट होना (ii) पाट-पाट ----- जगह-जगह (iii) शोभा-श्री --- सौंदर्य से भरपूर (iv) पट नहीं रही है ---- समा नहीं रही है (v) नभ ----------- आकाश (vi) पर ----------- पंख (vii) पुष्प-माल -- फूलों की माला (viii) मंद-गंध ------ खुशबू, सुगंध प्रश्नोत्तर: प्रश्न 1: कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है? उत्तरः फागुन के महीने में पेड़-पौधों में रंग-बिरंगे फूल, हरे कोमल पत्ते, मंद बहती हवाओं के कारण प्रकृति की सुंदरता में अनुपम निखार आ जाता है। फागुन की सुंदरता चारों तरफ नजर आने लगती है। वातावरण उल्लासमय होने लगता है। कवि की आँखें फागुन की सुंदरता से अभिभूत हैं। इसलिए चाहकर भी कवि इस फागुन की सुंदरता से अपनी आँखें नहीं हटा पा रहा है। प्रश्न 2: प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है? उत्तर : प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन निम्नलिखित रूपों में किया है-- (i) समस्त प्रकृति फल-फूलों से लद गई है