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दिसंबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रीढ़ की हड्डी/जगदीश चंद्र माथुर

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  रीढ़ की हड्डी         --- जगदीश चंद्र माथुर  प्रश्न 1: रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद बात-बात पर "एक हमारा जमाना था..." कहकर अपने समय की तुलना वर्तमान समय से करते हैं। इस प्रकार की तुलना करना कहाँ तक तर्कसंगत है? उत्तर : बुजुर्ग लोगों द्वारा अपने समय को वर्तमान समय से बेहतर सिद्ध करने का प्रयास और दोनों समय की तुलना करना बिल्कुल भी तर्कसंगत नहीं है। वर्तमान और भविष्य से निराश व्यक्ति ही इस प्रकार की तुलना करते हैं। उन्हें लगता है कि जितना जो कुछ अच्छा था वह सारा उनके जमाने में ही था। बात-बात पर भूतकाल की तारीफ और वर्तमान की निंदा वे लोग करते हैं जो वर्तमान और भविष्य के साथ अपनी जीवनशैली का तालमेल नहीं बिठा पाते। प्रश्न 2: रामस्वरूप का अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाना और विवाह के लिए छिपाना, यह विरोधाभास उनकी किस विवशता को उजागर करता है? उत्तर : रामस्वरूप ने अपनी बेटी को उच्च शिक्षा इसलिए दिलाई कि जीवन के हर क्षेत्र में उसकी योग्यता बढ़े, अपने जीवन की जटिलताओं को आसानी से वह सुलझा सके और अपने पैरों पर वह खुद खड़ी हो सके। लेकिन लड़के वालों के द्वारा कम पढ़ी-लिखी लड़की चाहने पर अपन

बच्चे काम पर जा रहे हैं /राजेश जोशी

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  बच्चे काम पर जा रहे हैं                      --  कवि: राजेश जोशी प्रश्न 1: कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से आपके मन-मस्तिष्क में जो चित्र उभरता है, उसे लिखकर व्यक्त कीजिए। उत्तर : कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से हमा रे मन-मस्तिष्क में बाल-मजदूरी करते बच्चों की एक करुण एवं  दयनीय तस्वीर उभरती है। मन में यह विचार आता है कि यह तो इन बच्चों की खेलने-कूदने की उम्र है, किंतु इन्हें भयंकर कोहरे में भी आराम नहीं है।  उनका बचपन खो गया है।   आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण  सुबह-सुबह उठने के लिए और न चाहते हुए भी काम पर जाने के लिए ये बच्चे मज़बूर हैं। प्रश्न 2: कवि का मानना है कि बच्चों के काम पर जाने की भयानक बात को विवरण की तरह न लिखकर सवाल के रूप में पूछा जाना चाहिए कि ‘काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?’ कवि की दृष्टि में उसे प्रश्न के रूप में क्यों पूछा जाना चाहिए? उत्तर : कवि के अनुसार इसे प्रश्न  की भाँति पूछा जाना चाहिए ताकि इसका कोई हल निकले।  अकसर हम समस्याओं को विवरण की तरह लिखते हैं, अतः कोई हल नहीं निकलता। गंभीर समस्याओं को सवालों की तर

मेघ आए/ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

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             मेघ आए                                     ---  सर्वेश्वर दयाल सक्सेना प्रश्न 1: बादलों के आने पर प्रकृति में जिन गतिशील क्रियाओं को कवि ने चित्रित किया है, उन्हें लिखिए। उत्तरः बादलों के आने पर कवि ने प्रकृति की निम्नलिखित गतिशील क्रियाओं को चित्रित किया है-- (i) बादल रूपी मेहमान के आने की सूचना देने के लिए हवा का नाचते गाते चलना, (ii) धूल का घाघरा उठा कर भागना, (iii) पीपल के द्वारा झुककर बादल रूपी मेहमान का स्वागत करना, (iv) लताओं का पेड़ की शाखाओं में छुप जाना, (v) तालाबों का जल से भर जाना, (vi) आकाश में बिजली का चमकना आदि। प्रश्न 2: निम्नलिखित शब्द किसके प्रतीक हैं?  धूल, पेड़, नदी, लता, ताल  उत्तर: धूलः अतिथि के आगमन से अति उत्साहित चंचल बालिकाएँ पेड़ः ग्रामीण व्यक्ति जो शहरी दामाद के आने पर गर्दन उचका-उचका कर उसे देखता है  नदी : गाँव की युवती जो शहरी दामाद को आता देख उसे ठिठक-ठिठक कर देखती है लता : युवा पत्नी जो बहुत दिनों बाद बादल रूपी प्रियतम के आने से रूठी हुई है और किवाड़ की ओट से उसे देखती है ताल : मेहमान के स्वागत में उनके चरण धोने के लिए परात में लाया हुआ प

तेरे बिन मैं/बसंत चौधरी

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 तेरे बिन मैं/बसंत चौधरी पृष्ठ i तेरे बिन मैं/बसंत चौधरी ======================================= पृष्ठ ii आशा और प्रकाश के कवि बसंत चौधरी नेपाली वाङ्मयों के प्रवर्धन के लिए प्रयासरत अभियंता ही नहीं, एक सिद्धहस्त स्रष्टा तथा प्रेमी कवि भी हैं। नेपाली भाषा के साथ हिंदी भाषा में भी वे अपनी सशक्त रचनाएँ विमोचत  कर चुके हैं। इसी वर्ष नेपाली भाषा में रचित उनकी 85 (पचासी) कविताओं का संग्रह 'तिमी बिना को म' शीर्षक के साथ प्रकाशित हो चुका है। बसंत चौधरीकृत इस कविता संग्रह की सभी कविताएँ जीवन के शाश्वत मूल्यों की खोज के प्रति प्रेरित हैं। मानव मन के भीतर की संवेदनाओंके गहन सरोवर में संवेगजड़ित बिंब तथा कल्पनानिश्चित परिवेश का सुरक्षा कवच पहनकर विचरण करने से प्राप्त सार में ही कवि चौधरी जीवन को परिभाषित करने की कोशिश करते हुए लिखते हैं और ज्यादातर कविताओं में इसी आनंद में वे तल्लीन पाए जाते हैं। कवि की दृष्टि में प्रेम और सद्भावना से निर्मित प्रेममय संसार ही जीवन का अजस्र स्रोत है। प्रेम के इन्हीं स्रोतों की तलाश में ही प्रेम की सार्थकता प्रमाणित होती है। इसी प्रेम के स्रोतरूप प्रेमिका की

मेरी जननी मेरी जन्मभूमि

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पृष्ठ i  मेरी जननी मेरी जन्मभूमि =======/=============================== पृष्ठ ii ======================================= पृष्ठ iii मेरी जननी मेरी जन्मभूमि (बाल यात्रावृत्त) घनश्याम राजकर्णिकार विवेक सृजनशील प्रकाशन प्रा. लि. काठमांडू, नेपाल  ======================================= पृष्ठ iv मेरी जननी मेरी जन्मभूमि विधा: बाल यात्रावृत्त लेखक: घनश्याम राजकर्णिकार संस्करण: प्रथम, 2077 (नेपाली संस्करण) सर्वाधिकार: लेखक में प्रकाशक: विवेक सृजनशील प्रकाशन प्रा. लि. आवरण: युवक श्रेष्ठ  लेआउट: आनंद राउत मुद्रण: बंगलामुखी अफसेट प्रेस ======================================= पृष्ठ v स्नेहासिक्त उपहार  यह बाल यात्रावृत्त मेरे पोते पोतियाँ-- आश्रय, ओजष, हृदयषा,  सुयेशा, रयान, सुवंश  और  श्रयान के लिए  --- घनश्याम राजकर्णिकार ====================================== पृष्ठ vi प्रौढ़ यात्रा संस्मरण के रचनाकार के अनुभव जनित बाल यात्रावृत्त मेरी जननी मेरी जन्मभूमि वरिष्ठ यात्रावृत्तकार घनश्याम राजकर्णिकार इस बार लेखन का एक अलग ही स्वाद लेकर आए हैं। अपनी पहचान दिलाने वाली वाली विधा यात्रावृत्त को नवीन बालस

मेरे बचपन के दिन/ महादेवी वर्मा

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  मेरे बचपन के दिन/ महादेवी वर्मा प्रश्न 1: "मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है।"  इस कथन के आलोक में आप यह पता लगाएँ कि -- (क) उस समय लड़कियों की दशा कैसी थी?  उत्तर : उस समय लड़कियों की अवस्था अच्छी नहीं थी। उन्हें परिवार का बोझ समझा जाता था। उनके जन्म पर पूरे घर में मातम-सा छा जाता था। उन्हें पढ़ाई-लिखाई से दूर रखा जाता था और ज्यादा-से-ज्यादा घर के कामों में लगाया जाता था। कई परिवार तो उनके जन्म होते ही उन्हें मार तक देते थे।  (ख) लड़कियों के जन्म के संबंध में आज कैसी परिस्थितियाँ हैं? उत्तर: आज लड़कियों के जन्म के संबंध में स्थितियाँ कुछ बदली हैं। शिक्षित परिवारों में लड़कियों का भी लड़कों के समान ही स्वागत होता है। उन्हें भी अच्छी तरह से पढ़ाया-लिखाया जाता है। पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने के लिए उन्हें कहीं भी भेजा जाता है। लेकिन लड़कियों के जन्म को रोकने के लिए आज भी जितनी भ्रूण हत्याएँ हो रही हैं, उन्हें अवश्य ही रोकने की जरूरत है। प्रश्न 2: लेखिका उर्दू फारसी क्यों नहीं सीख पाई? उत्तर : लेखिका को उर्दू-फा