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शिव तांडव स्तोत्रम्

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Main results शिवतांडवस्तोत्रम्  जटाटवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्।।1।। जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम:।।2।। धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस् फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि।।3।। जटा भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि।।4।। सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः।।5।। ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदे शिरो जटालमस्तु नः।।6।। कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चस

मधु विवाह

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                                      मधु विवाह                                                 मूल नेपाली: मदनमणि दीक्षित                                       हिंदी अनुवाद: पुरुषोत्तम पोख्रेल                              यह कोई कहानी नहीं है। अपने सत्य को अपनी कल्पना से रंगाया गया मात्र है।                          'दांपत्य की अस्सीवीं जयंती'             आगामी दो चैत्र, विक्रम संवत 2075 के दिन हमारे दांपत्य जीवन की अस्सीवीं जयंती के अवसर पर संपन्न होने जा रहे हमारे मधु विवाह में और हमारे परिवार की प्रसन्नता की घड़ी में सम्मिलित होकर हम पर स्नेह बरसाने का विनम्र अनुरोध करते हैं।                                                 प्रार्थी: रीता और दिनेश                                                (प्रथम विवाह: 25 माघ, वि.सं. 1995)             सगे संबंधी और इष्ट मित्रों के नाम भेजे गए निमंत्रण पत्र के अवशिष्ट अंश के नमूने को दिनेश बड़े ही स्नेहासिक्त दृष्टि से देख रहा था, ऐसे ही समय में उसकी पत्नी ने कमरे में प्रवेश किया और निमंत्रण पत्र के नमूने को पढ़कर पति की ओर विस्मयपूर्वक

नेपाली यात्रा साहित्य और 'पिरामिडको देशमा'

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नेपाली यात्रा साहित्य और 'पिरामिडको देशमा'                                  मूल नेपाली: कृष्णप्रसाद पराजुली                                हिंदी अनुवाद: पुरुषोत्तम पोख्रेल                  यात्रा के दौरान अनेक खट्टे-मीठे अनुभवों के क्षण मिलते हैं। उन्हीं क्षणों में उत्साह और प्रेरणा के फूल खिलते हैं। अनुभव और अनुभूति के गीत समेटे जाते हैं। व्यक्तिसंदर्भ की परिसीमा लाँघते हुए यह अनुभव सार्वजनिक होने लगते हैं। संस्मरण तैयार किए जाते हैं।  इन क्षणों के संस्मरणों का पाठ करते समय पाठक भी एकात्मबोध होता है, जैसे वह भी इस यात्रासाहित्य के लेखक के साथ मिलकर यात्रा कर रहा हो।                  जीवन भी अपने आप में एक यात्रा ही है। मनुष्य का जीवन कभी गुनगुनाता है, कभी सुगबुगाता है, कभी सुख-दुख के अनेक मोड़ों से होते हुए गुजरता है। इंसान कभी जीवन की ऊँचाई चढ़ता है तो कभी उसे वहाँ से उतरना भी पड़ता है। परिवर्तन की आकांक्षा रखते हुए आगे बढ़ने वाले गतिशील जीवन की यह यात्रा जीवन-संघर्ष के उतार-चढ़ाव को चीरते हुए आगे बढ़ती है।                    दूसरी ओर उत्सुकता और खोज की चाह रखते हुए अथवा अध्य

अनुवाद के अभ्यस्त कृष्णप्रकाश

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  अनुवाद के अभ्यस्त                   मूल नेपाली: जीवा लामिछाने                हिंदी अनुवाद: पुरुषोत्तम पोख्रेल                    कोरोना वायरस चारों ओर कहर बनकर छा गया है। विश्वव्यापी इस महाव्याधि ने कई लोगों को हमसे छीन लिया है और यह क्रम जारी है। यह सूची काफी लंबी हो चुकी है। आज मुझे विश्वास करना मुश्किल हो रहा है कि इस सूची में सभी नेपालियों के अभिभावक, नेपाली साहित्य क्षेत्र के अथक साधक और मेरे साहित्य गुरु कृष्णप्रकाश श्रेष्ठ को भी निर्ममतापूर्वक इस व्याधि ने हमसे छीन लिया है। 82 वर्ष की उम्र में भी वे काफी तंदुरुस्त और उत्साही दिखते थे। कोरोना वायरस से संक्रमित होने के 1(एक) महीने पहले तक भी वह भाषा और साहित्य के उत्थान में निरंतर लगे हुए थे। उनकी इस सक्रियता को देखते हुए और भाषा साहित्य के प्रति उनके लंबे योगदान का सम्मान करते हुए नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान ने अनुवाद के लिए प्रदान किया जाने वाला सबसे बड़ा सम्मान 'अनुवाद प्रज्ञा सम्मान' उन्हींको प्रदान करने की घोषणा की थी। राष्ट्रपति के करकमलों से पुरस्कार प्रदान किए जाने की व्यवस्था करते हुए प्रज्ञा प्रतिष्ठान कृष्ण दाई क

रस-निष्पत्ति, कक्षा: 10, हिंदी 'अ'

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              रस-निष्प त्ति प्रश्न 1:  'वाक्यं रसात्मकं काव्यम्' किसका कथन है? (क) आचार्य जगन्नाथ (ख) आचार्य भरतमुनि  (ग) वेदव्यास   (घ) आचार्य विश्वनाथ प्रश्न 2: किस रस को 'रसराज' कहा जाता है? (क) करुण रस  (ख) रौद्र रस  (ग) शृंगार रस (घ) भक्ति रस  प्रश्न 3: इनमें से किस रस को नौवाँ रस माना गया है? (क) शांत रस   (ख) वात्सल्य रस  (ग) शृंगार रस  (घ) सभी प्रश्न 4:  भरतमुनि के अनुसार रस कितने प्रकार के होते हैं? (क) 9(नौ) (ख) 10(दस) (ग) 11(ग्यारह) (घ) 8(आठ )

पद-परिचय, कक्षा: 10, हिंदी 'अ'

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                         पद-परिचय   प्रश्न 1: वाक्यों में प्रयुक्त शब्द क्या कहलाता है?  (क) शब्द  (ख) पद   (ग) पदबंध  (घ) पद-परिचय  प्रश्न 2: वाक्यों में प्रयुक्त पदों का व्याकरणिक परिचय देना अथवा व्याकरण के अनुसार उनका स्वरूप बताना क्या कहलाता है? (क) पद परिचय   (ख) उपवाक्य  (ग) पदबंध  (घ) उपर्युक्त सभी प्रश्न 3:  इनमें से विकारी शब्द कौन-सा है? ( क) हाथी (ख) यहाँ (ग) इधर (घ) उधर प्रश्न 4: परिश्रम के बिना विद्या नहीं मिलती।-- रेखांकित पद के परिचय में लिखा जाएगा --- (क)संबंधबोधक अव्यय, संबंधी 'परिश्रम' (ख) संबंधबोधक अव्यय, संबंधी 'विद्या' (ग) संबंधबोधक अव्यय, संबंधी 'मिलना' ( घ) संबंधबोधक अव्यय, संबंधी 'परिश्रम' और 'विद्या '  प्रश्न 5: गीता  पुस्तक  पढ़ती है | रेखांकित पद है – (क) व्यक्तिवाचक संज्ञा (ख) समुदाय वाचक संज्ञा (ग) भाववाचक संज्ञा (घ) जातिवाचक संज्ञा प्रश्न 6: यह वहीँ साइकिल है, जिसे  कोई  चुराकर ले गया था।--रेखांकित पद है: (क ) निश्चयवाचक सर्वनाम (ख) अनिश्चयवाचक सर्वनाम (ग) सम्बन्धवाचक सर्वनाम (घ) निजवाचक सर्वनाम  प्रश्न 7: नेपाल में

बच्चे काम पर जा रहे हैं, क्षितिज, हिंदी, कक्षा: 9

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  बच्चे काम पर जा रहे हैं               कवि: राजेश जोशी कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं सुबह सुबह बच्चे काम पर जा रहे हैं हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ? क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें क्या दीमकों ने खा लिया है सारी रंग बिरंगी किताबों को क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं सारे मदरसों की इमारतें क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन खत्म हो गए हैं एकाएक तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में ? कितना भयानक होता अगर ऐसा होता भयानक है लेकिन इससे भी ज़्यादा यह कि हैं सारी चीज़ें हस्बमामूल पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजरते हुए बच्चे, बहुत छोटे छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं। बच्चे काम पर जा रहे हैं               कवि: राजेश जोशी प्रश्न 1: कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से आपके मन मस्तिष्क में जो चित्र उभरता है उसे लिखकर व्यक्त कीजिए। उत्तर :  कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से हमा रे मन-