'माँ' शीर्षक पर कुछ कविताएँ
(1) माँ की परिभाषा हम एक शब्द हैं तो वह पूरी भाषा है हम कुंठित हैं तो वह एक अभिलाषा है बस यही माँ की परिभाषा है। हम समुंदर का हैं तेज तो वह झरनों का निर्मल स्वर, हम एक शूल हैं तो वह सहस्त्र ढाल प्रखर, हम दुनिया के हैं अंग, वह उसकी अनुक्रमणिका है, हम पत्थर के हैं कण वह कंचन की कनिका है, हम बकवास हैं वह भाषण है, हम सरकार हैं वह शासन है, हम लव कुश हैं वह सीता है, हम छंद हैं वह कविता है, हम राजा हैं वह राज है, हम मस्तक हैं वह ताज है, वही सरस्वती का उद्गम है रणचंडी और नासा है, हम एक शब्द हैं तो वह पूरी भाषा है, बस यही माँ की परिभाषा है। बस यही माँ की परिभाषा है। --- कवि: शैलेश लोढा ==================================== (2 ) मेरी प्यारी माँ जब आँख खुली तो अम्मा की गोदी का एक सहारा था। उसका नन्हा-सा आँचल मुझको भूमण्डल से प्यारा था।। उसके चेहरे की झलक देख चेहरा फूलों सा खिलता था। उसके स्तन की एक बूँद से मुझको जीवन मिलता था।। हाथों से बाल