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यात्रा विदेश की, यादें स्वदेश की/ घनश्याम राजकर्णिकार

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यात्रा विदेश की, यादें स्वदेश की     उद्गार साहित्य के महत्वपूर्ण अंग को एक बड़ा योगदान यात्रा संस्मरण के अनेक महत्व हैं। पाँचवीं और सातवीं शताब्दी के करीब नेपाल और भारत की यात्रा करने वाले चीनी यात्री फाहियान और ह्वेनसांग के यात्रा संस्मरण भी अनेक कारणों से इतिहासकार आज तक याद करते हैं। आज के अन्वेषण, अनुसंधान के युग में ऐसे यात्रासंस्मरण के माध्यम से लोगों को रोचक जानकारी देने के साथ-साथ ज्ञान की सीढ़ी चढ़ने का मात्र न होकर प्रगति पथ पर आगे बढ़ने के लिए आवश्यक प्रेरणा देने का कार्य भी होता है। इसीलिए आज के संदर्भ में यात्रासंस्मरण देश-विदेश के वर्णन में मात्र सीमित न होकर एक मानव की अनुभव-अनुभूति से दूसरे मानव को जानने-समझने की विधा के रूप में भी विस्तृत हो गया है।  श्री घनश्याम राजकर्णिकार की प्रस्तुत पुस्तक में समाहित विभिन्न देशों के भ्रमण वृतांत इसी अर्थ में अविस्मरणीय हो गए हैं। इसमें अपने देश की तुलना में विकसित हो चुके देशों के विकास के रहस्य मात्र अभिलिखित नहीं है, बल्कि एक नेपाली बुद्धिजीवी के मन-मस्तिष्क के द्वारा उसमें निहित दुर्गुण, दुर्भावना और दुष्कृतियाँ भी  ग्रहण की ग

रीढ़ की हड्डी/जगदीश चंद्र माथुर

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  रीढ़ की हड्डी         --- जगदीश चंद्र माथुर  प्रश्न 1: रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद बात-बात पर "एक हमारा जमाना था..." कहकर अपने समय की तुलना वर्तमान समय से करते हैं। इस प्रकार की तुलना करना कहाँ तक तर्कसंगत है? उत्तर : बुजुर्ग लोगों द्वारा अपने समय को वर्तमान समय से बेहतर सिद्ध करने का प्रयास और दोनों समय की तुलना करना बिल्कुल भी तर्कसंगत नहीं है। वर्तमान और भविष्य से निराश व्यक्ति ही इस प्रकार की तुलना करते हैं। उन्हें लगता है कि जितना जो कुछ अच्छा था वह सारा उनके जमाने में ही था। बात-बात पर भूतकाल की तारीफ और वर्तमान की निंदा वे लोग करते हैं जो वर्तमान और भविष्य के साथ अपनी जीवनशैली का तालमेल नहीं बिठा पाते। प्रश्न 2: रामस्वरूप का अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाना और विवाह के लिए छिपाना, यह विरोधाभास उनकी किस विवशता को उजागर करता है? उत्तर : रामस्वरूप ने अपनी बेटी को उच्च शिक्षा इसलिए दिलाई कि जीवन के हर क्षेत्र में उसकी योग्यता बढ़े, अपने जीवन की जटिलताओं को आसानी से वह सुलझा सके और अपने पैरों पर वह खुद खड़ी हो सके। लेकिन लड़के वालों के द्वारा कम पढ़ी-लिखी लड़की चाहने पर अपन

बच्चे काम पर जा रहे हैं /राजेश जोशी

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  बच्चे काम पर जा रहे हैं                      --  कवि: राजेश जोशी प्रश्न 1: कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से आपके मन-मस्तिष्क में जो चित्र उभरता है, उसे लिखकर व्यक्त कीजिए। उत्तर : कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से हमा रे मन-मस्तिष्क में बाल-मजदूरी करते बच्चों की एक करुण एवं  दयनीय तस्वीर उभरती है। मन में यह विचार आता है कि यह तो इन बच्चों की खेलने-कूदने की उम्र है, किंतु इन्हें भयंकर कोहरे में भी आराम नहीं है।  उनका बचपन खो गया है।   आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण  सुबह-सुबह उठने के लिए और न चाहते हुए भी काम पर जाने के लिए ये बच्चे मज़बूर हैं। प्रश्न 2: कवि का मानना है कि बच्चों के काम पर जाने की भयानक बात को विवरण की तरह न लिखकर सवाल के रूप में पूछा जाना चाहिए कि ‘काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?’ कवि की दृष्टि में उसे प्रश्न के रूप में क्यों पूछा जाना चाहिए? उत्तर : कवि के अनुसार इसे प्रश्न  की भाँति पूछा जाना चाहिए ताकि इसका कोई हल निकले।  अकसर हम समस्याओं को विवरण की तरह लिखते हैं, अतः कोई हल नहीं निकलता। गंभीर समस्याओं को सवालों की तर

मेघ आए/ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

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             मेघ आए                                     ---  सर्वेश्वर दयाल सक्सेना प्रश्न 1: बादलों के आने पर प्रकृति में जिन गतिशील क्रियाओं को कवि ने चित्रित किया है, उन्हें लिखिए। उत्तरः बादलों के आने पर कवि ने प्रकृति की निम्नलिखित गतिशील क्रियाओं को चित्रित किया है-- (i) बादल रूपी मेहमान के आने की सूचना देने के लिए हवा का नाचते गाते चलना, (ii) धूल का घाघरा उठा कर भागना, (iii) पीपल के द्वारा झुककर बादल रूपी मेहमान का स्वागत करना, (iv) लताओं का पेड़ की शाखाओं में छुप जाना, (v) तालाबों का जल से भर जाना, (vi) आकाश में बिजली का चमकना आदि। प्रश्न 2: निम्नलिखित शब्द किसके प्रतीक हैं?  धूल, पेड़, नदी, लता, ताल  उत्तर: धूलः अतिथि के आगमन से अति उत्साहित चंचल बालिकाएँ पेड़ः ग्रामीण व्यक्ति जो शहरी दामाद के आने पर गर्दन उचका-उचका कर उसे देखता है  नदी : गाँव की युवती जो शहरी दामाद को आता देख उसे ठिठक-ठिठक कर देखती है लता : युवा पत्नी जो बहुत दिनों बाद बादल रूपी प्रियतम के आने से रूठी हुई है और किवाड़ की ओट से उसे देखती है ताल : मेहमान के स्वागत में उनके चरण धोने के लिए परात में लाया हुआ प

तेरे बिन मैं/बसंत चौधरी

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 तेरे बिन मैं/बसंत चौधरी पृष्ठ i तेरे बिन मैं/बसंत चौधरी ======================================= पृष्ठ ii आशा और प्रकाश के कवि बसंत चौधरी नेपाली वाङ्मयों के प्रवर्धन के लिए प्रयासरत अभियंता ही नहीं, एक सिद्धहस्त स्रष्टा तथा प्रेमी कवि भी हैं। नेपाली भाषा के साथ हिंदी भाषा में भी वे अपनी सशक्त रचनाएँ विमोचत  कर चुके हैं। इसी वर्ष नेपाली भाषा में रचित उनकी 85 (पचासी) कविताओं का संग्रह 'तिमी बिना को म' शीर्षक के साथ प्रकाशित हो चुका है। बसंत चौधरीकृत इस कविता संग्रह की सभी कविताएँ जीवन के शाश्वत मूल्यों की खोज के प्रति प्रेरित हैं। मानव मन के भीतर की संवेदनाओंके गहन सरोवर में संवेगजड़ित बिंब तथा कल्पनानिश्चित परिवेश का सुरक्षा कवच पहनकर विचरण करने से प्राप्त सार में ही कवि चौधरी जीवन को परिभाषित करने की कोशिश करते हुए लिखते हैं और ज्यादातर कविताओं में इसी आनंद में वे तल्लीन पाए जाते हैं। कवि की दृष्टि में प्रेम और सद्भावना से निर्मित प्रेममय संसार ही जीवन का अजस्र स्रोत है। प्रेम के इन्हीं स्रोतों की तलाश में ही प्रेम की सार्थकता प्रमाणित होती है। इसी प्रेम के स्रोतरूप प्रेमिका की

मेरी जननी मेरी जन्मभूमि

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पृष्ठ i  मेरी जननी मेरी जन्मभूमि =======/=============================== पृष्ठ ii ======================================= पृष्ठ iii मेरी जननी मेरी जन्मभूमि (बाल यात्रावृत्त) घनश्याम राजकर्णिकार विवेक सृजनशील प्रकाशन प्रा. लि. काठमांडू, नेपाल  ======================================= पृष्ठ iv मेरी जननी मेरी जन्मभूमि विधा: बाल यात्रावृत्त लेखक: घनश्याम राजकर्णिकार संस्करण: प्रथम, 2077 (नेपाली संस्करण) सर्वाधिकार: लेखक में प्रकाशक: विवेक सृजनशील प्रकाशन प्रा. लि. आवरण: युवक श्रेष्ठ  लेआउट: आनंद राउत मुद्रण: बंगलामुखी अफसेट प्रेस ======================================= पृष्ठ v स्नेहासिक्त उपहार  यह बाल यात्रावृत्त मेरे पोते पोतियाँ-- आश्रय, ओजष, हृदयषा,  सुयेशा, रयान, सुवंश  और  श्रयान के लिए  --- घनश्याम राजकर्णिकार ====================================== पृष्ठ vi प्रौढ़ यात्रा संस्मरण के रचनाकार के अनुभव जनित बाल यात्रावृत्त मेरी जननी मेरी जन्मभूमि वरिष्ठ यात्रावृत्तकार घनश्याम राजकर्णिकार इस बार लेखन का एक अलग ही स्वाद लेकर आए हैं। अपनी पहचान दिलाने वाली वाली विधा यात्रावृत्त को नवीन बालस

मेरे बचपन के दिन/ महादेवी वर्मा

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  मेरे बचपन के दिन/ महादेवी वर्मा प्रश्न 1: "मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है।"  इस कथन के आलोक में आप यह पता लगाएँ कि -- (क) उस समय लड़कियों की दशा कैसी थी?  उत्तर : उस समय लड़कियों की अवस्था अच्छी नहीं थी। उन्हें परिवार का बोझ समझा जाता था। उनके जन्म पर पूरे घर में मातम-सा छा जाता था। उन्हें पढ़ाई-लिखाई से दूर रखा जाता था और ज्यादा-से-ज्यादा घर के कामों में लगाया जाता था। कई परिवार तो उनके जन्म होते ही उन्हें मार तक देते थे।  (ख) लड़कियों के जन्म के संबंध में आज कैसी परिस्थितियाँ हैं? उत्तर: आज लड़कियों के जन्म के संबंध में स्थितियाँ कुछ बदली हैं। शिक्षित परिवारों में लड़कियों का भी लड़कों के समान ही स्वागत होता है। उन्हें भी अच्छी तरह से पढ़ाया-लिखाया जाता है। पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने के लिए उन्हें कहीं भी भेजा जाता है। लेकिन लड़कियों के जन्म को रोकने के लिए आज भी जितनी भ्रूण हत्याएँ हो रही हैं, उन्हें अवश्य ही रोकने की जरूरत है। प्रश्न 2: लेखिका उर्दू फारसी क्यों नहीं सीख पाई? उत्तर : लेखिका को उर्दू-फा

अनुच्छेद लेखन/कक्षा-नौ

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  अनुच्छेद लेखन आलस्यः हमारा सबसे बड़ा शत्रु आलस्य दुख, दरिद्रता, रोग, परतंत्रता, अवनति आदि का जनक है। आलस्य के रहते हुए मनुष्य कभी विकास नहीं कर सकता। उसके ज्ञान में वृद्धि का प्रश्न ही नहीं उठ सकता। आलस्य को राक्षसी प्रवृत्ति की पहचान कहा जाता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से प्रातः काल की शुद्ध हवा अत्यंत आवश्यक है। आलसी व्यक्ति इस हवा का आनंद तक नहीं उठा पाते। प्रातः कालीन भ्रमण एवं व्यायाम के अभाव में उनका शरीर रोगग्रस्त हो जाता है। आलसी विद्यार्थी पूरा वर्ष सोकर गुजारता है और परिणाम आने पर सब से आँखें चुराने लगता है। आलस्य मनुष्य की इच्छा शक्ति को कमजोर बना कर उसे असफलता के गर्त में धकेल देता है। आलसी को छोटे से छोटा काम भी पहाड़ के समान कठिन लगने लगता है। वह इससे छुटकारा पाने के लिए तरह-तरह के बहाने तलाशने लगता है। आलस्य का त्याग करने से मनुष्य को अपने लक्ष्य को निश्चित समय में प्राप्त करने में सफलता मिलती है। जीवन में वही व्यक्ति सफलता प्राप्त कर सकता है, जो आलस्य को पूरी तरह त्याग कर कर्म के सिद्धांत को अपना ले। इस प्रकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य ही है। यह मनुष्य को पतन के मा

पुनरावृत्ति/क्षितिज-9

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  पुनरावृत्ति प्रश्न 1: 'दो बैलों की कथा' के आधार पर बैलों के स्वभाव की विशेषताएँ बताइए:  उत्तर : 'दो बैलों की कथा' के आधार पर बैलों के स्वभाव की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं: (i) बैल सामान्यतः सीधे, सरल और सहनशील प्रकृति के होते हैं। (ii) अत्याचार होने पर अथवा किसी बात से असंतुष्ट होने पर वे पलट कर वार भी करते हैं। (iii) कभी-कभी सहनशीलता त्यागकर वे अड़ियल रुख भी अपनाते हैं।  प्रश्न 2: फ्रीडा अपने पति के बारे में कुछ भी लिख पाने में असमर्थ क्यों महसूस कर रही थी? उत्तर : फ्रीडा को ऐसा लगता था कि उनके पति के बारे में उनसे ज्यादा उनकी छत पर बैठने वाली गौरैया जानती है, क्योंकि उनके पति डी. एच. लॉरेंस का प्रकृति से बहुत गहरा लगाव था और सघन संबंध भी। फ्रीडा को लगता था कि उनके पति लॉरेंस का जितना समय प्रकृति एवं पक्षियों के बीच बीता है, उनके साथ नहीं। प्रश्न 3: उपभोक्तावादी संस्कृति ने पुरुषों को भी प्रभावित किया है। कैसे? उत्तर : उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रभाव में आकर पुरुष भी सौंदर्य प्रसाधन के इस्तेमाल में महिलाओं से बहुत पीछे नहीं हैं। वे भी सौंदर्य एवं प्रसाधन सामग्रियों पर

प्रश्नोत्तरी/क्षितिज(कक्षा-नौ)

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प्रश्नोत्तरी प्रश्न: निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए: (i) किस तरह के आदमी को गधे की संज्ञा दी जाती है?  उत्तर : बिल्कुल बुद्धिहीन आदमी को (ii) 'उसे मार गिराते तो दुनिया क्या कहती?'-- यह पंक्ति किसकी है?  उत्तर : हीरा की (iii) अगर ईश्वर ने दोनों बैलों को वाणी दी होती, तो वे झूरी से क्या कहते? (क) तुम हम गरीबों को क्यों निकाल रहे हो? (ख) हमसे और ज्यादा मेहनत से काम ले लेते (ग) हम तुम्हारी चाकरी में ही मर जाना पसंद करते  (घ) उपर्युक्त सभी  उत्तर : उपर्युक्त सभी (iv) 'ल्हासा की ओर' पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक को लंकोर पहुँचने में देरी क्यों हुई? ( क) लेखक का घोड़ा बहुत धीमे चल रहा था (ख) लेखक ने घोड़े को धमकाया नहीं  (ग) लेकर गलत रास्ते पर चला गया था  (घ) उपर्युक्त सभी उत्तरः उपर्युक्त सभी (v) लेखक चाय पीने के लिए कहाँ ठहरा? उत्तर : एक उपेक्षित छोड़े गए परित्यक्त चीनी किले में (vi) तिब्बत में डाँड़ों के गाँवों में डाकुओं को कोई भय क्यों नहीं था ?  उत्तर : क्योंकि वहाँ उन्हें पुलिस का कोई खतरा नहीं था (vii) 'साँवले सपनों की याद' पाठ के आधार पर बताइए कि

व्याकरण प्रश्नोत्तरी/कक्षा-नौ

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  व्याकरण प्रश्नोत्तरी प्रश्न 1: 'अपमान' शब्द में कौन-सा  उपसर्ग प्रयुक्त हुआ है? उत्तर : अप प्रश्न 2: उपसर्ग क्या है? उत्तरः शब्द के पूर्व में जोड़े जाने वाले अविकारी शब्दांश  प्रश्न 3:  'दुर्दिन' में कौन-सा उपसर्ग है?  उत्तर : दुर् प्रश्न 4: 'संभाषण' शब्द में प्रयुक्त उपसर्ग व मूल शब्द अलग कीजिए: उत्तर : सम्+भाषण प्रश्न 5: 'भारतीय' शब्द में कौन-सा प्रत्यय प्रयुक्त हुआ है?       उत्तर : ईय प्रश्न 6: 'नमकीन' शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय छाँटिए:           उत्तर : ईन प्रश्न 7: 'पंडित' शब्द में कौन-सा प्रत्यय लगाने से उसका स्त्रीलिंग शब्द बनेगा? उत्तर : आइन प्रश्न 8: 'पाठक' शब्द में कौन-सा प्रत्यय है? उत्तर : अक प्रश्न 9: 'जय' शब्द के साथ कौन-सा उपसर्ग लगाने से वह 'जय' शब्द का विलोम शब्द बनेगा?   उत्तर : परा प्रश्न 10: 'नौकरानी' में प्रयुक्त प्रत्यय है--  उत्तर : आनी प्रश्न 11: 'शीतोष्ण' का समास विग्रह है: उत्तर : शीत और उष्ण  प्रश्न 12: 'चक्र है पाणि में जिसके अर्थात कृष्ण' में कौन-सा समास है? उ

मैं क्यों लिखता हूँ?/अज्ञेय

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  मैं क्यों लिखता हूँ?/ अज्ञेय  प्रश्न 1: लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति उनके लेखन में कहीं अधिक मदद करती है, क्यों? उत्तर : लेखक की मान्यता है कि सच्चा लेखन भीतरी विवशता से पैदा होता है। यह विवशता मन के अंदर से उपजी अनुभूति से जागती है, बाहर की घटनाओं को देखकर नहीं जागती। जब तक कवि-लेखकों  का हृदय किसी अनुभव के कारण पूरी तरह संवेदनशील नहीं होता और उसकी भावनाओं में अभिव्यक्त होने की पीड़ा पैदा नहीं होती, तब तक वह कुछ लिख नहीं पाता। प्रश्न 2: लेखक ने अपने आप को हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता कब और किस तरह महसूस किया?  उत्तरः लेखक एक दिन जापान के हिरोशिमा नगर की एक सड़क पर घूम रहा था। अचानक उसकी नजर एक पत्थर पर पड़ी, जिस पर एक मानव की छाया छपी हुई थी। वास्तव में परमाणु विस्फोट के समय कोई मनुष्य उस पत्थर के पास खड़ा होगा। रेडियम धर्मी किरणों ने उस आदमी को भाप की तरह उड़ाकर उसकी छाया पत्थर पर डाल दी होगी। उसे देखकर लेखक के मन में अनुभूति जग गई।  उसके मन में विस्फोट का प्रत्यक्ष दृश्य साकार हो उठा और लेखक  स्वयं को उस घटना का भोक्ता महसूस करने लगा। प्रश्न 3: 'मैं क्यो

संस्कृति/ भदंत आनंद कौसल्यायन

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        संस्कृति/ भ दंत आनंद कौसल्यायन प्रश्न 1: लेखक की दृष्टि में 'सभ्यता' और 'संस्कृति' की सही समझ अब तक क्यों नहीं बन पाई है? उत्तर : लेखक की दृष्टि में 'सभ्यता' और 'संस्कृति' शब्दों की सही समझ अब तक इसलिए नहीं बन पाई है, क्योंकि हम इन दोनों बातों को एक ही समझते हैं या एक दूसरे में मिला लेते हैं। अक्सर इन दोनों शब्दों के साथ हम अनेक विशेषण भी लगा देते हैं। तब तो इनका अर्थ और भी अस्पष्ट हो जाता है। यह जानना जरूरी है कि क्या यह एक ही चीज है अथवा दो अलग चीजें हैं। और यदि दो हैं तो दोनों में अंतर क्या है? तभी सही बात समझ में आएगी। प्रश्न 2: आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे? उत्तरः आग की खोज मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता की पूर्ति करती है और इसने मानव सभ्यता को नई दिशा दी है।   आग की खोज के पीछे पेट की ज्वाला अथवा भूख मिटाने की प्रवणता प्रेरणा रही होगी। प्रकाश तथा गर्मी पाने की प्रेरणा भी मिली होगी। जब मांस को अथवा अपने आहार को भूनकर खाने से स्वाद और स्वास्थ्य दोनों मिला होगा, तब मनुष्
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प्रश्न: निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए: (i) किस तरह के आदमी को गधे की संज्ञा दी जाती है?  उत्तर : बिल्कुल बुद्धिहीन आदमी को (ii) 'उसे मार गिराते तो दुनिया क्या कहती?'-- यह पंक्ति किसकी है?   उत्तर : हीरा की (iii) अगर ईश्वर ने दोनों बैलों को वाणी दी होती, तो वे झूरी से क्या कहते? (क) तुम हम गरीबों को क्यों निकाल रहे हो? (ख) हमसे और ज्यादा मेहनत से काम ले लेते (ग) हम तुम्हारी चाकरी में ही मर जाना पसंद करते  (घ) उपर्युक्त सभी  उत्तर : उपर्युक्त सभी (iv) 'ल्हासा की ओर' पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक को लंकोर पहुँचने में देरी क्यों हुई? (क) लेखक का घोड़ा बहुत धीमे चल रहा था (ख) लेखक ने घोड़े को धमकाया नहीं  (ग) लेकर गलत रास्ते पर चला गया था  (घ) उपर्युक्त सभी उत्तरः उपर्युक्त सभी (v) लेखक चाय पीने के लिए कहाँ ठहरा? उत्तर : एक उपेक्षित छोड़े गए परित्यक्त चीनी किले में (vi) तिब्बत में डाँड़ों के गाँवों में डाकुओं को कोई भय क्यों नहीं था?   उत्तर : क्योंकि वहाँ उन्हें पुलिस का कोई खतरा नहीं था (vii) 'साँवले सपनों की याद' पाठ के आधार पर बताइए कि सालिम अली की
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  Great Minds on India पुस्तक को जर्मन संस्करण विमोचन मेघालय का माननीय मुख्यमंत्री Shri Conrad Sangma ले हालै सलिल ज्ञवालीज्यू कृत Great Minds on India पुस्तकको जर्मन संस्करण विमोचन गर्नु भएको छ। उक्त अवसरमा राज्यका कला र संस्कृति विभागका मंत्री Shri Sanbor Sullai को पनि उपस्थिति थियो। लगभग बीस वर्ष लामो साधनामय अनुसंधानको परिणाम, ज्ञवालीज्यू को यो कृति पहिले नै तेह्र देशी-विदेशी भाषा हरूमा अनुदित भई सकेको छ। यसको जर्मन संस्करणको अनुवाद गर्नु भएको छ Overath, Germany निवासी Cardine Hagen ले। Cologne स्थित योग केंद्रमा पहिलो पल्ट उहाँका आँखा यो किताबमाथि परेका हुन। किताबका पाना पल्टाउँदै जाँदा  किताबका विभिन्न विषयवस्तु र विशेष गरी Johann Goethe, Albert Einstein, Harman Hesse, Arthur Schopenhauer जस्ता विश्वप्रसिद्ध मनीषीहरुले भारतीय ज्ञान र  अनुसंधानका संबंधमा गरेका गहकिला भनाईहरुले उहाँलाई मनग्गे आकर्षित गर्यो। पुस्तक की अनुवादक Ms Cardine एकजना ठुलो योग अनुरागी हुनुहुन्छ। उहाँले भारतको भ्रमण पनि गरी सक्नु भएको छ। उहाँ भन्नुहुन्छ-- "ज्ञवालीज्यू को यो पुस्तकको अनुवाद गर्ने मेरो प्र
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                   लघु कथा लेखन लघु कथा लेखन Examples रुपरेखा के आधार पर लघु कहानियों के कुछ उदाहरण – 1. संकेत – (दो भाई घर में अकेले, फाइल में आतंकियों की जानकारी, आतंकियों का घर में घुसना, फ़ाइल ढूंढ़ना, कमरे में बंद, आतंकी गिरफ्तार) चतुर अर्जुन एक दिन अर्जुन और उसका छोटा भाई करण दोनों घर में अकेले थे। उनके पिताजी एक पुलिस अधिकारी थे। वे एक लाल रंग की फाइल घर लाए थे। उसमें सभी कुख्यात आतंकवादियों के बारे में जानकारी थी। अर्जुन जानता था कि पापा ने वह फाइल एक अलमारी में सुरक्षित रखी हुई है। अर्जुन और करण खेल रहे थे कि तभी दो आतंकवादी उनके घर में घुस आए और बोले, “लाल फाइल कहाँ है?” अर्जुन बड़ा चालाक था। वह बोला, “शयनकक्ष की अलमारी में ऊपर रखी गई है। मैं वहाँ तक नहीं पहुँच सकता।” दोनों आतंकवादी लाल फाइल को हासिल करने के लिए उस कमरे में गए। जब वे अलमारी में फाइल ढूँढ रहे थे, तब अर्जुन ने धीरे-से उस कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और पिताजी को भी फोन कर दिया जल्दी ही उसके पिताजी पुलिस लेकर वहाँ पहुँच गए। दोनों आतंकवादियों को गिरफ्तार कर लिया गया। इस प्रकार अर्जुन ने अपनी चतुराई से दोनों